आदिवासी समाज को बचाने के लिए व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और स्वार्थ को रखना होगा पीछे
झारखंड के 14 लोकसभा सीटों में से 5 सीट आदिवासियों के लिए रिजर्व है। लोकसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करने से स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि अनारक्षित सीटों पर भाजपा दो से तीन लाख वोटों से जीता है जबकि दो आरक्षित सीटों में उसे हार का सामना करना पड़ा है एवं तीन आरक्षित सीट बहुत मुश्किल से जीता है। इसका सीधा अर्थ यह है कि आदिवासी भाजपा सरकार की नीतियों से दुःखी हैं। इसलिए आगामी दिसंबर 2019 को राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की राह बहुत कठिन होगी।
ग्लैडसन डुंगडुंग
झारखंड के 14 लोकसभा सीटों में से 5 सीट आदिवासियों के लिए रिजर्व है। लोकसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करने से स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि अनारक्षित सीटों पर भाजपा दो से तीन लाख वोटों से जीता है जबकि दो आरक्षित सीटों में उसे हार का सामना करना पड़ा है एवं तीन आरक्षित सीट बहुत मुश्किल से जीता है। इसका सीधा अर्थ यह है कि आदिवासी भाजपा सरकार की नीतियों से दुःखी हैं। इसलिए आगामी दिसंबर 2019 को राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की राह बहुत कठिन होगी।
लोकसभा चुनाव में मिली हार का हमलोग विश्लेषण कर रहे हैं और नई संभावनाओं को तलाश रहे हैं। मुंडा दिसुम में युवाओं के साथ हमने विश्लेषण किया है, जिसमें हार का सबसे बड़ा कारण निर्णदलीय प्रत्याशी हैं। हमने पहले ही कहा था कि इस बार का चुनाव समाज को बचाने का चुनाव है इसलिए पहले माटी, बाद में पार्टी, पहले समाज बाद में व्यक्ति और पहले आदिवासी बाद में धर्म। इसके बावजूद कुछ अति महत्वकांक्षी, स्वार्थी और व्यक्तिवादी लोग आदिवासी समाज को हराने के लिए चुनाव में खड़े हुए।
खूंटी, लोहरदगा और दुमका में हार का मूल कारण यही लोग हैं। हमने तय किया है कि इन लोगों से सवाल पूछा जायेगा कि इन लोगों का चुनाव में खड़ा होने का क्या मकसद था? क्या ये लोग जीतने के लिए खड़े थे? ये लोग कह सकते हैं कि वे जीतने के लिए खड़े थे लेकिन सवाल यह उठता है कि इनमें से लगभग सभी प्रत्याशी चुनाव से पहले दो या तीन विधानसभा क्षेत्र में ही कदम रखे थे तो ये किस आधार पर लोकसभा चुनाव जीतने का दावा कर सकते हैं? क्या इनमें विश्लेषण करने की क्षमता नही है? इन लोगों को आदिवासी समाज को हराने के लिए किस पार्टी ने कितना पैसा दिया? ऐसे बहुत सारे सवाल हैं, जिनका इन्हें जवाब देना होगा। आदिवासी समाज व्यक्तिवादी समाज नहीं है। इसलिए जो लोग आदिवासी समाज को बचाने की बात करते हैं उन्हें अपना व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और निजी स्वार्थ को पीछे रखना होगा।
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