विषपान के वक्त भगवान शिव ने क्यों किया था श्रीहरि विष्णु का स्मरण?

भगवान शिव जिसके आराध्य हों या फिर अगर कोई साधक शिवजी का ध्यान करता हो, तो उनके बारे में कई भाव मन में प्रस्फुटित होते हैं। जैसे कि भगवान शिव त्रिशूल लिए साधना पर बैठे है। उनका तीसरा नेत्र यानी भ्रिकुटी बंद है। उनकी जटाओं से गंगा प्रवाहित हो रही है। उनका शरीर समुद्र मंथन के समय विषपान करने की वजह से नीला दिख रहा है। शिवजी की जटाओं और शरीर के इर्द-गिर्द कई सांप लिपटे हुए है। शिवजी के मस्तक पर एक ओर चंद्र है, तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। साधन क्रम में विचार सागर में कई विचारों का आगमन होता है।

विषपान के वक्त भगवान शिव ने क्यों किया था श्रीहरि विष्णु का स्मरण?
Pic of Neelkath Mahadev Temple, Hrishikesh
विषपान के वक्त भगवान शिव ने क्यों किया था श्रीहरि विष्णु का स्मरण?
विषपान के वक्त भगवान शिव ने क्यों किया था श्रीहरि विष्णु का स्मरण?
विषपान के वक्त भगवान शिव ने क्यों किया था श्रीहरि विष्णु का स्मरण?
विषपान के वक्त भगवान शिव ने क्यों किया था श्रीहरि विष्णु का स्मरण?

भगवान शिव क्यों कहलाएं नीलाकंठ?

भगवान शंकर नीलकंठ क्यों कहलाए, इसके पीछे भी धार्मिक एवं अध्यात्मिक कथा है। शिव पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के कथनानुसार देवतागण एवं असुर जब अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे, तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयानक विष निकला। उस विष की अग्नि से तीनों लोक और दसों दिशाएं जलने लगीं। देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व यहां तक कि यक्ष आदि भी उस विष की गर्मी से जलने लगे। तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने भयंकर उस विष को अपने शंख में भरा और उसे पी गए।

भगवान शिव का कंठ कैसे पड़ा नीला?

भगवान शिव ने उस कालकूट विष को पीते वक्त भगवान विष्णु का स्मरण किया। उन्होंने ऐसा क्यों किया? वास्तव में विषपान के समय भगवान शिव ने श्रीहरि विष्णु को इसलिए याद किया, क्योंकि श्रीहरि अपने भक्तों के समस्त संकट हर लेते हैं। अतः श्रीहरि विष्णु ने उस विष को शिवजी के कंठ यानी गले में ही रोककर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया। परंतु विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया। संसार का कल्याण करने वाले भगवान शिव इसके उपरांत नीलंकठ के नाम से प्रसिद्ध हुए। कथा के अनुसार जिस समय भगवान शिव विषपान कर रहे थे, उस समय विष की कुछ बूंदें पृथ्वी पर भी गिरीं, जिससे बिच्छू, सांप आदि जीवों और कुछ वनस्पतियों ने भी ग्रहण कर लिया। इसी विष के कारण वे विषैले हो गए। 

क्यों किया जाता है भगवान शिव का जलाभिषेक?

शास्त्रों में भगवान शिव के अनेक कल्याणकारी रूपों एवं नामों का गुणगान किया गया है। माँ गंगा को सिर पर धारण किया, तो गंगाधर पुकारे गए। भूतों के स्वामी होने से भूतभावन कहलाते हैं। कोई उन्हें भोलेनाथ, तो कोई देवाधिदेव महादेव के नाम से पुकारता है। भगवान शिव ने विषपान किया तो नीलकंठ कहलाए। 

कब से हुई जलाभिषेक की शुरुआत?

भगवान शिव को जलाभिषेक किया जाता है। यह सभी जानते हैं। परंतु क्या आपको पता है कि भगवान शिव को जलाभिषेक करने की शुरुआत कब से हुई। यदि नहीं, तो आज हम आपको बताते हैं। जी हां, भगवान शिव को त्रेतायुग से जलाभिषेक किया जा रहा है। शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से निकले कालकूट नामक विष को पीने से शिव जी अचेत हो गए थे। ब्रह्माजी के कहने पर देवताओं ने जड़ी-बूटियों के साथ भगवन शिव का जलाभिषेक किया। इसके बाद शिवजी की चेतना लौटी। इस घटना के प्रतीक स्वरूप मणिकूट पर्वत पर एक शिवलिंग प्रकट हुआ, जो आज नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है।

कहां से हुई जलाभिषेक की शुरुआत?

भगवान शिव का पहली बार जलाभिषेक नीलकंठ तीर्थ में हुआ था। इसलिए यहीं से भगवान शिव का जलाभिषेक करने की परंपरा शुरू हुई। जिस महीने में शिवजी ने विष पीया तथा उनका जलाभिषेक देवताओं ने किया, वह सावन का महीना था। इसलिए सावन में नीलकंठ महादेव का जलाभिषेक अति-उत्तम माना जाता है। नीलकंठ महादेव मंदिर के शिवलिंग पर जलाभिषेक करना बहुत पुण्यदायी होता है।