जानिए, कैसे सुषमा के यूं ही चले जाने से हजारों अनाम लोगों को है निजी क्षति?
भारतीय राजनीति को एक नई उंच्चाई प्रदान करने वाली सुषमा स्वराज अब हम सब के बीच नहीं रहीं। देश की राजनीति में दैदीप्यमान नक्षत्र की तरह चार दशक तक चमकने वाली सुषमा स्वराज का निधन भारतीय राजनीति के लिए अपूर्णनीय क्षति है। केंद्र में विदेश मंत्री रहते जिस संवेदनशीलता के साथ उन्होंने काम किया उसकी न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी जमकर सराहना हुई।
देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय रहनेवाली सुषमा ने पार्टी लाइन से अलग अपनी पहचान बनाई। बतौर विदेश मंत्री उनका कार्यकाल खासा चर्चित रहा। ओजस्वी वक्ता, तेज-तर्रार नेता और कुशल टास्क मास्टर के तौर पर उन्होंने अपनी पहचान गढ़ी। देश ने इस दिग्गज नेता को खो जरूर दिया है, लेकिन उनकी उपलब्धियां लंबे समय तक देशवासियों के दिल में बनी रहेंगी।
विरोधी दल के नेता भी करते थे सराहना
भारतीय राजनीति को एक नई उंच्चाई प्रदान करने वाली सुषमा स्वराज अब हम सब के बीच नहीं रहीं। देश की राजनीति में दैदीप्यमान नक्षत्र की तरह चार दशक तक चमकने वाली सुषमा स्वराज का निधन भारतीय राजनीति के लिए अपूर्णनीय क्षति है। केंद्र में विदेश मंत्री रहते जिस संवेदनशीलता के साथ उन्होंने काम किया उसकी न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी जमकर सराहना हुई। संसद में उनकी ओज भरी वाणी और तार्किकता की विरोधी दलों के नेता भी खूब सराहना करते थे।
सुषमा स्वराज का छात्र जीवन
सुषमा स्वराज छात्र जीवन में विद्यार्थी परिषद से जुड़ी रहीं थीं। लेकिन सक्रिय राजनीति इमरजेंसी के बाद उन्होंने जनता पार्टी से शुरू की। 1977 में सिर्फ 25 साल की उम्र में जनता पार्टी से विधायक चुनी गई और हरियाणा में चौधरी देवीलाल की सरकार में सबसे कम उम्र में मंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया। इसके बाद लगभग चार दशक के उनके राजनैतिक जीवन में उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त है। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वह देश की पहली पूर्णकालिक महिला विदेश मंत्री बनीं। वह जितनी दयालु थीं राजनैतिक मामलों में उतनी ही दृढ़ तथा मुखर भी थीं।
1999 में सोनिया गांधी को दी टक्कर
1999 के लोकसभा चुनाव में वेल्लारी सीट से सोनिया गांधी के सामने उन्हें बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि दक्षिण भारत के इस गैर बीजेपी प्रभाव वाले क्षेत्र में वे चुनौती खड़ी कर पाएंगी। जो लोग उस समय राजनीतिक समझ रखते थे, उन्हें आज भी याद होगा कि सुषमा स्वराज ने कुछ ही हफ्तों में सोनिया के लिए सुरक्षित समझी जाने वाली सीट पर इस तरह चुनौती खड़ी कर दी कि पूरी कांग्रेस को उनके बचाव में पूरी ताकत झोंकनी पड़ी। उन्होंने थोड़े ही समय में कन्नड़ भाषा सीखकर स्थानीय लोगों से सीधा संवाद शुरू कर दिया था। हालांकि, सुषमा थोड़े से अंतर से चुनाव हार गईं। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें एक जुझारू नेता के रूप में पहचान मिली।
सोनिया के प्रधानमंत्री बनने का किया विरोध
बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा संसद में नेता विपक्ष के रूप में उनकी तार्किकता और प्रभावशाली वक्तव्यों को लोग भूल नहीं पाएंगे। यूपीए सरकार के गठन के पहले जब यह चर्चा आम थी कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन सकती हैं। लोग उनके विदेशी होने को मुद्दा बनाकर विरोध कर रहे थे। सुषमा स्वराज ने उस समय सोनिया को प्रधानमंत्री बनाए जाने का विरोध किया। उन्होने यहां तक कह दिया था कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगी तो वे अपने सिर के बाल मुंडवा लेंगी। इसी के बाद विपक्ष ने खुलकर सोनिया का विरोध शुरू कर दिया।
फिल्म जगत को दिलवाया उद्योग का दर्जा
देश में फिल्मी कारोबार को सुषमा स्वराज ने ही पहली बार उद्योग का दर्जा प्रदान कराया था। वर्ष 1996 में जब अटल जी की 13 दिन की सरकार बनी तो सुषमा उनकी कैबिनेट में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहीं। वर्ष 1998 में वे फिर उनकी सरकार में प्रसारण मंत्रालय के साथ ही दूरसंचार मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। इसी दौरान उन्होंने फिल्म को उद्योग का दर्जा दिलाया जिससे फिल्मों के लिए फाइनेंस मिलना आसान हो गया। अटल जी की सरकार में उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय का भी कार्यभार संभाला था।
सुषमा ने की सबकी मदद
खराब स्वास्थ्य के चलते पिछले कुछ सालों से उनकी सक्रियता घटने लगी थी। लेकिन विदेश मंत्री के रूप में वह पूरी दुनिया में भारतीयों को जिस आत्मीयता से मदद करती रहीं, उसकी सबने सराहना की। पाकिस्तान में उनका एक बड़ा वर्ग प्रशंसक बन गया जब वे वहां के कई बीमार लोगों को इलाज के लिए भारत आने में सीधे हस्तक्षेप करके मदद की। पाकिस्तान कई नागरिक सीधे ट्विटर पर उन्हें अपनी समस्याएं लिखकर मदद मांगा करते थे। नरेंद्र मोदी सरकार की वह इकलौती मंत्री थीं जो अक्सर ट्विटर पर लोगों के सवालों के जवाब देने के साथ ही मदद पहंचाने की कोशिश भी करती थीं। हर दिल अजीज सुषमा का चले जाना ऐसे हजारों अनाम लोगों के निजी क्षति है। उनमें देश के भी और विदेशी भी शामिल हैं।
Comments (0)