एक की नादानी और दूसरे की चालाकी, यही हैं यूपी में महागठबंधन के टूटने की कहानी
सपा और बसपा का गठबंधन भी ऐसा ही था जो एक की नादानी और दूसरे की चालाकी के कारण टूटा। ये भ्रम भी टूटा कि गठबंधन जीत की गारंटी है। मतदाताओं के समर्थन को बेचा नहीं जा सकता, न बेचना चाहिए।
देश की बहुसंख्यक आबादी को सत्ता की भागीदारी सुनिश्चित करने में जुटे बहुजन समाजसेवियों - बुद्धिजीवियों को उत्तरप्रदेश और बिहार में हुए महागठबंधन से बड़ी उम्मीदें थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने पर गठबंधन दरकने लगा हैं। यूपी में सपा और बसपा गठबंधन के अलग-अलग राह चुनने पर सोशल मीडिया में पिछड़े -दलित बुद्धिजीवी काफी निराश हैं। वे इसके लिए सीधे -सीधे मायावती को जिम्मेदार मान रहे हैं। सभी का मानना हैं कि महागठबंधन को बड़ी लकीर खींचनी चाहिए थी।
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने फेसबुक पर लिखा हैं कि जिस समय सपा और बसपा के कार्यकर्ताओं पर बीजेपी के लोग जानलेवा हमले कर रहे हैं, चुनाव बाद तीन दर्जन लोग मारे जा चुके हैं, पब्लिक सर्विस कमीशन के घोटाले को लेकर लाखों छात्रों का भविष्य ख़तरे में है उस समय अकेले चुनाव लड़ने का फ़ैसला बहनजी ने क्यों लिया, ये मेरी समझ से परे है। हालाँकि उनको अपनी पार्टी के बारे में कोई भी फ़ैसला करने का अधिकार है। 25 साल बाद समाज में फिर से बनी एकता को सहेजने का समय है। संकट में दोस्ती की परख होती है। अगर बीएसपी अलग रास्ता चुनती है तो समाज के लिए ये लोकसभा चुनाव परिणाम से भी बड़ा झटका होगा। चुनाव आते जाते रहेंगे। लोगों ने ख़ून-पसीना देकर गठबंधन का समर्थन किया है। सामाजिक एकता बनी रहे। ये ज़्यादा क़ीमती चीज़ है।
SP-BSP combined rally in U.P.
वहीँ महेंद्र यादव ने लिखा हैं कि गठबंधन, वो भी दो प्रमुख विरोधियों के बीच तो मतदाताओं की आजादी छीनना है। सपा और बसपा का गठबंधन भी ऐसा ही था जो एक की नादानी और दूसरे की चालाकी के कारण टूटा। ये भ्रम भी टूटा कि गठबंधन जीत की गारंटी है। मतदाताओं के समर्थन को बेचा नहीं जा सकता, न बेचना चाहिए।
सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह का कहना हैं कि बसपा सपा गठबंधन का टूटना एक दुःखद अध्याय हैं। वर्तमान में देश की राजनीति फ़ासीवादी एक दलीय प्रणाली की और जा रही हैं। बड़ा विपक्षी दल कांग्रेस हाशिये पर आ गई।किसी भी स्वस्थ प्रजातन्त्र के लिए मजबूत विपक्ष होना जरूरी हैं।पर अब विपक्ष छिन्न भिन्न हो गया। बहुजन आंदोलन अपना लक्ष्य खो चुका इसकी जिम्मेदार पूरी तरह से बहनजी हैं उन्होंने कभी अपनी पार्टी में युवा नेतृत्व उभरने न दिया।चंबल क्षेत्र के मध्यप्रदेश से श्री फूल सिंह बरैया स्वाभाविक उत्तराधिकारी थे किसी समय में पर उन्हें पार्टी से बाहर जाना पड़ा। अखिलेश यादव देश के सबसे सज्जन राजनेताओं में से एक हैं बिल्कुल सरल सहज छल प्रपंच से कोसो दूर उन जैसे व्यक्ति का साथ छोड़ मायावती जी ने एक बड़ी गलती की। अखिलेश जी को कांग्रेस के साथ स्थायी गठबंधन करना चाहिए था।
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