कागज़ के इमरानी गोले

इमरान का भाषण ऐसा था, जैसे किसी बीए के छात्र को एमए की कक्षा पढ़ाने के लिए ठेल दिया जाए। इमरान खान को पाकिस्तान की सबसे दुखती रग पर आज हाथ धरना था याने कश्मीर के सवाल पर बोलना था। भारत ने इस रग को काट दिया है।

कागज़ के इमरानी गोले

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की भी अजीब हालत है। पाकिस्तान के स्थापना दिवस (14 अगस्त) के उपलक्ष्य में उन्होंने जो भाषण अपने कब्जाए हुए कश्मीर की विधानसभा में दिया, उसे सुनकर पाकिस्तान के लोग असमंजस में पड़ गए होंगे। वह भाषण मैंने पूरा सुना। ऐसा लगा ही नहीं कि कोई नेता बोल रहा है।

भारत के खिलाफ मैंने जनरल जिया उल हक, जनरल मुशर्रफ, बेनजीर भुट्टो और नवाज़ शरीफ के कई भाषण प्रत्यक्ष सुने हैं और देखे-पढ़े भी हैं। आज इमरान का भाषण ऐसा था, जैसे किसी बीए के छात्र को एमए की कक्षा पढ़ाने के लिए ठेल दिया जाए। इमरान खान को पाकिस्तान की सबसे दुखती रग पर आज हाथ धरना था याने कश्मीर के सवाल पर बोलना था। भारत ने इस रग को काट दिया है।

यह बांग्लादेश के निर्माण से भी अधिक भयंकर घटना है। इमरान से पाकिस्तानी अपेक्षा कर रहे थे कि वे आज के मौके पर देश में भूकंप ला देंगे। भारत के खिलाफ गर्मागर्म लावा उगलेंगे लेकिन क्रिकेट का यह खिलाड़ी चौके और छक्के लगाने की बजाय केरम बोर्ड की गोटियां इधर से उधर सटकाता करता रहा। इसका कारण क्या है ? इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि दुनिया के एक भी राष्ट्र ने पाकिस्तान की पीठ नहीं ठोकी। लगभग सारे राष्ट्रों ने उसे भारत का आतंरिक मामला बता दिया।

इमरान ने कहा कि वे भारत के खिलाफ दुनिया के हर फोरम में जाएंगे। वहां जाकर वे क्या करेंगे ? कश्मीर के कारण ही पाकिस्तान सारी दुनिया में बदनाम हुआ है। पाकिस्तान की फौज 1948 के बाद कश्मीर की एक इंच जमीन भी भारत से नहीं छीन सकी लेकिन उसके बहाने वह पाकिस्तानी जनता के सीने पर सवार है। इमरान खान ने भारत को युद्ध की धमकी नहीं दी बल्कि यह कहा कि वे जंग के विरोधी हैं। वे शांतिप्रेमी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और पाकिस्तान की कई समस्या एक-जैसी हैं। जैसे बेरोजगारी, गरीबी, पर्यावरण, व्यापार आदि। इन्हें हम मिलकर हल क्यों न करें ? फिर वे अचानक ‘नरेंद्र मोदी ’ पर बरस पड़े। उन्हें फासीवादी और जाने क्या-क्या कह डाला।

उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत उनके कब्जाए हुए कश्मीर पर बालाकोट की तरह अचानक हमला भी कर सकता है। उन्होंने ईंट का जवाब पत्थर से देने की बात भी कह डाली। कुछ ताली बजवाना भी जरुरी था। लेकिन उन्होंने मदीना में पैंगबर के राज की सहनशीलता का बखान इस अदा से किया मानो उन दिनों इस्लाम, इस्लाम नहीं, वैष्णव धर्म रहा है। ‘वैष्णव जन तो लेने कहिए, जो पीर पराई जाने रे।’ उन्होंने आज के भारत को ‘आरएसएस’ का भारत याने जोर-जबर्दस्ती धर्म-परिवर्तन करनेवाला भारत कहा। पाकिस्तान को सबक सिखाने का लक्ष्य रखनेवाला भारत कहा। इन सब कागज के गोलों का पाकिस्तानी जनता के मन पर क्या असर हुआ होगा ? पाकिस्तानी टीवी चैनल मज़े ले रहे हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)