स्वतंत्रताः बताने की या छिपाने की?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
व्हाटसाप और हमारी सरकार के बीच बड़ा मजेदार और अजीब-सा दंगल चल रहा है। इसी साल फरवरी में बहस चली थी कि व्हाट्साप और फेसबुक जैसी संस्थाएँ नागरिकों की निजता पर हमला करती हैं। सरकार को उन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए और व्हाट्साप ने अब दिल्ली के उच्च न्यायालय में जाकर गुहार लगाई है कि भारत सरकार नागरिकों की निजता भंग करना चाहती है। उस पर रोक लगाई जाए। हमारी सरकार और इन संचार-कंपनियों के अपने अपने तर्क हैं। दोनों कुछ हद तक ठीक लगते हैं और कुछ हद तक गलत ! सरकार का कहना है कि वह जो नया कानून ला रही है, उसके मुताबिक व्हाटसाप को ऐसे संदेशों का मूल-स्त्रोत खोजकर बताना होगा, जो आपत्तिजनक हैं। आपत्तिजनक वे संदेश माने जाएंगे, जो भारत की सुरक्षा, शांति-व्यवस्था, कानून आदि के लिए खतरनाक हों। आजकल भारत में लगभग 45 करोड़ लोग व्हाट्साप आदि का इस्तेमाल करते हैं। इस पर आने-जानेवाले संदेशों के बारे में पूर्ण गोपनीयता का वादा किया जाता है। इस सुविधा का फायदा उठाकर आतंकवादी, चोर, विदेशी दलाल, जासूस, अपराधी, अफवाहबाज़ और नादान भोले-भंडारी लोग भी ऐसी खबरें, विचार, संदेश, दृश्य आदि भेजते रहते हैं, जिन पर प्रतिबंध न केवल तत्काल आवश्यक होता है बल्कि ऐसे लोगों को तुरंत दंडित भी किया जाना चाहिए। यह तभी हो सकता है, जबकि व्हाट्साप उसकी पटरी पर चल रहे सारे संवादों को सुरक्षित रखे और शिकायत मिलने पर उनकी जाँच करे और सरकार को उनके नाम-पते बताए। व्हाट्साप का कहना है कि ऐसा करने से उसका गोपनीय रहने का महत्व खंड-बंड हो जाएगा। दुनिया के करोड़ों लोग फिर उसका इस्तेमाल क्यों करेंगे ? उसका मानना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है। ऐसा हो जाने पर लोग अपने मन की बात खुलकर कभी करेंगे ही नहीं। वे पकड़े जाने के डर से चुप रहेंगे या झूठ बोलेंगे। व्हाट्साप के इस तर्क में थोड़ा दम जरुर है, क्योंकि दुनिया के ज्यादातर लोग दब्बू हैं। वे अपने विचार प्रकट भी करना चाहते हैं और अपनी खाल भी बचाना चाहते हैं लेकिन मेरा सोच यह है कि सांच को आंच क्या ? किसी भी बात को छिपाना क्यों ? सरकार हमारे जिस भी संवाद को पढ़ना चाहे, पढ़े। वह कोई भी गलत कदम उठाएगी तो कानून है, लोकमत है, संसद है, अखबार और चैनल हैं, जो नागरिकों की रक्षा करेंगे। हाँ, व्हाट्साप जैसे सभी संगठन यह मांग रखें तो वह जायज होगी कि यदि सरकार किसी के भी संदेश या बातचीत का सुराग लगाना चाहे तो वह काम मनमाना और निराधार नहीं होना चाहिए। उसके लिए बाकायदा एक उच्च-स्तरीय कमेटी होनी चाहिए और उसका सगुण व ठोस आधार होना चाहिए। ताकि अभिव्यक्ति और उसके साथ-साथ निजता की स्वतंत्रता की रक्षा तो अवश्य हो लेकिन षड़यंत्र और मूर्खता का पर्दाफाश भी हो जाए।
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