केंद्र सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून किया लागू,देशव्यापी विरोध के बीच 10 जनवरी को गृह मंत्रालय ने जारी की अधिसूचना

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने तमाम विरोध के बीच संशोधित नागरिकता कानून को देश भर में लागू कर दिया है। 10 जनवरी को गृह मंत्रालय ने इसके लिए अधिसूचना जारी की और इसी के साथ संशोधित नागरिकता कानून पूरे देश में प्रभावी हो गया है।

केंद्र सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून किया लागू,देशव्यापी विरोध के बीच 10 जनवरी को गृह मंत्रालय ने जारी की अधिसूचना
GFX of Citizenship Amended Law Applied In Country
केंद्र सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून किया लागू,देशव्यापी विरोध के बीच 10 जनवरी को गृह मंत्रालय ने जारी की अधिसूचना
केंद्र सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून किया लागू,देशव्यापी विरोध के बीच 10 जनवरी को गृह मंत्रालय ने जारी की अधिसूचना
केंद्र सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून किया लागू,देशव्यापी विरोध के बीच 10 जनवरी को गृह मंत्रालय ने जारी की अधिसूचना

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने तमाम विरोध के बीच संशोधित नागरिकता कानून को देश भर में लागू कर दिया है। 10 जनवरी को गृह मंत्रालय ने इसके लिए अधिसूचना जारी की और इसी के साथ संशोधित नागरिकता कानून पूरे देश में प्रभावी हो गया है। गृह मंत्रालय की अधिसूचना में लिखा है, 'केंद्रीय सरकार, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (2019 का 47) की धारा 1 की उपधारा (2) द्वारा प्रदत शक्तियों का प्रयोग करते हुए, 10 जनवरी 2020 को उस तारीख के रूप में नियत करती है, जिसको उक्त अधिनियम के उपबंध प्रवृत होंगे।'

संशोधित नागरिकता कानून के अनुसार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के जो सदस्य 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हैं और जिन्हें अपने देश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है, उन्हें गैरकानूनी प्रवासी नहीं माना जाएगा, बल्कि भारतीय नागरिकता दी जाएगी।

कानून के मुताबिक इन छह समुदायों के शरणार्थियों को पांच साल तक भारत में रहने के बाद भारत की नागरिकता दी जाएगी। अभी तक यह समयसीमा 11 साल की थी। सीएए के के मुताबिक ऐसे शरणार्थियों को गैर-कानून प्रवासी के रूप में पाए जाने पर लगाए गए मुकदमों से भी माफी दी जाएगी।

सीएए असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा,क्योंकि ये क्षेत्र संविधान की छठी अनुसूची में शामिल हैं। इसके साथ ही यह कानून बंगाल पूर्वी सीमा विनियमन,1873 के तहत अधिसूचित इनर लाइन परमिट (आईएलपी) वाले इलाकों में भी लागू नहीं होगा। आईएलपी अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिज़ोरम में लागू है।

नागरिकता संशोधन कानून है क्या?

नागरिकता अधिनियम, 1955 में बदलाव करने के लिए केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन बिल लेकर आई। बिल को संसद में पास करवाया गया और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन गया। अब सरकार ने इसका नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है। इसके साथ ही अब पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से आए हुए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई, पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलने में आसानी होगी। अभी तक उन्हें अवैध शरणार्थी माना जाता था।

किन शरणार्थियों को होगा फायदा?

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में अपने भाषण में दावा किया था कि लाखों-करोड़ों ऐसे लोग हैं जिन्हें इस कानून से फायदा मिलेगा। नया कानून सभी शरणार्थियों पर लागू होगा। सरकार की ओर से एक कटऑफ तारीख भी तय की गई है,जिसमें कहा गया है कि 31 दिसंबर 2014 से पहले आए सभी हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई, पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी।

कहां लागू नहीं होगा यह कानून?

नागरिकता संशोधन कानून का पूर्वोत्तर में जबरदस्त विरोध देखा गया। असम, मेघालय समेत कई राज्यों में लोग सड़कों पर उतर आए। हालांकि सरकार ने कानून लागू करते समय यह ऐलान किया कि मेघालय, असम, अरुणाचल, मणिपुर के कुछ क्षेत्रों में कानून लागू नहीं होगा। केंद्र सरकार ने यहां इनर लाइन परमिट जारी किया है। इसकी वजह से ये नियम यहां लागू नहीं होंगे। दरअसल, इनर लाइन परमिट एक यात्रा दस्तावेज है,जिसे भारत सरकार अपने नागरिकों के लिए जारी करती है,जिससे कि वो किसी संरक्षित क्षेत्र में निर्धारित वक्त के लिए यात्रा कर सकें।

सीएए का क्यों हो रहा है विरोघ?

संशोधित नागरिकता कानून में यह प्रावधान है कि भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान,अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे सिख, ईसाई, बौद्ध, हिन्दू और पारसी, जिन्हें धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा हैं, उन्हें नागरिकता की जीएगी। इससे मुसलमान समदीय को बाहर रखा गया है। प्रदर्शनकारियों का ऐतराज इसी बात को लेकर है कि नागरिकता संशोधन कानून में मुसलमानों को अलग क्यों रखा गया है?