जनरल बिपिन रावत होंगे देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ,केंद्र सरकार और सेना के बीच करेंगे सेतु का काम
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नियुक्त किया है। ये रक्षा मंत्रालय के लिए मुख्य सैन्य सलाहकार के तौर पर काम करेंगे। मंगलवार को बिपिन रावत सेना प्रमुख पद से रिटायर होने वाले हैं। लेकिन उससे पहले उन्हें देश का पहला सीडीएस नियुक्त कर दिया गया है। बिपिन रावत की जगह मनोज मुकुंद नरवाणे नए सेनाध्यक्ष का पद संभालेंगे।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानी सीडीएस के नाम की घोषणा कर दी है। थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नियुक्त किया गया है। मंगलवार को बिपिन रावत सेना प्रमुख पद से रिटायर होने वाले हैं। लेकिन उससे पहले उन्हें देश का पहला सीडीएस नियुक्त कर दिया गया है। बिपिन रावत की जगह मनोज मुकुंद नरवाणे नए सेनाध्यक्ष का पद संभालेंगे।
केंद्रीय कैबिनेट कमेटी ने मंगलवार को सीडीएस के पद को मंजूरी दी थी। यह रक्षा मंत्रालय के लिए मुख्य सैन्य सलाहकार के तौर पर काम करेंगे। सीडीएस अपना पद छोड़ने के बाद किसी भी सरकारी पद पर नहीं रह सकते हैं। पद छोड़ने के 5 साल बाद तक बिना पूर्व अनुमति के सीडीएस निजी पद भी ग्रहण नहीं कर सकते हैं।
केंद्रीय कैबिनेट बैठक में यह भी तय किया गया कि सीडीएस का पद 4 स्टार जनरल के बराबर होगा। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि सीडीएस सरकार के प्रधान सैन्य सलाहकार होंगे, लेकिन तीनों सेनाओं के प्रमुख पहले की तरह अपने क्षेत्र से संबंधित मामलों में रक्षा मंत्री को सलाह देते रहेंगे। सीडीएस तीनों सेनाओं से संबंधित मुद्दों पर सरकार और सैन्य बलों के बीच संपर्क सेतु की तरह काम करेंगे। इस पद पर नियुक्त किए जाने वाले अधिकारी पर, सेना के तीनों अंगों के बीच कामकाज में समन्वय स्थापित करने और वित्तीय मामलों में सलाह देने की जिम्मेदारी होगी।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ अधिकतम 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर रह सकते हैं। रक्षा मंत्रालय ने नौसेना, वायुसेना और थल सेना के सर्विस रूल में भी यह बदलाव किया है। अभी सेना प्रमुख अधिकतम 62 वर्ष या तीन वर्ष के कार्यकाल (दोनों में से जो पहले आता हो) तक अपने पद पर रह सकते हैं। किसी सेना प्रमुख को सीडीएस बनाए जाने पर आयु सीमा का नियम आड़े न आए इसलिए रक्षा मंत्रालय ने सर्विसेस के नियमों में सुधार किया है।
दरअसल, कारगिल युद्ध के दौरान वायुसेना और भारतीय सेना के बीच में तालमेल का अभाव साफ दिखाई दिया था। वायुसेना के इस्तेमाल पर तत्कालीन वायुसेनाध्यक्ष और सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक की राय अलग थी। भारतीय सामरिक रणनीतिकारों ने भी इस कमी को महसूस किया और सरकार से पुनः सीडीएस के गठन की सिफारिश की। यह पद सरकारी नेतृत्व के लिए सैन्य सलाहकार की भूमिका के तौर पर जरूरी है।
हालांकि राजनीतिक पार्टियों और सैन्य बलों ने इसका विरोध किया है। कुछ लोगों को लगता है कि एक व्यक्ति के पास ज्यादा सैन्य शक्तियां होना संकेंद्रण समस्या को जन्म दे सकती है। 2015 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ने इसके गठन की बात की थी।
साल 2012 में गठित नरेश चंद्र समिति ने बीच का रास्ता निकालते हुए चीफ ऑफ स्टाफ समिति (सीओएससी) के स्थायी अध्यक्ष की सिफारिश की थी। वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत सीओएससी के अध्यक्ष की नियुक्ति की जाती है। लेकिन इसके परिणाम आशा के अनुसार नहीं रहे हैं। सेना में सुधार के लिए गठित डीबी शेतकर समिति ने दिसंबर 2016 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी। जिसमें 99 सिफारिशों सहित सीडीएस की नियुक्ति के मुद्दे को उठाया गया था।
आपको बताते टलें कि तीनों सेनाओं ने लगातार सीडीएस के गठन की मांग की है। रक्षा मंत्रालय की संसदीय समिति ने भी कारगिल सीक्षा समिति की सिफारिश को मजबूती से उठाया, लेकिन केन्द्र सरकार सीडीएस के गठन से परहेज करती रही। करीब 19 साल तक यह सिफारिश ठंडे बस्ते में पड़ी रही।
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