कैसे सर्वफलदायी है निर्जला एकादशी व्रत ?
देशभर में आज निर्जला एकादशी का पावन पर्व मनाया जा रहा है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी व्रत किया जाता है। इस व्रत में पानी तक का सेवन नहीं किया जाता। इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है।
कैसे सर्वफलदायी है निर्जला एकादशी व्रत ?
देशभर में आज निर्जला एकादशी का पावन पर्व मनाया जा रहा है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी व्रत किया जाता है। इस व्रत में पानी तक का सेवन नहीं किया जाता। इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी पांडव एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। इस एकादशी को भीमसेन ने धारण किया था। अतः इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत एवं उपवास करने से वर्ष की 24 एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है।
क्या है निर्जला एकादशी व्रत का महत्व ?
मिथुन संक्रान्ति के मध्य, ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को निर्जल व्रत किया जाता है। इस एकादशी का व्रत करना सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्ति पाता है। जो मनुष्य़ यह व्रत करता है, उसे मृत्यु के समय मानसिक एवं शारीरिक कष्ट नहीं होता है। इस व्रत को करने के बाद जो व्यक्ति स्नान, ध्यान, जप, तप एवं दान करता है, उसे करोडों गायों को दान करने के समान फल प्राप्त होता है। निर्जला एकादशी व्रत करने से दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कैसे करें निर्जला एकादशी की पूजा?
निर्जला एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्ति होकर गंगा स्नानादि करें। गंगा स्नान यदि संभव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करें। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात निर्जला एकादशी के व्रत का संकल्प लें। निर्जला एकादशी व्रत में सर्वप्रथम श्री हरि विष्णु की पूजा करें तथा व्रत कथा सुनें। इस एकादशी में "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का उच्चारण करना सर्वफलदायी होता है। व्रत के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से ही अगले दिन सूर्योदय तक जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। व्रत का पारण दूसरे दिन स्नानादि के पश्चात् इष्ट देवी-देवता तथा भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना करने के पश्चात किया जाता है। श्री हरि विष्णु एवं अन्य देवी-देवताओं के दर्शन एवं पूजन करना चाहिए। पूजा-पाठ के पश्चात सामर्थानुसार ब्राह्माणों को दक्षिणा, मिष्ठान आदि देना चाहिए। निर्जला एकादशी के दिन गौ-दान करने का भी विशेष महत्व होता है।
क्या करें दान ?
निर्जला एकादशी के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दानादि भी किया जाता है। जल से भरा कलश, अन्न, मिष्ठान्न, चीनी, शक्कर, गुड़, फल, स्वर्ण रजत, पंखा एवं अन्य नित्य प्रयोजन में आनेवाली वस्तुएं दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को दान करनी चाहिए। निर्जला एकादशी का व्रत महिला व पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है। मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। भक्तिभाव से निर्जला एकादशी के व्रत करने से जीवन के समस्त पापों का शमन हो जाता है, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली का मार्ग प्रशस्त तो होता ही है, साथ ही समस्त पापों का शमन भी होता है।
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