झारखंडवासियों को खूब आकर्षित करता है हथिया पत्थर का मकर संक्रांति मेला,यहां की कहानी भी है अत्यंत पौराणिक और प्रसिद्ध

मकर संक्रांति के मौके पर बोकारो जिले के फुसरो-पिछरी के पास दामोदर नदी पर हथिया पत्थर मेले का आयोजन किया जाता है। लोग यहां बीच नदी में पत्थर की आकृति के बने प्राकृतिक हाथी और मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। पत्थर की आक्रिति वाले हाथी के पीछे अत्यंत पौराणिक और बेहद प्रसिद्ध कहानी बताई जाती है। क्या है वो कहानी आइए जानते हैं।

झारखंडवासियों को खूब आकर्षित करता है हथिया पत्थर का मकर संक्रांति मेला,यहां की कहानी भी है अत्यंत पौराणिक और प्रसिद्ध
GFX of Hathiya Pathar Faire In Phusro, Brmo, Bokaro, Jharkhand
झारखंडवासियों को खूब आकर्षित करता है हथिया पत्थर का मकर संक्रांति मेला,यहां की कहानी भी है अत्यंत पौराणिक और प्रसिद्ध
झारखंडवासियों को खूब आकर्षित करता है हथिया पत्थर का मकर संक्रांति मेला,यहां की कहानी भी है अत्यंत पौराणिक और प्रसिद्ध
झारखंडवासियों को खूब आकर्षित करता है हथिया पत्थर का मकर संक्रांति मेला,यहां की कहानी भी है अत्यंत पौराणिक और प्रसिद्ध

मकर संक्रांति को लेकर लोगों में विशेष उत्साह है। जगह-जगह मेलों और कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। प्रयागराज हो या फिर हो हरिद्वार। भोपाल हो या फिर हो बनारस, तमाम छोटे-बड़े शहरों और कस्बों में मेलों का आयोजन किया जा रहा है। झारखंड के जिला बोकारो में भी मकर संक्रांति पर मेला का आयोजन किया जा रहा है। इस मेले का आयोजन फुसरो से होकर बहने वाली नदी दामोदर के किनारे किया जाता है।

दरअसल,मकर संक्रांति के मौके पर फुसरो-पिछरी के दामोदर नदी पर हथिया पत्थर मेले का आयोजन किया जाता है। लोग यहां बीच नदी में पत्थर की आकृति के बने प्राकृतिक हाथी और मंदिरों में पूजा अर्चना करते हैं। पत्थर की आक्रिति वाले हाथी के पीछे अत्यंत पौराणिक और बेहद प्रसिद्ध कहानी बताई जाती है।

कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक राजा ने अपने पुत्र के विवाह में इस दामोदर नदी को पार करने के लिए नदी से विनती की, कहा कि पानी कम हो जाए और बारात अराम से नदी पार कर जाएगी, तो वो बलि चढ़ाकर पूजा-अर्चना करेंगे। राजा की विनती पर दामोदर नदी का पानी कम हो गया। राजा और उनके बाराती नदी पार कर गए। लेकिन वापसी में भी राजा ने पूजा-अर्चना नहीं की और नदी को अपशब्द कहा। उसी समय राजा, बाराती, दुल्हा-दूल्हन सहित हाथी, घोड़े, ढोल नगाड़ा सभी पत्थर में तब्दील हो गए। आज भी गौर से देखने से उक्त सभी आकृतियां स्पष्ट नजर आती हैं।

हथिया पत्थर धाम आज किसी नाम का मोहताज नहीं है। लोग यहां दूर-दूर से आकर पूजा-अर्चना करते हैं। यहां लगभग 150 वर्षों से ज्यादा समय से पूजा हो रही है। पहले यहां कम लोग जुटते थे, लेकिन अब इसकी प्रसिद्धि पूरे राज्य मे फैल चुकी है। यही कारण है कि इस स्थान को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की मांग उठ रही है। हालांकि इस दिशा में यहां कई काम हुए हैं।

मकर संक्रांति मेले की रौनक देखते ही बनती है। मेले में आसपास के लोगों के साथ ही दूरदराज के लोग भी आते हैं। जरूरत के सभी सामान यहां मिलते हैं। खाने-पीने के सामान में जहां तमाम तरह की मिठाईयां होती हैं, वहीं बच्चों के झुले खास आकर्षण का केंद्र होते हैं। यहां हजारों लोगों की भीड़ जुटती है।

हथिया पत्थर में मकर संक्रांति पर पौ फटटे  ही लोग आने लगते हैं और यह सिलसिला देर साथ शाम तक चलता है।  इसके साथ ही यहां पर बकरे और मुर्गे की बलि दी जाती है। यहां आने वाले लोगों  का मानना है कि मकर स्नान के बाद यहां जो मन्नत मांगी जाती है वह अवश्य पूरी होती हैं।