गांधी से दिल लगा बैठे हैं मोदी

गांधी से दिल लगा बैठे हैं मोदी

आलोक कुमार
नायक प्रभावित किए बिना नहीं छोड़ता। नरेन्द्र मोदी इंसान है। उनका भी नायक से लगाव संभाव्य है। यकीन मानिए, प्रधानमंत्री बीते सदी के महानायक महात्मा गांधी के जज्ब में हैं। स्वच्छता अभियान ही नहीं बल्कि अन्य कई आचरणों से वह गांधी के करीब होना और दिखना चाहते हैं। अपने समर्थकों के गांधी से दूर होने की कसक उनमें बढने लगी है। वह धैर्य से बता रहे हैं कि महात्मा गांधी के मुरीद हैं।

पिछले कार्यकाल में वह यूं ही चीन के राष्ट्रपति शी जिंगपिन को लेकर साबरमती आश्रम नहीं पहुंच गए। दिल्ली में गांधी के आखिरी पड़ाव सेवाश्रम में जाकर झाड़ू थाम ली। शौचालय बनाने का बड़ा अभियान छेड़ दिया। कुंभ जाकर स्वच्छताकर्मियों के पैर पखारने लगे। कई मौकों पर उन्होंने बताया कि बापू उनके लिए आदरणीय हैं। उन्होंने अंतस में समाए गांधी के प्रति खास मोह का बारंबार इजहार किया है। प्रज्ञा ठाकुर प्रकरण में तो चुनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जोखिम भरा बयान दे दिया। उसको लेकर आखिरी चरण के मतदान के दिन भोपाल में सब सकते में थे। उन्होंने न्यूज 24 के जांबाज रिपोर्टर अमित कुमार से ऑन कैमरा कहकर सनसनी फैला दी कि महात्मा के हत्यारे के महिमामंडन वाली साध्वी प्रज्ञा को वह कभी मन से माफ नहीं करेंगे। 

प्रधानमंत्री के गांधी से इश्क बिना वजह नहीं है। उसकी एक वजह विदेश है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में पीएम मोदी का एक्सपोजर बेमिसाल रहा है। पांच साल में प्रधानमंत्री ने रिकार्ड विदेशी यात्राएं की। उस दरम्यान महात्मा गांधी के महत्व का ज्यादा पता लगा हो। संघ की पृष्ठभूमि के बावजूद प्रधानमंत्री के लिए महात्मा गांधी को इग्नोर करना शायद इसलिए भी मुमकिन नहीं लगा। 

दूसरी वजह राजनीतिक लगती है। गांधी को अपनाकर ही मौजूदा कांग्रेस बची हुई है। राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए रखने के लिए कांग्रेसी इसी गांधी सरनेम की वजह से बाध्य हैं। एकबार साफ हो जाए कि कांग्रेस के साथ गांधी सरनेम का शख्स नहीं है, तो पीएम की कांग्रेस मुक्त भारत की परिकल्पना को पूरा करना मुमकिन  हो सकता है। ऐसी तकरीर कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में प्रियंका गांधी बाड्रा ने दी है। गांधी सरनेम का व्यक्ति कांग्रेस की गद्दी पर आसीन रहे अथवा नहीं गांधी को अपना लेने से हिल रही कांग्रेस पार्टी को सदा के लिए खत्म कर सकते हैं। गांधी सरनेम के कांग्रेस पार्टी से दूर जाते ही भारतीय जनता पार्टी की अपरिहार्यता बढ़ जाएगी। संभव है, इस वजह से प्रधानमंत्री गांधीमय होने की दिशा में बढ चले हैं।

मधु साहनी मान्ट्रेयल में है। जी न्यूज में साथ थी। अभी उसने एक दिलचस्प मुलाकात बात बताई। वह घर के करीब की बस स्टाप पर निकली, तो अफ्रीकी मूल का एक शख्स मिल गया। मधु से तारुर्फ बढाने की कोशिश में पूछ बैठा, “क्या आप टर्की से हैं ?” भारतीय मूल से नावाकिफ आज के विदेशी अक्सर यह चूक करते हैं। 

विदेश जाने की इच्छा रखने वालों के लिए इसकी जानकारी जरुरी है। जरुरी नहीं कि आम व्यवहार पर लोग आपको भारतीय उपमहाद्वीप का ही मानें। सीमित जानकारी के आधार पर वो आपको इरान, इराक, टर्की, पुर्तगाली, अर्जेन्टिना और ब्राजील का भी मान सकते हैं। अफ्रीकन शख्स के आगे पहचान शून्यता से गुजर रही मधु काफी समझदार औऱ विनम्र है। ऋषिकेश में पली-बढ़ी,सिख मां की बेटी और तेलगू परिवार की बहू हैं। रंगरुप से मध्य एशियाई मूल से मेल खाती है। मधु ने मुस्कुराते हुए अफ्रीकन बंधु को जबाव दिया, “नोअ! आई एम फ्रॉम इंडिया ( मैं इंडिया से हूं)।“ इतना सुनते ही अफ्रीकन मुस्कुराया। और अपने ज्ञान भाव से मधु को चौंकाते हुए कहा, “ओS इंडिया! होम ऑफ महात्मा गांडी।“ 

यह बात बाईस साल से उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के वाशिंदे अनुज आशुतोष ने मुझे कई मर्तबा बताई है। बहन गिन्नी और मनीष जी अब अमेरिका के एरिजोना स्थित फिनिक्स में रहते हैं। इन दोनों ने पहली बार पेरिस यात्रा की थी। लौटकर कहा था, हम यूं ही विश्वगुरु होने का दंभ भरते हैं। विदेशों में महात्मा गांधी के अलावा हमारे किसी नायक से ज्यादातर लोग अपरिचित हैं। इने-गिने लोग ही भारत को जानते हैं। लेकिन शांति के अध्येताओं में महात्मा गांधी सर्वाधिक चर्चित नाम है। गांधी के मोहपाश में फंसे पश्चिम की दुनिया में अचरज भरी अनुभव की कहानी कई लोगों ने अलग-अलग तरीके से सुनाई है।

जाहिर तौर पर विदेशों में महात्मा गांधी को जानने वाले बहुतेर हैं। मधु ने कहा कि महात्मा गांधी को पश्चिम की नई पीढ़ी गंभीरता से पढ रही है। उनसे प्रभावित लोग बेशुमार हैं। कहीं युद्ध की जिक्र होता है। दुनिया तबाही की दिशा में बढती नजर आती है। महात्मा गांधी का महत्व अचानक से बढ जाता है। महात्मा के अहिंसा, असहयोग, सविनय अवज्ञा और सत्याग्रह की बात होने लगती है। गांधी सुझाए रास्ते पर चलने की पैरवी की जाने लगती है।

लिहाजा हम सौभाग्यशाली हैं कि दुनिया से तार्रुफ कराने में हमें गांधी जैसा ब्रांड एम्बेडर मिला। गांधी इतना बड़ा ब्रांड हैं कि निगेटिव पब्लिसिटी पाने के लिए कई महत्वपूर्ण ब्रांड गांधी की छवि से छेड़छाड़ करने से नहीं चूकते। वह बीते सदी के वह महानायक हैं। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टिन ने आज से 75 साल पहले महात्मा गांधी के 75 वें जन्मदिवस पर 2 अक्टूबर 1944 को भेजे संदेश में लिखा था, ”आने वाली नस्लें मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता- फिरता था।“ आइंस्टिन ने गांधी के प्रभाव में आकर द्वितीय विश्वयुद्ध के दरम्यान दुनिया की सेनाओं से अपील कर दी कि वह युद्ध में शामिल होने से इंकार कर दें। इससे कई शांतिवादी तक विचलित हो गए। लियो टाल्सटाय ने भी ऐसा ही अपील कर रखा था। 

ऐसे में, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गांधीवाद के मोह में फंसना लाजिमी है। इससे मध्यमार्गी रस्क कर सकते हैं। प्रधानमंत्री की गांधी प्रेम से कई समर्थक आलोचक घबराए हुए हैं।
गांधी आलोचकों की नजर में संघ की राष्ट्रीयता की व्याख्या में कई मर्तबा गांधी फिट नहीं बैठते। उनके बीच गांधी को लेकर उल्टी सीधी तकरीर प्रचलित है। सोशल मीडिया पर गांधी पर अनाप शनाप दुर्गंध वाले कीचड़ों का उछाला जाना जारी है। कई मुस्लिम तकरीरकर्ता तक महात्मा गांधी को माफ नहीं करते नजर नहीं आते। महात्मा की मौत पर मोहम्मद अली जिन्ना की संवेदनहीन अभिव्यक्ति को उकेरते रहते हैं। जिन्ना ने कहा था, “एक हिंदू नेता मारा गया।“

गांधी से सन्निकटता को लेकर पीएम की अभिव्यक्ति साफ है। बीते 23 मई को 2019 जनादेश से महानायक बने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रथम संबोधन में इसे फिर से दोहराया है। दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित बीजेपी दफ्तर पर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए महानायक मोदी ने बताया कि वह ब्रांड गांधी के करीब जाना चाहते हैं। समर्थकों को गले से गांधी को लगाने के लिए उत्साहित करना चाहते हैं। उन्होंने महात्मा को लेकर कहा कि यह महात्मा गांधी की 150 वीं और आजादी की 75 वीं जंयती है। हमारे पास उनका दिखाया- आजमाया सुफल मार्ग है। 1942 से लेकर 1947 के पांच साल में जिस तरह से उन्होंने समस्त भारतीयों को साथ लेकर अभियान छेड़ा। जिस तप से आजादी दिलाई। उसी अनुशासन औऱ तप से वह अगले पांच साल यानी 2019 से 2024 तक विश्व में भारत को खास मान दिलाने का आंदोलन छेड़ना चाहते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)