एग्जिट पोल पर पगलाएं क्यों ?
एग्जिट पोल तो अंदाजी घोड़े होते हैं, यह जानते हुए भी हमारे नेता इन पर किस कदर पगलाए हुए हैं। अलग-अलग पार्टियों के प्रवक्ता टीवी चैनलों पर उन्हें सही या गलत ठहराने पर तुले हुए हैं। विरोधी दल अब चुनाव आयोग पर हमला बोल रहे हैं। वे मतदान-मशीनों पर भी सवाल उठा रहे हैं। यहां तक कि हमारे महान भारत रत्न प्रणब मुखर्जी भी उनके बारे में बोल पड़े हैं। याने इसका अर्थ यह हुआ कि विरोधी दल यह मानकर चल रहे हैं कि एग्जिट पोल के ज्यादातर नतीजे विश्वसनीय हैं याने वे चुनाव हार गए हैं अैर मोदी-पार्टी जीत गई है।
एग्जिट पोल तो अंदाजी घोड़े होते हैं, यह जानते हुए भी हमारे नेता इन पर किस कदर पगलाए हुए हैं। अलग-अलग पार्टियों के प्रवक्ता टीवी चैनलों पर उन्हें सही या गलत ठहराने पर तुले हुए हैं। विरोधी दल अब चुनाव आयोग पर हमला बोल रहे हैं। वे मतदान-मशीनों पर भी सवाल उठा रहे हैं। यहां तक कि हमारे महान भारत रत्न प्रणब मुखर्जी भी उनके बारे में बोल पड़े हैं। याने इसका अर्थ यह हुआ कि विरोधी दल यह मानकर चल रहे हैं कि एग्जिट पोल के ज्यादातर नतीजे विश्वसनीय हैं याने वे चुनाव हार गए हैं अैर मोदी-पार्टी जीत गई है।
उनसे कोई पूछे कि एग्जिट पोल का इन मतदान-मशीनों से क्या संबंध है ? क्या उनके आंकड़े इन मशीनों से निकले हैं ? ये पोल तो वे हैं, जो वोटरों से पूछ-पूछकर लिखे जाते हैं। इनका मशीनों से कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन मशीनों के खिलाफ शोर अभी से इसलिए मचाया जा रहा है कि हारने पर वे कह सकेंगे कि हमें पहले से ही पता था कि भाजपाइयों ने मशीनों में खुड़पेंच करके अपनी जीत पक्की कर रखी थी। इसमें शक नहीं है कि कई मशीनें खराब पाई जाती हैं और कुछ चलते-चलते भी खराब हो जाती हैं और उनके कारण लाइन में खड़े मतदाता थककर घर लौट जाते हैं लेकिन ऐसी अड़चनों का समाधान कठिन नहीं है।
यदि सत्तारुढ़ दल मशीनों के साथ किसी तरह का खिलवाड़ करता है तो भारत जैसे देश में उसका छिपा रहना असंभव है। इसीलिए विपक्ष को बौखलाने की जरुरत नहीं है। उसे 23 मई को चुनाव परिणाम का धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए। विपक्षी नेता इस बीच आपस में मिलकर कई वैकल्पिक रणनीतियां बनाएं, इसमें कोई बुराई नहीं है। लोकतंत्र के उत्तम स्वाथ्य के लिए सशक्त विपक्ष नितांत आवश्यक है, जिसका अभाव पिछली संसद में साफ-साफ दिखाई पड़ रहा था। सत्तारुढ़ दल को भी एग्जिट पोल के नतीजों पर इठलाने और पगलाने की जरुरत नहीं है। उसे अपनी खुशी अपने तक सीमित रखनी चाहिए। असली नतीजे पता नहीं क्या आ जाएं? 2004 में क्या हुआ था ?
‘शाइनिंग इंडिया’ का दीया अचानक बुझा पाया गया ! अभी से विपक्ष की प्रांतीय सरकारों को गिराने की बात करना भी उचित नहीं है। यदि केंद्र में भाजपा की मजबूत सरकार बन गई तो वे अपने आप हिलेंगी और गिरेंगी। पक्ष और विपक्ष चुनाव-परिणम आने तक के इस समय का उपयोग यदि राष्ट्रोत्थान की वैकल्पिक रणनीतियां बनाने में करें तो वे देश का और खुद का भी काफी भला करेंगे।
(लेखक के ये अपने विचार हैं)
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