आइये तेजस्वी, मिलकर भैंस चराएं

राजनीति में नेतृत्व और भैंस की चरवाही में जितनी परेशानी है, उतना ही आनंद। आप भैंस को छूटा छोड़कर बहुत देर तक चैन नहीं बैठ सकते। ठीक वैसे ही कार्यकर्ताओं से दूर रहकर आप उनका नेतृत्व बहुत लंबे समय तक नहीं संभाल सकते हैं। भैंस कब आपको पटकनी दे दे और कार्यकर्ता कब आपको झटका देकर चले जाएं, कोई नहीं जानता है। वीरेंद्र यादव की स्पेशल रिपोर्ट -

आइये तेजस्वी, मिलकर भैंस चराएं
आइये तेजस्वी, मिलकर भैंस चराएं

वीरेंद्र यादव :
राजनीति में नेतृत्व और भैंस की चरवाही में जितनी परेशानी है, उतना ही आनंद। आप भैंस को छूटा छोड़कर बहुत देर तक चैन नहीं बैठ सकते। ठीक वैसे ही कार्यकर्ताओं से दूर रहकर आप उनका नेतृत्व बहुत लंबे समय तक नहीं संभाल सकते हैं। भैंस कब आपको पटकनी दे दे और कार्यकर्ता कब आपको झटका देकर चले जाएं, कोई नहीं जानता है।

हम हाई स्कूल में पढ़ते थे। जेठ का महीना था और स्कूल में छुट्टी थी। भैंस चराने के लिए सोन नदी में चले जाते थे। हर दिन दोपहर में भैंस को सोन के पानी में धोकर उसकी पीठ पर बैठ जाते थे। कभी-कभार भैंस की पीठ पर झपकी भी ले लेते थे। भैंस खुद घर तक पहुंच जाती थी। लेकिन एक दिन हमारा हाल नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव वाला हो गया। हम भैंस धोकर पीठ पर बैठ गये और भैंस घर की ओर बढ़ चली। लेकिन रास्ते में अचानक भैंस छलांग लगा दी। भैंस आगे और हम पीठ के भले पीछे। जबदरस्त चोट लगी। थोड़ी दूर जाकर भैंस रुक गयी। हम भी उठे और आगे बढ़कर फिर भैंस की पीठ पर बैठे और घर चल दिये। इस हादसे में इतनी चोट लगी थी कि करीब एक माह बिस्तर पर पड़े रहे थे। इसके बाद चरवाही छूट गयी।

हम बात तेजस्वी यादव की कर रहे थे। दरअसल तेजस्वी यादव को भी हमारे ही तरह भ्रम हो गया था कि पार्टी के कार्यकर्ता उन्हें अपने कंधे पर ढोते रहेंगे। झटका भी हमारा वाला लगा और कार्यकर्ताओं ने कंधा झाड़ दिया। हम तो चरवाही छोड़ दिये, लेकिन तेजस्वी नेतृत्व नहीं छोड़ सकते हैं। राजद की समीक्षा बैठक चल रही है। उन्हें ही महागठबंधन का नेता स्वीकार किया गया और आगे की लड़ाई उनके ही नेतृत्व में लड़ा जायेगा। यही तय हुआ।

लेकिन सवाल यह है कि क्या तेजस्वी नेतृत्व करने को तैयार हैं। चुनाव प्रचार के दौरान हर तीसरे दिन बीमार पड़ जाते थे। साइकिल यात्रा गया से पटना के लिए शुरू करते हैं और जहानाबाद में थक जाते हैं। राजनीति से मन भरुआ जाता है तो ‘यात्रा’ पर निकल जाते हैं। किस जगह की यात्रा या सैर पर गये हैं, उनके विश्वस्तों को भी नहीं पता होता है। नेतृत्व के ‘गुम’ हो जाने का खामियाजा कार्यकर्ताओं को झेलना पड़ता है और फिर नेतृत्व से आजिज कार्यकर्ता कंधा झटक देता है। लोकसभा चुनाव परिणाम सामने है। अपने ही विधान सभा क्षेत्र राघोपुर में मात्र 242 वोटों की बढ़त दिला पाये पार्टी उम्मीदवार शिवचंद्र राम को।

कार्यकर्ता भी कम दोषी नहीं हैं। मुख्यमंत्री के बेटे में आम आदमी की छवि तलाशते हैं, आम आदमी की कार्यशैली की उम्मीद करते हैं। तेजस्वी तेज धूप बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। लू के थपेड़े सह नहीं पाते हैं। 15 मिनट पैदल चल नहीं सकते हैं। इसमें तेजस्वी का क्या दोष है। दोषी वह कार्यकर्ता है, जो तेजस्वी यादव से लालू यादव जैसे व्यवहार की उम्मीद करता है। जिसे चौकी पर बैठना है, वह भागा जा रहा है और कार्यकर्ता पीछे-पीछे चौके लेकर दौड़ रहा है।

हम बात चरवाही की कर रहे थे। चरवाही का अपना आनंद है। तेजस्वी को इसका आनंद लेना चाहिए। जिस जाति-वर्ग का नेतृत्व करते हैं, उसके खटाल में जाना चाहिए। उस परिवार में जाना चाहिए। उनके दुख-दर्द को समझना चाहिए। भोर से लेकर देर रात तक गाय-भैंस की देखभाल करने वाला ‘रायजी’ का बच्चा पढ़ भी रहा है या सिर्फ चरवाही कर रहा है, इसका हिसाब भी तेजस्वी को रखना चाहिए। एक दिन हमारे रायजी का बच्चा स्कूल ड्रेस में घर पर दूध पहुंचाने आ गया। अगले दिन हम खटाल में गये और हिदायत दी कि बच्चा स्कूल ड्रेस में किसी के घर दूध पहुंचाने नहीं जाएगा।

तेजस्वी की लड़ाई उन लोगों से है, जो उनके पिता की पराजित कर सत्ता शीर्ष पर आये हैं। उनसे जीत पाना इतना आसान नहीं है। लेकिन बहुत मुश्किल भी नहीं है। इसके लिए ‘दरबा को दालान’ बनाना होगा। दस नंबर का दरवाजा आम लोगों के लिए बंद रहा तो तेजस्वी के लिए भी संभावनाओं का दरवाजा खुलने की उम्मीद नहीं है। तेजस्वी को यात्रा या सैर के लिए दिल्ली, कोलकाता या विदेश जाने के बजाये खेत-खलिहानों में जाना चाहिए। सर्किट हाउस के बजाये किसी कार्यकर्ता के यहां ठहरना चाहिए। किसी कार्यक्रम को ‘इवेंट’ बनाने के बजाए सामाजिक आयोजन बनाना चाहिए। समाज के लोग और समाज के सरोकार से जुड़कर ही तेजस्वी अपनी ल़डा़ई जीत सकते हैं। ‘नीतीश निंदा’ और ‘लालू विलाप’ को जनता अस्वीकार कर चुकी है। अस्वीकार करने वालों में सबसे ज्यादा वही लोग हैं, जो सामाजिक न्याय के आंदोलन में सशक्त हुए थे। अब आंदोलन के स्वरूप और सरोकार भी बदल गये हैं। इस बदलाव के साथ तेजस्वी को भी खुद को बदलना चाहिए। संभावित और सकारात्मक बदलाव विपक्ष और बिहार दोनों के हित में होगा।