बिहार के विभूति और महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन, पटना के PMCH में ली अंतिम सांस, राजनेताओं और बुद्धिजीवियों ने जताया शोक
बिहार के विभूति और सदी के महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का गुरुवार को लंबी बीमारी के बाद पटना में निधन हो गया। वशिष्ठ नारायण सिंह की मौत के बाद पटना के पीएमसीएच प्रशासन की बड़ी लापरवाही सामने आई है। वशिष्ठ बाबू के निधन के बाद अस्पताल प्रबंधन द्वारा परिजनों को एम्बुलेंस तक नहीं मुहैय्या कराया गया। इस महान विभूति के निधन के बाद उनके छोटे भाई ब्लड बैंक के बाहर शव के साथ लंबे समय तक खड़े रहे।
बिहार के विभूति और महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह अब हम सबके बीच नहीं रहे। वशिष्ठ नारायण सिंह का आज पटना में निधन हो गया। वो पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। उन्होंने पटना के पीएमसीएच में गुरुवाक की सुबह अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से पूरा बिहार गमगीन है।
वशिष्ठ नाराय़ण सिंह अपने परिजनों के साथ पटना के कुल्हरिया कंपलेक्स में रहते थे। बताया जा रहा है कि आज उनकी तबियत खराब होने लगी, जिसके बाद तत्काल परिजन पीएमसीएच लेकर गए जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
वशिष्ठ नाराय़ण सिंह जब पिछले पखवारे से बीमार पड़े थे तब पीएमसीएच में नेताओं का तांता लगा था। बिहार के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री तक उन्हें देखने गए थे। वहीं प्रकाश झा ने फिल्म बनाने की घोषणा कर रखी थी। आरा के बसंतपुर के रहने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह बचपन से ही होनहार थे।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना शोक जताते हुए वशिष्ठ नारायण सिंह को महान विभूति बताया और अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। मुख्यमंत्री ने शोक- संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि वशिष्ठ बाबू ने अपने साथ बिहार का नाम रोशन किया है। बिहार के प्रति निष्ठावान व्यक्ति थे वशिष्ठ बाबू। वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी शोक जताया और कहा है कि वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन से समाज को अपूरणीय क्षति हुई है।
गौरतलब है कि तकरीबन 40 साल से मानसिक बीमारी सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह पटना के एक अपार्टमेंट में गुमनामी का जीवन बिता रहे थे। मौत से कुछ दिनों पहले तक भी किताब, कॉपी और एक पेंसिल उनकी सबसे अच्छी दोस्त रहीं। कहा जाता है कि अमरीका से वह अपने साथ किताबों से भरे 10 बक्से लेकर आए थे, जिन्हें वह पढ़ते रहते थे। बाकी किसी छोटे बच्चे की तरह ही उनके लिए तीन-चार दिन में एक बार कॉपी, पेंसिल लानी पड़ती थी।
वशिष्ठ नाराय़ण सिंह ने छठी क्लास में नेतरहाट के एक स्कूल में कदम रखा, तो फिर पलट कर नहीं देखा एक गरीब घर का लड़का हर क्लास में कामयाबी की नई इबारत लिख रहा था। वे पटना साइंस कॉलेज में पढ़ रहे थे कि तभी किस्मत चमकी और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन कैली की नजर उन पर पड़ी जिसके बाद वशिष्ठ नारायण 1965 में अमेरिका चले गए और वहीं से 1969 में उन्होंने पीएचडी की थी।
बताया जाता है कि शुरुआती सालों में अगर गणितज्ञ की सरकारी उपेक्षा नहीं हुई होती तो आज वशिष्ठ नारायण सिंह का नाम दुनिया के महानतम गणितज्ञों में सबसे ऊपर होता। उनके बारे में मशहूर किस्सा है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था।
आपको बताते चलें कि 1969 में वशिष्ठ नारायण सिंह ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। नासा में भी उन्होंने काम किया। भारत लौटने के बाद आईआईटी कानपुर, आईआईटी बंबई और आईएसआई कोलकाता में अपनी सेवाएं दी।
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