सबरीमाला मंदिर में जारी रहेगा महिलाओं का प्रवेश, सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच को भेजा सबरीमाला मामला, अब 7 जजों की बेच सुनाएगी फैसला
सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के फैसले पर दायर पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई अब सात न्यायाधीशों वाली बेंच करेगी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली 5 जजों की पीठ ने 3:2 की अनुपात से मामले को बड़ी बेंच को सौंपा।
देश की सर्वोच्च अदालत ने सबरीमाला मामले को बड़ी बेंच को सौंप दिया है। सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के फैसले पर दायर पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई अब सात न्यायाधीशों वाली बेंच करेगी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली 5 जजों की पीठ ने 3:2 की अनुपात से मामले को बड़ी बेंच को सौंपा। न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने इसके खिलाफ अपना निर्णय दिया है।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि अंतिम फैसले तक उसका पिछला आदेश बरकरार रहेगा। अदालत ने 28 सितंबर 2018 को 4:1 के बहुमत से मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी दी थी। फैसले पर 56 पुनर्विचार समेत 65 याचिकाएं दायर की गई थीं। इन पर 6 फरवरी को अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पुनर्विचार याचिकाएं मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुआई वाली 5 जजों की बेंच में दायर की गई थीं। मुख्य न्यायधीश, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस एएम खानविलकर ने केस बड़ी बेंच को भेजने का फैसला दिया। जस्टिस फली नरीमन और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इसके खिलाफ फैसला दिया है।
पुनर्विचार याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि यह याचिका दायर करने वाले का मकसद धर्म और आस्था पर वाद-विवाद शुरू कराना है। महिलाओं के धार्मिक स्थलों में प्रवेश पर लगा प्रतिबंध सिर्फ सबरीमाला तक सीमित नहीं, यह दूसरे धर्मों में भी प्रचलित है।
सर्वोच्च अदालत को सबरीमाला जैसे धार्मिक स्थलों के लिए एक सार्वजनिक नीति बनानी चाहिए। सबरीमाला, मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश और फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन से जुड़े धार्मिक मुद्दों पर बड़ी बेंच फैसला करेगी। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी देते हुए कहा था कि दशकों पुरानी हिंदू धार्मिक प्रथा गैरकानूनी और असंवैधानिक थी।
जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा था कि धर्मनिरपेक्षता का माहौल कायम रखने के लिए अदालत को धार्मिक अर्थों से जुड़े मुद्दों को नहीं छेड़ना चाहिए। जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि शारीरिक वजहों से मंदिर आने से रोकना रिवाज का जरूरी हिस्सा नहीं। ये पुरूष प्रधान सोच दर्शाता है। जबकि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि महिला को माहवारी के आधार पर प्रतिबंधित करना असंवैधानिक है। यह मानवता के खिलाफ है।
Comments (0)