सावन के महीने में हरिद्वार यात्रा क्यों हो जाती है अहम
क्या बच्चे, क्या बूढे और क्या जवान सभी बाबा भालेनाथ के रंग में रंगे होते हैं। इस अवसर पर संपूर्ण संसार शिवमय हो जाता है। हरिद्वार में उमड़ने वाली शिव भक्तों की भीड़ में देश के विभिन्न प्रांतों की संस्कृति के दर्शन भी होते हैं।
हरिद्वार में वैसे तो साल के बारहों महीने भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। परंतु चारधाम की यात्रा एवं सावन के पावन महीने में यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। क्योंकि हरिद्वार के कांवड़ मेले का महत्व कुंभ मेले के समान माना जाता है। सावन के महीने में लाखों की संख्या में शिव भक्त गंगा जल भरने हरिद्वार आते हैं। सुंदर तथा सजीले कांवड़ में गंगा जल भरकर शिव भक्त ले जाते हैं तथा बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं।
सावन के महीने में हरिद्वार का दृश्य मनोरम होता है। चारों ओर कांवड़ियों का हुजूम नजर आता है। शिव भक्त कांवड़ियों में अद्भुत हर्ष, उल्लास, उमंग तथा उत्साह देखने को मिलता है। कहते हैं कि तन-मन यदि भगवान भोलेनाथ के रंग में रंगा हो, तो आस्था भी कई रंगों में सामने आती है। अतः कांवड़ यात्रा में आस्था के ऐसे ही कई रूप देखने को मिलते हैं। नंगे पांव सैकड़ों मील की पैदल यात्रा हो अथवा अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए शरीर को किसी अन्य तरह के कष्ट देने की बात। शिव भक्तों में अटूट आस्था का यह नजारा यहां आम है।
क्या बच्चे, क्या बूढे और क्या जवान सभी बाबा भालेनाथ के रंग में रंगे होते हैं। इस अवसर पर संपूर्ण संसार शिवमय हो जाता है। हरिद्वार में उमड़ने वाली शिव भक्तों की भीड़ में देश के विभिन्न प्रांतों की संस्कृति के दर्शन भी होते हैं। हरिद्वार के पवित्र ब्रह्मकुंड से जल भरकर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश की ओर बढ़ता लाखों कांवड़ियों का मानव समुद्र प्राचीन मान्यताओं एवं धार्मिक आस्थाओं को जीवंत करता है।
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