सुप्रीम फैसला आने के बाद जानिए अब अयोध्या में कब, कहां और कैसे बनेगा राम मंदिर?

विश्व हिन्दू परिषद के प्रस्तावित मंदिर मॉडल के भूतल के पत्थरों की तराशी का कार्य हो चुका है। रामजन्म भूमि के पार्श्व में प्रवाहित उत्तरावाहिनी मां सरयू,आग्नेय कोण पर विराजमान हनुमानजी, अयोध्यावासी और श्रद्धावनत साधक अब जल्द अपने रामलला को ऐसे भव्य भवन में विराजमान होते देखेंगे, जिसकी कल्पना और कामना पांच सदी से होती रही है।

सुप्रीम फैसला आने के बाद जानिए अब अयोध्या में कब, कहां और कैसे बनेगा राम मंदिर?
GFX of Proposed Sri Ram Temple In Ayodhya
सुप्रीम फैसला आने के बाद जानिए अब अयोध्या में कब, कहां और कैसे बनेगा राम मंदिर?
सुप्रीम फैसला आने के बाद जानिए अब अयोध्या में कब, कहां और कैसे बनेगा राम मंदिर?
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सुप्रीम फैसला आने के बाद जानिए अब अयोध्या में कब, कहां और कैसे बनेगा राम मंदिर?
सुप्रीम फैसला आने के बाद जानिए अब अयोध्या में कब, कहां और कैसे बनेगा राम मंदिर?

देश की शीर्ष अदालत ने वर्षों पुराना अयोध्या मामले में फैसला दे दिया है। अब जल्द ही केंद्र सरकार एक ट्रस्ट बनाएगी और उस ट्रस्ट में शामिल सदस्य राम मंदिर निर्माण की दिशा में कार्य करेंगे। लेकिन आप सभी को यह जानना भी जरूरी है कि पुरातन और पावन अयोध्या नाम में अकार, यकार और धकार को क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वाचक माना जाता है।

अयोध्या के किले, टीले और सरोवर पुराणों में दर्ज हैं। यहां के प्रतापी राजा पूजित हुए। 491 वर्ष पुराने विवाद का पटाक्षेप मंदिर के रूप में सुबह की ताजगी के एहसास से भर देता है। सुप्रीम कोर्ट से अब जब सबसे बड़े और लंबे मुकदमे का फैसला आ चुका है, तब यहां यह जानना भी दिलचस्प है कि रामजन्मभूमि पर पांच सदी के बाद जो मंदिर बनेगा, वह कैसा होगा?

आपको बता दें कि जिस राममंदिर का स्वप्न देखा गया है,वह दो मंजिल का होगा। प्रथम मंजिल की ऊंचाई 18 फीट और दूसरी मंजिल की ऊंचाई 15 फीट नौ इंच होगी। पिछले 28 वर्षों से राजस्थान, गुजरात, मिर्जापुर और देश के अन्य हिस्सों से आए कारीगर कार्यशाला में करीब एक लाख घनफुट पत्थरों की तराशी का कार्य पूरा कर चुके हैं।

विश्व हिन्दू परिषद के प्रस्तावित मंदिर मॉडल के भूतल के पत्थरों की तराशी का कार्य हो चुका है। रामजन्म भूमि के पार्श्व में प्रवाहित उत्तरावाहिनी मां सरयू,आग्नेय कोण पर विराजमान हनुमानजी, अयोध्यावासी और श्रद्धावनत साधक अब जल्द अपने रामलला को ऐसे भव्य भवन में विराजमान होते देखेंगे, जिसकी कल्पना और कामना पांच सदी से होती रही है।

रामजन्म भूमि पर राममंदिर बनाने के लिए विश्व हिन्दू परिषद ने जो नक्शा बनाया है, उसके अनुसार प्रस्तावित मंदिर 268 फीट लंबा है। जबकि चौड़ाई करीब 140 फीट है। मंदिर की ऊंचाई 128 फीट है। मंदिर की प्रथम पीठिका यानी चबूतरा आठ फीट ऊंची होगी। इन तक प्रशस्त सीढ़ियों से पहुंचा जा सकेगा। इसी पीठिका पर मंदिर का 10 फीट चौड़ा परिक्रमा मार्ग होगा। चार फीट नौ इंच ऊंची एक आधार पीठिका पर मंदिर का निर्माण होना है। मंदिर के अग्रभाग, सिंहद्वार, नृत्यमंडप, रंगमंडप और गर्भगृह के रूप में मुख्यतया पांच प्रखंड होंगे।

राम मंदिर 212 स्तंभ लगेंगे। प्रथम मंजिल में 106 और इतने ही दूसरी मंजिल पर लगेंगे। प्रथम मंजिल पर लगने वाले स्तंभों की ऊंचाई 16 फीट छह इंच और दूसरी मंजिल पर लगने वाले स्तंभों की ऊंचाई 14 फीट छह इंच होगी। हर स्तंभ पर यक्ष-यक्षिणियों की 16 मूर्तियां और अन्य कलाकृतियां उत्कीर्ण होंगी। इनका व्यास चार से पांच फीट तक रहेगा।

राम मंदिर के जिस कक्ष में रामलला विराजेंगे, उस गर्भगृह से ठीक ऊपर 16 फीट तीन इंच का विशेष प्रकोष्ठ होगा। इसी प्रकोष्ठ पर 65 फीट तीन इंच ऊंचा शिखर निर्मित होगा। प्रस्तावित मंदिर में एक लाख 75 हजार घन फीट लाल बलुआ पत्थर प्रयुक्त होगा। अगर तैयारियों पर गौर करें तो निर्धारित स्थल पर प्रथम तल के तराशे गए पत्थरों को लगाने में अधिक से अधिक छह माह का समय लगेगा। इसके बाद दो से ढाई वर्ष में मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा। पत्थरों को ईंट-गारा की बजाय तांबा और सफेद सीमेंट से जोड़ा जाएगा। प्रथम तल के पत्थरों की शिफ्टिंग के साथ ही गर्भगृह भी आकार लेगा।

गौरतलब है कि विश्व हिन्दू परिषद की रामघाट स्थित रामजन्मभूमि न्यास कार्यशाला की स्थापना वर्ष 1990 के सितंबर माह में की गई। कार्यशाला के लिए मंदिर आंदोलन के शलाका पुरुष परमहंस रामचंद्रदास ने जमीन दान दी थी। कार्यशाला में ही प्रस्तावित मंदिर के मॉडल के साथ पूजित शिलाएं और तराशी गईं शिलाएं भी रखीं हैं। परमहंस के साथ मंदिर आंदोलन के अग्रदूत अशोक सिंहल, आचार्य गिरिराज किशोर, महंत नृत्यगोपाल दास, संघ विचारक मोरोपंत पिंगले जैसे महातामाओं ने कार्यशाला की आधारशिला रखी थी।

रामजन्मभूमि पर मौजूदा अस्थाई मंदिर की नींव वर्ष छह दिसंबर वर्ष 1992 को उस वक्त पड़ी थी, जब कारसेवकों ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। इससे पहले  वर्ष 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल का ताला खोलने और एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया था। वर्ष 1986 में एक फरवरी को जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दे दी थी। इसके बाद विवादित इमारत का ताला दोबारा खोला गया।

वर्ष 1992 में छह दिसंबर को कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचा ढहा दिया। ढांचा ढहने के बाद वहां 80 फीट लंबा,40 फीट चौड़ा और करीब 16 फीट ऊंचा अस्थाई मंदिर बनाया गया। वर्ष 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश जारी किया। तभी से लेकर अब तक रामजन्मभूमि पर रामलला का पूजन-अर्चन होता आ रहा है।

रामजन्मभूमि पर प्रस्तावित मंदिर का नक्शा नाप आदि लेने के बाद तैयार करने में तीन माह का समय लगा था। चंद्रकांत सोमपुरा बताते हैं कि तीन माह तक रोजाना थोड़ा-थोड़ा समय निकालकर नक्शा तैयार किया। इसके बाद यह नक्शा अशोक सिंहल को सौंपा। फिर विहिप के शीर्ष नेताओं, संतों और अखाड़ों के प्रमुखों को यह नक्शा दिखाया गया। फिर तय हुआ कि इसी नक्शे के मुताबिक मंदिर का निर्माण किया जाएगा।

प्रस्तावित राममंदिर का मॉडल सबसे पहले वर्ष 1989 में प्रयागराज कुंभ में रखा गया था। इसे चंद्रकांत सोमपुरा ने तैयार किया था। कुंभ के बाद इसे कुछ दिनों तक मंदिर के शिलान्यास स्थल पर रखा गया। वर्ष 1990 में जब श्रीराम जन्मभूमि न्यास कार्यशाला बनी तब मंदिर के मॉडल को भी वहां स्थापित कर किया गया। कार्यशाला आने वाले श्रद्धालु मंदिर मॉडल के सामने सिर झुकाना नहीं भूलते।

मंदिर-मस्जिद विवाद के उभार के बाद अस्तित्व में आई श्रीराम जन्मभूमि न्यास कार्यशाला श्रद्धालुओं की आस्था का भी केंद्र भी बनी। इसी कार्यशाला में पूजित शिलाएं भी रखी गईं हैं। इसी कार्यशाला को तीर्थ के समान मान रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु कार्यशाला में रखे मंदिर के मॉडल व शिलाओं का दर्शन करने भी पहुंचते रहे।