कांग्रेस के लिए G-23 से बड़ी टेंशन है G-3, इनसे निपट पाए तभी सेफ है पार्टी का भविष्य
अगर कांग्रेस अपने से अलग होकर बनी इन पार्टियों से समझौता करे तो शायद आने वाले दिनों में कांग्रेस के दिन बदल सकते हैं। हाल के महीनों में जी-23 कांग्रेस के उन 23 वरिष्ठ नेताओं के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है जिन्होंने बीते साल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर पार्टी संगठन में बड़े बदलावों की मांग की थी। हालांकि, कांग्रेस का भविष्य फिलहाल इसपर निर्भर करता है कि वह 'तीन नेताओं के समूह' यानी ममता बनर्जी, शरद पवार और जगन रेड्डी से कैसे निपटती है न कि इन 23 बागी नेताओं से।
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस शायद अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। पार्टी में कमजोर नेतृत्व, अंदरूनी कलह और चुनावों में मिलती लगातार हार ने कांग्रेस का कद कम कर दिया है। हाल यह है कि पार्टी के अपने ही 23 नेता बागी होकर लगातार हमलावर रुख अपनाए हुए हैं। इस समूह को जी-23 के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन कांग्रेस के लिए जी-23 से बड़ी चुनौती जी-3 की है। ये तीन नेता हैं ममता बनर्जी, शरद पवार और जगन रेड्डी। दरअसल, ये तीनों नेता कांग्रेस की टूट का ही नतीजा हैं, जो अब अपने-अपने क्षेत्रों में कांग्रेस से भी बड़ी पार्टी बनकर उभरे हैं।
ममता से राहें जुदा होने के पीछे कम सीटें हैं वजह?
साल 1998 में ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन किया। इसके ग्यारह साल बाद टीएमसी ने सीपीआईएम को हराने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। यह गठबंधन कारगर रहा और 1977 के बाद पहली बार लेफ्ट फ्रंट को राज्य में बहुमत नहीं मिला। टीएमसी-कांग्रेस के गठबंधन ने साल 2011 विधानसभा चुनावों में एक बार फिर लेफ्ट फ्रंट को हराया।
हालांकि, इस दौरान टीएमसी ने अपना आधार मजबूत किया और फिर साल 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को झटका देते हुए पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा। पार्टी ने राज्य की 42 में से 34 लोकसभा सीटें जीतीं। वहीं कांग्रेस की सीटें 6 से घटकर 4 पर आ गई।
इसके बाद कांग्रेस ने साल 2016 के विधानसभा चुनावों में लेफ्ट फ्रंट के साथ गठबंधन करने का फैसला किया और कांग्रेस की सीटें यहां 42 से बढ़कर 44 हो गई। 2021 के चुनावों में भी कांग्रेस राज्य की 90 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच गठबंधन न होने के पीछे सबसे बड़ी वजह वैचारिक मतभेद नहीं बल्कि यह तथ्य है कि टीएमसी कांग्रेस को कभी भी उतनी सीटें नहीं देती जितनी उसे लेफ्ट के साथ गठबंधन करने पर मिली है। तृणमूल को समर्थन देने वाली पश्चिम बंगाल की बीजेपी विरोधी अन्य क्षेत्रीय पार्टियों ने चुनाव न लड़ने का फैसला किया है।
तो क्या सहयोगियों के लिए बोझ बन गई है कांग्रेस?
भले ही कांग्रेस देश में सिकुड़ती जा रही है लेकिन फिर भी उसका वोट शेयर ठीक-ठाक है और आठ मुख्य राज्यों, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक और असम में वह अभी भी बीजेपी को सीधे टक्कर दे रही है। हालांकि, इस सूची में हिमचाल प्रदेश और पूर्वोत्तर के छोटे राज्य नहीं हैं।
लेकिन तीन बड़े राज्य पश्चिम बंगाल में टीएमसी, महाराष्ट्र में एनसीपी और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस जैसी मुख्य पार्टियां जो कि कांग्रेस से अलग होकर ही बनीं, अब बीजेपी के लिए चुनौती बन रही हैं। इन राज्यों के चुनावी संघर्ष को देखा जाए तो कांग्रेस यहां अपने ही लोगों से लड़ती नजर आती हैं। इन तीन राज्यों में देश की 543 लोकसभा सीटों में से 115 सीटें हैं।
अगर कांग्रेस अपने से अलग होकर बनी इन पार्टियों से समझौता करे तो शायद आने वाले दिनों में कांग्रेस के दिन बदल सकते हैं। हाल के महीनों में जी-23 कांग्रेस के उन 23 वरिष्ठ नेताओं के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है जिन्होंने बीते साल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर पार्टी संगठन में बड़े बदलावों की मांग की थी। हालांकि, कांग्रेस का भविष्य फिलहाल इसपर निर्भर करता है कि वह 'तीन नेताओं के समूह' यानी ममता बनर्जी, शरद पवार और जगन रेड्डी से कैसे निपटती है न कि इन 23 बागी नेताओं से।
Comments (0)