साधकों को सुख, समृद्धि एवं आयोग्यता प्रदान करती हैं माँ ब्रह्मचारिणी

नवरात्र के दूसरे दिन जो साधक पूरी भक्ति-भाव एवं श्रद्धा से माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं, उन्हें सुख, समृद्धि एवं आरोग्यता की प्राप्ति होती है। साधक का मन प्रसन्न रहता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है। माँ ब्रह्मचारिणी की अराधना के समय इन मंत्रों का जाप करना विशेष फलदायी होता है।

साधकों को सुख, समृद्धि एवं आयोग्यता प्रदान करती हैं माँ ब्रह्मचारिणी
Pic of Maa Bharahcharni
साधकों को सुख, समृद्धि एवं आयोग्यता प्रदान करती हैं माँ ब्रह्मचारिणी
साधकों को सुख, समृद्धि एवं आयोग्यता प्रदान करती हैं माँ ब्रह्मचारिणी
साधकों को सुख, समृद्धि एवं आयोग्यता प्रदान करती हैं माँ ब्रह्मचारिणी
साधकों को सुख, समृद्धि एवं आयोग्यता प्रदान करती हैं माँ ब्रह्मचारिणी
साधकों को सुख, समृद्धि एवं आयोग्यता प्रदान करती हैं माँ ब्रह्मचारिणी

नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है। देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय है। मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली। अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी।

माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन हैं। मुख पर कठोर तपस्या के कारण तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है, जो तीनों लोकों को उजागर कर रहा है। देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला और बाएं हाथ में कमंडल है। वेद एवं पुराण के अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए मां ब्रह्मचारिणी ने सौ वर्षों तक केवल कंदमूल फल खाकर साधना की और तीन हजार वर्षों तक जमीन पर गिरे बेलपत्रों को खाकर नित्य भगवान शिव की आराधना करती रहीं। इसके बाद हजारों वर्षों तक निर्जल और निराहर तपस्या की। पत्तों का भोजन भी त्याग दिया इसलिए इनका एक नाम अपर्णा  भी है। मां ब्रह्मचारिणी को तपश्चारिणी और उमा के नाम से भी जाना जाता है।

जप माला का महत्व-माँ के हाथ कमंडल

भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जपमाला एवं बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित है। जप माला और कमंडल का अध्यात्मिक महत्व क्या है, साधकों को इसकी जानकारी होना भी आवश्यक है। सर्व प्रथम बात मां ब्रह्मचारिणी के हाथों में सुशोभित जप माला की। सर्व विदित है कि साधक ध्यान और भगवान का नाम जपने के लिए माला का प्रयोग करते हैं। जबकि कुछ लोग उंगलियों पर गिन कर भी ध्यान जप करते हैं। परंतु शास्त्रों में माला पर जप करना अधिक शुद्घ और पुण्यदायी कहा गया है। अंगिरा ऋषि के अनुसार बिना माला के संख्याहीन जाप का कोई फल नहीं मिलता। क्योंकि जाप से पहले जाप की संख्या का संकल्प लेना आवश्यक होता है। संकल्प संख्या में कम ज्यादा होने पर जाप निष्फल माना जाता है। मान्यता यह भी है कि मध्यमा उंगली का हृदय से सीधा संबंध होता है। हृदय में आत्मा का वास है, इसलिए मध्यमा उंगली और उंगूठे से जप किया जाता है। कमंडल के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है। ब्रह्मा पुराण के अनुसार जब हिमालय पुत्री उमा का विवाह भगवान शिव से होने जा रहा था, तब विवाह मंडप में उमा के सौंदर्य को देखकर स्वयं ब्रह्मा के मन में विकार उत्पन्न हो गया। उस पाप से मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं भगवान विष्णु ने अपने कमंडल में अपने चरण धोए और उस जलयुक्त कमंडल को ब्रह्मा को सौंपते हुए कहा कि हे ब्रह्मा जी यह कमंडल धरती का रूप है और इसमें पड़ा जल नदी के रूप में परिर्वित हो जाएगा। इस जल से स्नान करने या जलपान करने पर मनुष्य के सभी पापों का विनाश हो जाएगा। इसका आचमन करने से आपके मन का विकार भी नष्ट हो जाएगा और जो पाप आप से हुआ है, वह भी नष्ट हो जाएगा। ब्रह्मा जी के द्वारा ही शक्ति की देवी दुर्गा को कमंडल भेंट किया गया है। 

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

नवरात्र के दूसरे दिन प्रातःकाल नित्यक्रम एवं स्नान आदि के बाद सर्वप्रथम जिन देवी-देवताओ,  गणों और योगिनियों को कलश में आमंत्रित किया है, उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें। उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत एवं मधु से स्नान कराएं और फिर देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं, उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें। प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें। कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता एवं ग्राम देवता की पूजा करें। इनकी पूजा के उपरांत माता ब्रह्मचारिणी की उपासना करें। देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक लाल फूल लेकर प्रार्थना करें। इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर भांति भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें। 

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थात हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। शाम के समय में मां दुर्गा की आरती करें और प्रसाद वितरण करें। ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा की षोडशोपचार करके जो साधक स्वाधिष्ठान चक्र में मन को स्थापित करता है। उसकी साधना सफल हो जाती है और व्यक्ति की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती है। जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धा से दुर्गा पूजा के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं, उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है और प्रसन्न रहता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है। मां ब्रह्मचारिणी की अराधना के समय इन मंत्रों का जाप करना विशेष फलदायी होता है।

माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान मंत्र

वन्दे वांच्छितलाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥
पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥

माँ ब्रह्मचारिणी के स्तोत्र मंत्र

तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।

माँ ब्रह्मचारिणी का कवच मंत्र

त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥

मंत्र, स्तोत्र पाठ और कवच के जाप के साथ घी एवं  कपूर मिलाकर देवी की आरती करें। अंत में दोनों हाथ जोड़कर सभी देवी देवताओं को प्रणाम करें। और क्षमा प्रार्थना करें। 
आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी। 

माँ ब्रह्मचारिणी का भोग

माता ब्रह्माचारिणी को प्रसन्न करने के लिए माता ब्रह्माचारिणी को शक्कर का भोग लगाया जाता है। नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी को शक्कर का भोग लगाने से घर के सभी सदस्यों की आयु में बढोतरी होती है। भोग लगाने के बाद शक्कर को दान कर दाना चाहिए। सुबह  नौ बजे से पहले दो सेब मां को अर्पित करके शाम को प्रसाद के रूप मैं ग्रहण करें तथा खीर मां को अर्पित करें। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है, तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है।