जानिए,इस वर्ष कब मनाई जाएगी मकर संक्रांति और इस पर्व का मानव जीवन में क्या है महत्व?
सृष्टि के गतिदाता, साक्षात ब्रह्म सूर्यदेव की उपासना का पर्व मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी को नहीं, बल्कि 15 जनवरी को मनाया जाएगा। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार पौष मास में जब सूर्यदेव धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है और सूर्यदेव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसीलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
सृष्टि के गतिदाता, साक्षात ब्रह्म सूर्यदेव की उपासना का पर्व मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी को नहीं, बल्कि 15 जनवरी को मनाया जाएगा। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार पौष मास में जब सूर्यदेव धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है और सूर्यदेव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसीलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह एकमात्र ऐसा त्यो्हार है, जिसे संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम और मनाने तरीका कुछ भी हो।
आमतौर पर तो यह पर्व जनवरी माह की 14 तारीख को मनाया जाता है, लेकिन कभी-कभी यह पर्व 12, 13 या 15 तारीख को भी मनाया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पर्व पूरी तरह से सूर्यदेव के मकर राशि में प्रवेश करने के दिन मनाया जाता है और सूर्यदेव सामान्यत: 12, 13, 14 या 15 जनवरी में से किसी एक दिन ही मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस बार भी यह पर्व 15 को ही मनाया जाएगा।
वास्तव में हिन्दू धर्म में माह को दो पक्षों में बांटा गया है। कृष्ण पक्ष और शुक्लन पक्ष। ठीक इसी तरह से वर्ष को भी दो अयनों में बांटा गया है। उत्तरायण और दक्षिणायण। यदि दोनों को मिला दिया जाए तो एक वर्ष पूर्ण हो जाता है। मकर संक्रांति के दिन से सूर्यदेव की उत्तारायण गति प्रारंभ हो जाती है इसलिए मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहते हैं।
हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णुण ने असुरों का अंत कर उनके सिरों को मंदार पर्वत में दबाकर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। इसलिए इस मकर संक्रांति के दिन को बुराइयों और नकारात्मंकता को समाप्त करने का दिन भी मानते हैं।
देश के अलग-अलग प्रांतों में इस पर्व को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में, तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरला में केवल संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। जबकि बिहार और उत्तररप्रदेश में इस त्योइहार को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मयकता का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नायन, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों को विशेष महत्व दिया जाता है।
मान्यतानुसार भगवान सूर्यदेव अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं और शनि मकर राशि के स्वामी है। अतः इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। पवित्र गंगा नदी का भी इसी दिन धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए भी मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता हैं।
महाभारत में भीष्म पितामाह ने सूर्य के उत्तकरायण होने पर ही स्वेच्छाः से शरीर का परित्यािग किया था। इसका कारण यह था कि उत्तररायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती है या पुनर्जन्म के चक्र से उन आत्मामओं को छुटकारा मिल जाता है। जबकि दक्षिणायण में देह छोड़ने पर आत्मा् को बहुत काल तक अंधकार का सामना करना पड़ सकता है।
भगवान श्री कृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए कहा है कि उत्तरायण के 6 मास के शुभ काल में जब सूर्यदेव उत्त़रायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है,तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता है और ऐसे लोग सीधे ही ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत जब सूर्यदेव में दक्षिणायण होते हैं और पृथ्वीर अंधकार मय होती है तो इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुन: जन्म लेना पड़ता है।
देश के अनेक शहरों में इस पर्व पर पतंग उड़ाने की परंपरा भी प्रचलित है। लोग दिन भर अपनी छतों पर पतंग उड़ाकर हर्षोउल्लास के साथ इस उत्सव का मजा लेते हैं। विशेष रूप से पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। पतंग उड़ाने के पीछे धार्मिक कारण यह है कि श्रीराम ने भी पतंग उड़ाई थी। गुजरात और सौराष्ट्रि में मकर संक्रांति पर कई दिनों का अवकाश रहता है और यहां इस दिन को भारत के किसी भी अन्यष राज्यं की तुलना में अधिक हर्षोल्लाैस से मनाया जाता है।
अगर बात संक्रांति और सेहत की करें, तो पौष मास की सर्दी के कारण हमारा शरीर कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो जाता है, जिसका हमें पता ही नहीं चलता और इस मौसम में त्वचा भी रुखी हो जाती है। इसलिए जब सूर्य उत्तरायण होता है, तब इसकी किरणें हमारे शरीर के लिए औषधि का काम करती है और पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आता है, जिससे अनेक शारीरिक रोग जो हम जानते ही नहीं हैं वे स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं।
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