जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग ने विभिन्न जेलों में बंद 26 लोगों से जन-सुरक्षा कानून हटाया,अनच्छेद-370 समाप्त होने के बाद हुई थी सभी की गिरफ्तारी
सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी के बाद जम्मू-कश्मीर सरकार एक्शन में आ गई है। जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग ने विभिन्न जेलों में बंद 26 लोगों से जन-सुरक्षा कानून यानी पीएसए को हटा दिया है। विभागीय अधिकारियों ने इस बाबात जानकारी दी। सरकार के इस कदम को राज्य में स्थिति को आसान करने की दिशा में सार्थक पहल के रूप में देखा जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी के बाद जम्मू-कश्मीर सरकार एक्शन में आ गई है। जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग ने विभिन्न जेलों में बंद 26 लोगों से जन-सुरक्षा कानून यानी पीएसए को हटा दिया है। विभागीय अधिकारियों ने इस बाबात जानकारी दी। सरकार के इस कदम को राज्य में स्थिति को आसान करने की दिशा में सार्थक पहल के रूप में देखा जा रहा है।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र-शासित प्रदेशों में बांटने के 5 अगस्त के केंद्र के फैसले के बाद इन लोगों को पकड़ा गया था और इनके खिलाफ पीएसए लगाया गया था। पीएसए के तहत ही राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अबदुल्ला, उमर अबदुल्ला, महबूबा मुफ्ती समेत कई अन्य अलगाववादी नेताओं को नजरबंद रखा गया है।
जम्मू-कश्मीर में प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 27 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान समाप्त करने के बाद वहां लगाए गए प्रतिबंधों को 21 नवंबर को सही ठहराया था। केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि सरकार के एहतियाती उपायों की वजह से ही राज्य में किसी व्यक्ति की न तो जान गई और न ही एक भी गोली चलानी पड़ी।
आपको बताते चलें कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवा पर लगी पाबंदी और धारा 144 के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कई आदेश भी दिए हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार को एक सप्ताह के अंदर प्रतिबंधों की समीक्षा करने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लगातार धारा 144 लागू करना सत्ता की शक्ति का उल्लंघन है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इंटरनेट एक्सेस दिया जाना संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लोगों का बुनियादी हक है। इंटरनेट अनिश्चितकाल तक के लिए बंद नहीं किया जा सकता। प्रशासन इस पर लगाई गई सभी पाबंदियों की एक हफ्ते में समीक्षा करे और सभी पाबंदियों का आदेश सार्वजनिक करे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘स्कूल-कॉलेज और अस्पताल जैसी जरूरी सेवाओं वाले संस्थानों में इंटरनेट बहाल किया जाना चाहिए। अलग-अलग विचारों को दबाने के हथकंडे के तौर पर धारा 144 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। हम कश्मीर में सुरक्षा के साथ-साथ मानवाधिकार और स्वतंत्रता के बीच संतुलन साधने की कोशिश करेंगे।’’ कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट को निषेधाज्ञा लागू करते समय दिमाग का इस्तेमाल और अनुपात के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।
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