सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित शील भूषण शर्मा जी से जानिए, आखिर 14 जनवरी के बजाय 15 जनवरी को क्यों मनाया जा रहा है मकर संक्रांति का पावन पर्व?
सुप्रसिद्ध जोयोतिषाचार्य पंडित शील भूषण शर्मा जी के अनुसार इस वर्ष सूर्य का मकर में प्रवेश मंगलवार दिनांक 14 जनवरी 2020 को रात्रि 2 बजकर 07 मिनट पर पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रकालीन तुला लग्न में होगा। संक्रान्तिजन्य पुण्यकाल बुधवार दिनांक 15 जनवरी 2020 को होगा। अर्थात मकर संक्रान्तिजन्य स्नान-दान आदि 15 जनवरी को विहित होगा।
भारत में मकर संक्रांति विशेष रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक चेतनाओं की जागृति का पर्व है। देश के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से इस पर्व को मनाते हैं। पर मकर संक्रांति को लेकर इस साल एक विशेष स्थिति बनी हुई है। अनेक प्रश्न खड़े हो रहे हैं। मसलन, मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनायी जाए या फिर 15 जनवरी को? और सूर्यदेव कब धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे?
यदि आपके मन में भी ऐसे प्रश्न खड़े हो रहे हैं, तो सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित शील भूषण शर्मा जी के पास हैं आपके सभी प्रश्नों के उत्तर।
श्री शील भूषण शर्मा जी के अनुसार इस वर्ष सूर्य का मकर में प्रवेश मंगलवार दिनांक 14 जनवरी 2020 को रात्रि 2 बजकर 07 मिनट पर पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रकालीन तुला लग्न में होगा। संक्रान्तिजन्य पुण्यकाल बुधवार दिनांक 15 जनवरी 2020 को होगा। अर्थात मकर संक्रान्तिजन्य स्नान-दान आदि 15 जनवरी को विहित होगा।
श्री शील भूषण शर्मा जी ने बताया कि खगोलीय ज्योतिष के अनुसार,पृथ्वी की गति सूर्य संक्रमण के सापेक्ष प्रतिवर्ष 50 विकला अर्थात 2 मिनट पीछे रह जाती है। यानी एक वर्ष में सूर्य-संक्रान्ति का समय 2 मिनट आगे खिसक जाता है। बढते क्रम में प्रत्येक 72 से 80 वर्षों में पूरे एक दिन का हो जाता है। अर्थात संक्रान्ति एक दिन आगे खिसक जाती है।
वहीं, लीप ईयर आने पर तारीख समायोजन के कारण एक दिन पीछे होनेवाली संक्रान्ति अगले वर्ष दोबारा आगे बढ़ जाती है। इसी कारण मकर संक्रान्ति की तारीखों में अंतर हो जाता है। और यही कारण है कि 17वीं-18वीं शताब्दी में 11 जनवरी और 12 जनवरी को होनेवाली मकर संक्रान्ति इस वर्ष 15 जनवरी को मनायी जा रही है।
श्री शील भूषण शर्मा जी ने बताया कि 18वीं-19वीं शताब्दी में 12 जनवरी-13 जनवरी को, 19वीं-20वीं शताब्दी में 13-14जनवरी को, 20वीं-21वीं शताब्दी में 14-15जनवरी और इस शताब्दी के अंत तक मकर संक्रान्ति 15-16 जनवरी को मनायी जाने लगेगी। सन् 2020 में पुनः 15 जनवरी को मनायी जानेवाली मकर संक्रान्ति 2030 तक हर 2 वर्ष के अंतर पर क्रमशः 14 जनवरी और 15 जनवरी को मनायी जाती रहेगी। 2030 के बाद मकर संक्रमण हर वर्ष 15 जनवरी को ही होने लगेगा।
दरअसल, सूर्यदेव का जिस दिन मकर राशि में प्रवेश होता है, उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है। सूर्यदेव जब भी एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे ही संक्रांति कहा जाता है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी को होता है, जिसकी वजह से इस दिन मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। लेकिन ये हमेशा के लिए आवश्यक नहीं है कि 14 तारिख को ही सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश हो।
वैदिक गणित और हिन्दू पंचांग के अनुसार इस बार सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 और 15 जनवरी की मध्य रात्रि में रात 2 बजकर 7 मिनट पर होगा। इसलिए 14 जनवरी को तो पूरे दिन सूर्य धनु राशि में ही रहेगा, इससे 14 जनवरी को तो मकर संक्रांति का कोई तर्क बनता ही नहीं है।
14 तारिख बीतने पर रात 2 बजकर 8 मिनट पर सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश होगा, जिसके कारण मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को होगा। इसलिए इस दिन मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाएगा। अगर पिछले दस वर्षों को देखें, तो वर्ष 2011, 2012, 2015, 2016 और 2019 में भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनायी गयी थी।
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