गुरुजनों के श्रीचरणों में श्रद्धा, भक्ति और कृतज्ञता ज्ञापित करने का पर्व है ‘गुरु पूर्णिमा’
देशभर में 16 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जा रहा है। प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन सद्गुरु की पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा सद्गुरु के प्रति नतस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। सग्दुरु सम्मान हेतु आषाढ़ पूर्णिमा से बढ़कर कोई और तिथि नहीं हो सकती है।
देशभर में 16 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जा रहा है। प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन सद्गुरु की पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा सद्गुरु के प्रति नतस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। सग्दुरु सम्मान हेतु आषाढ़ पूर्णिमा से बढ़कर कोई और तिथि नहीं हो सकती है। अतः गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर हमें अपने गुरुजनों के श्रीचरणों में अपनी समस्त श्रद्धा और भक्ति अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। सद्गुरु का सानिध्य प्राप्त करना चाहिए। सद्गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। सद्गुरु कृपा असंभव को भी संभव बनाती है। सद्गुरु की कृपा शिष्य के ह्रदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है। सद्गुरु के सानिध्य में शिष्य अपने जीवन को सरल, सुगम, सफल और सार्थक बनाता है।
गुरु की महिमा
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु र्गुरूदेवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परंब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अर्थात सद्गुरु ही ब्रहमा हैं। सद्गुरु ही विष्णु हैं। सद्गुरु ही शंकर हैं। सद्गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं। ऐसे सद्गुरु को मैं प्रणाम करता हूं। गुरु को ब्रह्मा कहा गया है, क्योंकि गुरु शिष्य को बनाता है। शिष्य को नव जीवन देता है। गुरु विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है। गुरु साक्षात महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है। संस्कृत के शब्द गु का अर्थ है अंधकार और रु का अर्थ है उस अंधकार को मिटाने वाला। जी हां, गुरु हमारा मार्गदर्शन करते हैं। मनुष्य में आत्मबल जगाने का काम भी गुरु ही करता है। साधना मार्ग के अवरोधों एवं विघ्नों के निवारण में गुरु का असाधारण योगदान है।
गुरु पूर्णिमा और वेदव्यास
भारत वर्ष के सभी संतों, महात्माओं और विद्वानों का भारतीय सनातन संस्कृति को आगे बढ़ाने में अहम योगदान रहा है। परंतु महर्षि वेद व्यास को सर्वोपरि माना जाता है। क्योंकि वे चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे। वेदों का ज्ञान हमें उन्होंने ही प्रदान किया। अतः गुरु पूर्णिमा जगत गुरु वेद व्यास जी को समर्पित है। गुरु पूर्णिमा पर महर्षि वेद व्यास का विशेष रूप से पूजन किया जाता है। गुरु पूर्णिमा पर शिष्यों को चाहिए कि वे अपने गुरुओं को व्यासजी का अंश मानकर उनकी पाद-पूजा करें और अपने उज्जवल भविष्य के लिए गुरु का आशीर्वाद ग्रहण करें।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
शास्त्रानुसार आषाढ़ पूर्णिमा को ही वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। उन्होंने ही वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदों को चार भागों में बांटा था। महाभारत, 18 पुराणों और 18 उप पुराणों की रचना भी वेद व्यास जी ने ही की थी। उनकी रचनाओं में भागवत पुराण जैसा अतुलनीय ग्रंथ भी शामिल है। अतः वेद व्यास जी आदि गुरु हैं। भगवान बुद्ध ने भी आषाढ़ पूर्णिमा को ही प्रथम उपदेश दिया था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के पांच सप्ताह बाद भगवान बुद्ध ने सारनाथ पहुंचकर अपने पांच शिष्यों को उपदेश दिया था। बौद्ध ग्रंथों में इसे 'धर्मचक्र प्रवर्तन' कहा जाता है। बौद्ध धर्मामलंबी इसी गुरु-शिष्य परंपरा के अंतर्गत गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मनाते हैं।
गुरु पूर्णिमा की पूजा
गुरु पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्म से निवृत होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान पर चौकी रखकर उसपर सफेद वस्त्र बिछाएं और फिर 12-12 रेखाएं खींचकर उसपर व्यास-पीठ बनाएं। 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजा का संकल्प लें।दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ें और फिर व्यासजी,ब्रह्माजी,शुकदेवजी,गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम मंत्र से पूजा का आह्वान करें। पूजा-उपासना के उपरांत व्यासजी द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करें और उनके उपदेशों पर आचरण करें। माता-पिता, बड़े भाई-बहन का भी पूजन करें। पूजन करने के बाद गुरु को दक्षिणा दें और गरीबों को भोजन कराएं।
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