बिहार विधानसभा में जाति आधारित जनगणना कराने का प्रस्ताव पास, 2021 की जनगणना जातिगत आधार पर कराने की केंद्र सरकार से मांग
बिहार विधानसभा ने गुरुवार को सर्वसम्मति से जाति आधारित जनगणना कराने के लिए प्रस्ताव पारित किया है। प्रस्ताव के जरिए केंद्र सरकार से 2021 की जनगणना जाति आधारित कराने की मांग की गई है। प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से जाति आधारित जनगणना कराने की मांग करते रहे हैं। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल इस मुद्दे पर नीतीश कुमार के साथ हैं।
बिहार विधानसभा ने गुरुवार को सर्वसम्मति से जाति आधारित जनगणना कराने के लिए प्रस्ताव पारित किया है। प्रस्ताव के जरिए केंद्र सरकार से 2021 की जनगणना जाति आधारित कराने की मांग की गई है। प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से जाति आधारित जनगणना कराने की मांग करते रहे हैं। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल इस मुद्दे पर नीतीश कुमार के साथ हैं। मंगलवार को भी सदन में नीतीश कुमार ने कहा था कि देश में नई जनगणना होने वाली है। इसमें जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए।
साल 2019 के जनवरी में भी एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था,‘‘किस जाति के लोगों की संख्या कितनी है, यह मालूम होना चाहिए। देश में आबादी के अनुरूप आरक्षण का प्रावधान हो। 1931 के बाद देश में जाति आधारित जनगणना नहीं हुई। अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति और धर्म के आधार पर जनगणना हुई है। इसी तर्ज पर 2021 में सभी जातियों की जनगणना होनी चाहिए।’’ बिहार विधानसभा में 18 फरवरी 2019 को 2021 में जाति आधारित जनगणना कराए जाने का प्रस्ताव पारित किया गया था।
दरअसल, केंद्र सरकार हर 10 साल पर जनगणना कराती है। जनगणना के मौजूदा फॉर्मेट में यह तो पता चल जाता है कि देश में किस धर्म के कितने लोग हैं और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या क्या है। लेकिन यह पता नहीं चलता कि सामान्य, पिछड़ा और अति पिछड़ी जाति के लोगों की संख्या कितनी है। जाति आधारित जनगणना हुई तो यह पता चलेगा कि इनकी संख्या कितनी है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि इसके आधार पर सरकार को विकास की दौड़ में पीछे रह गए तबके के लिए अलग से योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। जाति आधारित जनगणना का संबंध आरक्षण से भी है। नीतीश कुमार की मांग रही है कि देश में आबादी के अनुरूप आरक्षण का प्रावधान हो। वर्तमान में पिछड़ी जातियों को 27 फीसदी आरक्षण मिलता है। यह पता चलने पर कि पिछड़ी जातियों में किस जाति के लोगों की संख्या कितनी है और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कैसी है। उनके लिए विशेष योजना बनाई जा सकती है।
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