Corona Effect : लॉकडाउन का सकारात्मक असर,दिल्ली में शून्य के करीब प्रदूषण, IIT रुड़की के वैज्ञानिकों की रिसर्च में हुआ खुलासा
विश्वव्यापी लॉकडाउन का वातावरण पर सकारात्मक असर भी दिख रहा है। लॉकडाउन के कारण वायुमंडल में प्रदूषण के स्तर में कमी साफ नजर आ रही है। देशभर में प्रदूषण के गिरते स्तर का वास्तविक पता लगाने के लिए आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने अध्ययन शुरू कर दिया है। शोध के शुरुआती नतीजे सकारात्मक आए हैं।
विश्वव्यापी लॉकडाउन का वातावरण पर सकारात्मक असर भी दिख रहा है। लॉकडाउन के कारण वातावरण में काफी सुधार हुआ है। वायुमंडल में प्रदूषण के स्तर में कमी साफ नजर आ रही है। देशभर में प्रदूषण के गिरते स्तर का वास्तविक पता लगाने के लिए आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने अध्ययन शुरू कर दिया है। शोध के शुरुआती नतीजे सकारात्मक आए हैं।
वैज्ञानिकों ने हाल ही में जो सेटेलाइट इमेज ली है उसके अध्ययन में पता चला है कि 23 मार्च से पहले दिल्ली में पृथ्वी की सतह के समीप वायुमंडल में विभिन्न गैसों का सांद्रण .0002 था, जो अब घटकर शून्य के करीब पहुंच गया है। यह प्रदूषण मुक्त वायुमंडल का संकेत है। वहीं, कोलकाता में यह प्रदूषण आधा घटने के बावजूद देश में सबसे अधिक है।
कोल बेल्ट के जिन इलाकों में थर्मल पॉवर प्लांट संचालित हो रहे हैं,वहां सेटेलाइट इमेज लाल धब्बों के रूप में तुलनात्मक रूप से बढ़े प्रदूषण को दर्शा रही हैं। आईआईटी रुड़की के अर्थसाइंस डिपार्टमेंट के वैज्ञानिक प्रोफेसर अरुण कुमार सराफ और प्रोफेसर अजंता गोस्वामी ने लॉकडाउन के मद्देनजर 23 मार्च के बाद सेटेलाइट से प्राप्त डाटा का विश्लेषण शुरू किया है।
प्रोफेसर सराफ ने बताया कि शोध के लिए यूरोप की सेटेलाइट से प्राप्त इमेज के शुरुआती अध्ययन में पता चला है कि जिन प्रदेशों में थर्मल पावर प्लांट हैं,उन कोल बेल्ट एरिया में वायु प्रदूषण का स्तर अन्य क्षेत्रों से अधिक है। सेटेलाइट इमेज में इन क्षेत्रों को लाल धब्बों के रूप में प्रदर्शित किया गया है।
उन्होंने बताया कि दिल्ली में प्रदूषण की मात्रा में भारी गिरावट आई है। यहां नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड और ओजोन गैसों का सांद्रण शून्य के करीब पहुंच गया है, जो लॉकडाउन से पहले .0002 मॉलिक्यूल प्रति वर्ग मीटर था। जबकि देश में सबसे अधिक प्रदूषण (.0001 मॉलिक्यूल प्रति वर्ग मीटर) कोलकाता में देखा जा रहा है।
यहां प्रदूषण के स्तर में अपेक्षाकृत कम गिरावट को लॉकडाउन के सख्ती से पालन नहीं होने के रूप में देखा जा सकता है। वहीं, देश के अन्य हिस्सों में भी प्रदूषण घटा है। इस शोध में वायुमंडल में एरोसोल (सूक्ष्म ठोस कणों अथवा तरल बूंदों के हवा या किसी अन्य गैस के साथ मिश्रण) की मात्रा में कमी पर भी अध्ययन किया जा रहा है।
कोल बेल्ट में आने वाले पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड के उन इलाकों में सेटेलाइज इमेज लाल धब्बों को दिखा रही हैं, जहां थर्मल पॉवर प्लांट संचालित हो रहे हैं। प्रो. सराफ के मुताबिक, इस समय किया गया अध्ययन अपने आप में आदर्श स्थिति को दर्शाएगा। लॉकडाउन खुलने के बाद यह साफ हो सकेगा कि वाहनों और फैक्टरियों के जरिये प्रदूषण की मात्रा कितनी बढ़ती है।
सेटेलाइट से वायुमंडल के प्रदूषण का स्तर मापने के लिए डिजिटल इमेज प्रोसेस तकनीक का उपयोग किया जाता है। सेटेलाइट से प्राप्त तस्वीरें टू डायमेंशनल मैट्रिक्स फार्म में होती हैं। इसमें हर छोटे सेल की एक वैल्यू होती है। मैथमेटिकल मॉडल के विभिन्न स्टेप्स से इसी वैल्यू के आधार पर प्रदूषण का आंकड़ा जुटाया जाता है। प्रो. एके सराफ ने बताया कि मैथमेटिकल मॉडल के जरिए कई स्टेप्स के तहत गणना होती है। इसके बाद प्रदूषण का स्तर बताया जाता है।
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