अटल बिहारी वाजपेयी के वो 6 फैसले, जिसने इकोनॉमी की तस्वीर बदल डाली
देश की सियासत में नैतिकता की नई लकीर खींचने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में कई ऐसे फैसले हुए, जिसने इकोनॉमी की दशा और दिशा बदल डाली। वाजपेयी के हर गांव तक सड़क पहुंचाने की योजना हो या फिर राजकोषीय स्थिति बेहतर बनाने पर जोर देना हो, वर्तमान दौर में इसकी अहमियत समझ आती है।
25 दिसंबर, ये वो दिन है जिसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के तौर पर याद किया जाता है। देश की सियासत में नैतिकता की नई लकीर खींचने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में कई ऐसे फैसले हुए, जिसने इकोनॉमी की दशा और दिशा बदल डाली। वाजपेयी के हर गांव तक सड़क पहुंचाने की योजना हो या फिर राजकोषीय स्थिति बेहतर बनाने पर जोर देना हो, वर्तमान दौर में इसकी अहमियत समझ आती है। आज हम आपको अटल बिहारी वाजपेयी के उन 6 फैसलों के बारे बताएंगे जिस वजह से इकोनॉमी को नई रफ्तार मिली है।
सड़क बनाने की योजना: किसी भी देश की इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए सड़कों की काफी बड़ी भूमिका होती है। बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी अहमियत को बखूबी समझा। यही वजह है कि उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की शुरुआत की। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को हाईवे नेटवर्क से जोड़ा गया तो वहीं, ग्राम सड़क योजना का लक्ष्य गांवों को शहरों से पक्की सड़क से जोड़ना था।
विनिवेश मंत्रालय बनाने की योजना: बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने निजीकरण या विनिवेश पर जोर दिया। वाजपेयी ने 1999 में पहली बार विनिवेश मंत्रालय का गठन किया था। ये एक अनूठा प्रयोग था, हालांकि इसके लिए उन्हें विपक्ष की आलोचना का सामना करना पड़ा। विनिवेश मंत्रालय की जिम्मेदारी अरुण शौरी को सौंपी गई। अरुण शौरी की अगुवाई में भारत एल्यूमिनियम कंपनी (बाल्को) समेत कई कंपनियों के निजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। यही नहीं, उन्होंने बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा को 26 फीसदी तक किया था।
राजकोषीय घाटे की चिंता: बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी राजकोषीय घाटे को लेकर चिंतित थे। यही वजह है कि राजकोषीय व्यवस्था में अनुशासन लाने के लिए 2003 में राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) कानून बनाया गया। इसके जरिए सरकारी खर्च और घाटे जैसे कारकों पर नजर रखने के नियम सख्ती से लागू किए गए। इस कानून के बनने के बाद सरकार ने बचत के तमाम तरीके अपनाए, जिससे राजकोषीय घाटा भी कम हुआ। आपको बता दें कि राजकोषीय घाटा का कम होना, देश की इकोनॉमी के लिए अच्छे संकेत हैं।
अंत्योदय अन्न योजना: बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गरीबों को भोजन मुहैया कराने के लिए साल 2000 में अंत्योदय अन्न योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत राज्य के भीतर लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधीन कवर किए गए गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों में से एक करोड़ निर्धन परिवारों की पहचान की गई। इसके बाद उन्हें 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूं और 3 रुपये प्रति किलोग्राम चावल देने का लक्ष्य रखा गया। समय के साथ इस योजना में बदलाव होते रहे और निर्धन परिवारों की संख्या बढ़ती गई।
शिक्षा की क्रांति: अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में शिक्षा और संचार के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व बदलाव हुए। 2001 में बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत की। योजना का मुख्य उद्देश्य 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देना था। योजना के जरिए देश के हर बच्चे को पढ़ने का संवैधानिक अधिकार भी मिल गया।
संचार की क्रांति: शिक्षा की तरह संचार के क्षेत्र में भी अटल बिहारी वाजपेयी ने कड़े फैसले लिए। नई टेलिकॉम पॉलिसी लॉन्च की गई तो वहीं टेलीकॉम मंत्री प्रमोद महाजन की अगुवाई में निजी टेलीकॉम कंपनियों को भी तवज्जो मिली। पीसीओ और बूथ कल्चर को खत्म करने में वाजपेयी सरकार की अहम भूमिका थी। सस्ती दरों पर फोन कॉल्स हो या सस्ती मोबाइल फोन, इसकी शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में ही हुई।
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