आइये, ‘लालूवाद’ के अंत पर विलाप करें

2019 का लोकसभा चुनाव लालू यादव के नाम या कहें कि लालूवाद के नाम पर लड़ा जाने वाला अंतिम चुनाव साबित हो सकता है। क‍योंकि लालू यादव और उनकी पार्टी को ऐसी पराजय का सामना कभी नहीं करना पड़ा था। यह भी संयोग है कि लालू यादव के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव के लीडरशिप में राजद पहली बार महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रहा था। यह तेजस्वी की पहली पराजय भी कहा जा सकता है। वरिष्ठ पत्रकार बिरेंद्र कुमार यादव की रिपोर्ट।

आइये, ‘लालूवाद’ के अंत पर विलाप करें
Tejaswi Yadav with Misha Bharati ( File Photo)

1977 में लोकसभा की यात्रा के साथ शुरू हुई लालू यादव की संसदीय यात्रा लगभग 42 वर्ष बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के सभी उम्मीदवारों की हार के साथ समाप्त हो गयी। कहावत है- बचा न कोई रोअनहारा। लोकसभा में राजद का नामोनिशान मिट गया।

लोकसभा चुनाव के दौरान राजद के नेताओं ने लालू यादव के विचार को ‘लालूवाद’ कहा था। लालू यादव के विचारों के प्रचार-प्रसार की कसम खायी थी और लालू यादव की तस्वीर के साथ समर्थकों की संवदेना जोड़ने का प्रयास किया गया। लेकिन सभी कोशिश निरर्थक रही। हद तो यह हो गयी कि लालू यादव को ‘न्याय’ दिलाने के लिए हेलीकॉप्टर से राज्य भर में वोट मांगने वाले तेजस्वी यादव खुद अपने आवास से करीब दो किलो मीटर दूर वेटनरी कॉलेज परिसर में मतदान नहीं करने गये। इससे स्पष्ट है कि लालूवाद के ध्वज वाहक अपने मुद्दों को लेकर कितना नर्वस और लापरवाह हैं।

पटना में 28 व 29 मई को राजद की ‘विलाप बैठक’ होगी। राजनीति की भाषा में समीक्षा बैठक कहा जा सकता है। इसमें हार के कारणों की समीक्षा होगी। लेकिन समीक्षा करने के‍ लिए क्या बचा है, यही समझ में नहीं आ रहा है। इसे कहते हैं- गाय मर गयी और ‘पगहा’ पर विलाप हो रहा है। लोकसभा चुनाव में राजद को मात्र नौ विधान सभा क्षेत्रों में बढ़त मिली है। राजद समेत महागठबंधन को मात्र 18 विधान सभा सीटों पर बढ़त मिली है।

2019 का लोकसभा चुनाव लालू यादव के नाम या कहें कि लालूवाद के नाम पर लड़ा जाने वाला अंतिम चुनाव साबित हो सकता है। क‍योंकि लालू यादव और उनकी पार्टी को ऐसी पराजय का सामना कभी नहीं करना पड़ा था। यह भी संयोग है कि लालू यादव के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव के लीडरशिप में राजद पहली बार महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रहा था। यह तेजस्वी की पहली पराजय भी कहा जा सकता है। हार की समीक्षा भी पहली बार तेजस्वी के नेतृत्व में होगी। बैठक में हार की समीक्षा भी लालू यादव के ‘उपस्थि‍त और अनुपस्थित’ होने पर होगी। सच बोलने को कोई तैयार नहीं होगा। हर वक्ता झूठ का आडंबर ही गढ़ेगा।

लेकिन हार की वास्तविकता यह है कि महागठबंधन के नेताओं पर टिकट बेचने के आरोप लगते रहे। उम्मीदवार चयन और सीट के बंटवारे में काफी खींचतान हुआ। महागठबंधन में नेतृत्व की क्षमता पर सवाल उठते रहे। महागठबंधन के नेता जनंसवाद के बजाये ‘होटल संवाद’ में व्यस्त रहे। जमीन के बजाये हवा में उड़ते रहे। इसका उलटा असर वोटरों पड़ा। महागठबंधन से उम्मीद लगाये बैठा वोटर विकल्प तलाशने लगा और इसी वर्ग को एनडीए ने टारगेट किया। महागठबंधन की हार के लिए ‘मोदी महालहर’ को कारण बताया जा सकता है और अपनी कमजोरी पर परदा डालने के लिए यही सबसे आसान तरीका है।