फौज पर बरसे पाक-जज (डॉ. वेदप्रताप वैदिक)

पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने वह काम कर दिखाया है, जो वहां के नेता, पत्रकार, विद्वान और नौकरशाह सपने में भी नहीं कर सकते। अदालत ने अपने एक फैसले में साफ-साफ कहा है कि पाकिस्तान की फौज, गुप्तचर संगठनों और सरकारों को अपनी मर्यादा में रहना चाहिए। उसका उल्लंघन करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने यह कोई किताबी सिद्धांत नहीं बघारा है बल्कि 2017 में ‘तहरीके-लबायके-पाकिस्तान’ द्वारा किए गए इस्लामाबाद के घेराव के बारे में अपना फैसला सुनाया है। तहरीक ने 20 दिनों तक ऐसा घेरा डाला था कि इस्लामाबाद में काम-काज लगभग ठप्प हो गया था।

फौज पर बरसे पाक-जज (डॉ. वेदप्रताप वैदिक)

पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने वह काम कर दिखाया है, जो वहां के नेता, पत्रकार, विद्वान और नौकरशाह सपने में भी नहीं कर सकते। अदालत ने अपने एक फैसले में साफ-साफ कहा है कि पाकिस्तान की फौज, गुप्तचर संगठनों और सरकारों को अपनी मर्यादा में रहना चाहिए। उसका उल्लंघन करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने यह कोई किताबी सिद्धांत नहीं बघारा है बल्कि 2017 में ‘तहरीके-लबायके-पाकिस्तान’ द्वारा किए गए इस्लामाबाद के घेराव के बारे में अपना फैसला सुनाया है। तहरीक ने 20 दिनों तक ऐसा घेरा डाला था कि इस्लामाबाद में काम-काज लगभग ठप्प हो गया था।

इस मजहबी संगठन का मुकाबला करने में पाकिस्तान की फौज ने सरकार का साथ देने की बजाय तहरीक को ले-देकर मनाया था। अदालत ने फौज की इस भूमिका की कड़ी आलोचना की है। अदालत ने कहा है कि फौज द्वारा राजनीति करना पाकिस्तान के संविधान के विरुद्ध है। फौज का कोई भी सदस्य यदि किसी भी राजनीतिक दल या उसके किसी नेता या गुट का समर्थन या विरोध करता हुआ पाया जाए तो सरकार को उसके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। फौज या कोई भी गुप्तचर संगठन यदि किसी भी व्यक्ति या अखबार और टीवी आदि की स्वतंत्रता में आड़े आए तो उसके खिलाफ भी सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसा फैसला करनेवाले दोनों जजों फैज ईसा और मुनीर आलम बधाई के पात्र हैं लेकिन सवाल यह है कि उनकी सुनेगा कौन ? उनके इस क्रांतिकारी फैसले की कीमत क्या है ? उनके इस फैसले के समर्थन में किस नेता की मां ने दूध पिलाया है कि वह बयान देगा ? कौनसा टीवी चैनल या अखबार ऐसा है, जो इस फैसले की तारीफ करेगा ? खुद पाकिस्तान का सर्वोच्च न्यायालय फौज की गुलामी करने के लिए बदनाम हो चुका है। अयूब खान, जिया उल हक और मुशर्रफ का समर्थन किसने किया था।

फौजी तख्ता पलट को इसी अदालत ने ‘जरुरत का सिद्धांत’ कहकर जायज ठहराया था। बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ के फौजी-तख्ता-पलट का किस अदालत ने विरोध किया था। इसमें शक नहीं कि पाकिस्तान के वकीलों ने जनरल मुशर्रफ के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन चलाया था और सलमान तासीर और आसिया बीवी के मामले में अदालत ने साहसिक निर्णय किए हैं लेकिन पाकिस्तानी राज्य का चरित्र ही ऐसा बन गया है कि वहां की असली ताकत फौज के हाथ में ही रहती है। यदि फौज का डंडा न चले तो पाकिस्तान के चार टुकड़े आसानी से हो सकते हैं। फौज के वर्चस्व का एक बड़ा कारण है- पाकिस्तानियों के दिल में बैठा हुआ भारत का भय ! उन्हें लगता है कि सिर्फ फौज ही उन्हें भारत से बचा सकती है। इसीलिए पाक-जजों का फौज पर बरसना बेमतलब है।