बिहार में चलेगा ‘मोनी’ मॉडल

बिहार में भाजपा-जदयू का अपना मॉडल है। इसे आप ‘मोनी मॉडल’ भी कह सकते हैं यानी सुशील मोदी और नीतीश कुमार मॉडल। लालू यादव के विरोध के नाम पर बिहार में नेताओं की नयी जमात खड़ी हुई, इसमें ये दोनों महत्वपूर्ण चेहरे हैं। वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव की रिपोर्ट ।

बिहार में चलेगा ‘मोनी’ मॉडल
Bihar CM Nitish kumar with BJP leader sushil modi (File Image)

केंद्र सरकार के गठन में नीतीश कुमार की उपेक्षा का दर्द सबसे ज्यादा उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को महसूस हो रहा है। नीतीश के दर्द का सीधा असर सुशील मोदी के भविष्य से जुड़ा हुआ है। हालांकि नीतीश ने इतना जरूर स्पष्ट कर दिया है कि बिहार सरकार अपनी शर्तों और समझौतों पर चलती रहेगी। बिहार में भाजपा-जदयू का अपना मॉडल है। इसे आप ‘मोनी मॉडल’ भी कह सकते हैं यानी सुशील मोदी और नीतीश कुमार मॉडल। लालू यादव के विरोध के नाम पर बिहार में नेताओं की नयी जमात खड़ी हुई, इसमें ये दोनों महत्वपूर्ण चेहरे हैं। ये दोनों नेता जेपी आंदोलन से निकले थे, लेकिन लालू विरोध के नाम पर शुरू हुई राजनीति के दौर में ये ‘सत्ता के कुंदन’ बने।

नीतीश कुमार जब 2000 में ‘सात दिवसीय’ मुख्यमंत्री बने थे तो सुशील मोदी भी उनकी सरकार में मंत्री थे और जब 2005 में नीतीश कुमार दुबारा सीएम बने तो मोदी उपमुख्यमंत्री बन गये। 8 वर्षों तक साथ चलकर 2013 में नीतीश ने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया। सुशील मोदी विपक्ष के प्रमुख नेता बन गये, लेकिन उन्होंने नीतीश कुमार के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया। बल्कि उनकी भूमिका नीतीश के सलाहकार के रूप में हो गयी थी और अपनी पीसी में सलाह ही दिया करते थे। इस दौर में सीएम के मुख्य सलाहकार और विपक्षी दल के नेता का भेद मिट गया। कभी-कभी नेता विरोधी दल का बयान जदयू के मुख्य प्रवक्‍ता का लगता था। लेकिन 4 साल बाद फिर सुशील मोदी नीतीश की कैबिनेट में शामिल हो गये।

केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद भी जदयू की ‘सरकारी गाड़ी’ छूट गयी। वैसे माहौल में भी नीतीश निश्चिंत हैं। क्योंकि बिहार में एनडीए की सरकार चलती रहे, यह सुशील मोदी की जिम्मेवारी है। भाजपा ने साथ छोड़ा तो राजद है न। नीतीश तो पसंगा हैं, जिस धारा पर चढ़ जाएंगे, वही भारी हो जाएगा।