दिल्ली में बीजेपी को मिली हार का बिहार में क्या होगा असर?महागठबंधन के लिए प्रशांत किशोर साबित होंगे असरदार या नीतीश कुमार कराएंगे चुनावी नैया पार?

क्या दिल्ली चुनाव का देशव्यापी असर देखने को मिलेगा? क्या बिहार, बंगाल और देश के अन्य राज्यों में बीजेपी को अपनी रणनीति बदलनी होगी? क्या बीजेपी को प्रचार के दौरान सावधानी बरतनी होगी? क्या बीजेपी के नेताओं को अल्पसंख्यकों के प्रति नरम रुख अख्तियार करना होगा? क्या बीजेपी को अपने सहयोगी दलों की मांगों को मानना ही होगा? क्या बीजेपी को सीट बंटवारे के दौरान सहयोगिया के मुताबिक समझौता करना होगा? ऐसे तमाम सवाल इसलिए खड़े हो रहे है क्योंकि दिल्ली चुनाव के बाद अब सब की नजर बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव पर टिक गई है।

दिल्ली में बीजेपी को मिली हार का बिहार में क्या होगा असर?महागठबंधन के लिए प्रशांत किशोर साबित होंगे असरदार या नीतीश कुमार कराएंगे चुनावी नैया पार?
GFX of Bihar's Political Parties Leaders
दिल्ली में बीजेपी को मिली हार का बिहार में क्या होगा असर?महागठबंधन के लिए प्रशांत किशोर साबित होंगे असरदार या नीतीश कुमार कराएंगे चुनावी नैया पार?
दिल्ली में बीजेपी को मिली हार का बिहार में क्या होगा असर?महागठबंधन के लिए प्रशांत किशोर साबित होंगे असरदार या नीतीश कुमार कराएंगे चुनावी नैया पार?
दिल्ली में बीजेपी को मिली हार का बिहार में क्या होगा असर?महागठबंधन के लिए प्रशांत किशोर साबित होंगे असरदार या नीतीश कुमार कराएंगे चुनावी नैया पार?
दिल्ली में बीजेपी को मिली हार का बिहार में क्या होगा असर?महागठबंधन के लिए प्रशांत किशोर साबित होंगे असरदार या नीतीश कुमार कराएंगे चुनावी नैया पार?
दिल्ली में बीजेपी को मिली हार का बिहार में क्या होगा असर?महागठबंधन के लिए प्रशांत किशोर साबित होंगे असरदार या नीतीश कुमार कराएंगे चुनावी नैया पार?

दिल्ली में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुका है। दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत दिया है। देश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को दिल्ली चुनाव में जोर का झटका लगा है। अब सवाल यह है कि क्या दिल्ली चुनाव का देशव्यापी असर देखने को मिलेगा? क्या बिहार, बंगाल और देश के अन्य राज्यों में बीजेपी को अपनी रणनीति बदलनी होगी? क्या बीजेपी को प्रचार के दौरान सावधानी बरतनी होगी? क्या बीजेपी के नेताओं को अल्पसंख्यकों के प्रति नरम रुख अख्तियार करना होगा? क्या बीजेपी को अपने सहयोगी दलों की मांगों को मानना ही होगा? क्या बीजेपी को सीट बंटवारे के दौरान सहयोगिया के मुताबिक समझौता करना होगा?

ऐसे तमाम सवाल इसलिए खड़े हो रहे है क्योंकि दिल्ली चुनाव के बाद अब सब की नजर बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव पर टिक गई है। दिल्ली की हार बीजेपी के लिए बिहार चुनाव से पहले कई मुश्किले ला सकता है। दिल्ली में बीजेपी की हार ने बिहार की राह में कई रोड़े खड़ा कर दिए हैं। बीजेपी नवनिर्वाचित अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए भी अब सियासी दांव-पेच कठिन होने वाला है।

बीजेपी को बिहार में ही नहीं, देश के सभी राज्यों में अपने गठबंधन के सहयोगियों की मांगों को मांगने पर मजबूर होना पड़ेगा। बिहार में बीजेपी की इस दिक्कत का लाभ सबसे ज्यादा जनता दल यूनाइटेड और लोक जनशक्ति पार्टी को होगा। दोनों ही पार्टियां सीट बंटवारे को लेकर मोलभाव करने की अच्छी स्थिति में होंगी। जेडीयू और एलजेपी ज्यादा सीटों की मांग करेंगी साथ ही चुनावी रणनीति बनाने में भी ज्यादा दखल रखेंगी।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली हार के साथ ही बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के बाद से यह सातवां राज्य गंवाया है। बीजेपी को दिल्ली में जीत की पूरी उम्मीद थी,जो पार्टी कार्यकर्ताओं में नया उत्साह और जुनून पैदा करने में मदद करती। लेकिन इस हार के बाद बीजेपी को अब अपने गठबंधन के सहयोगियों से मोलभाव करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

बीजेपी पहले ही पड़ोसी राज्य झारखंड में हार का सामना कर चुकी है। दिल्ली में इस हार ने पार्टी को कई संदेश दिए हैं। सबसे बड़ा संदेश तो यह है कि अब हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मुद्दा राज्य के चुनाव में पार्टी को कोई बड़ा फायदा नहीं दे रहा है। पार्टी को काम के ही आधार पर वोट मांगने होंगे। अच्छी बात यह है कि बीजेपी के पास बिहार में नीतिश सरकार के काम को गिनाने का मौका होगा।

बीजेपी को दिल्ली में इस हार से एक और सबक सीखने को मिला है। वो यह कि अब शायद बीजेपी के नेता अल्पसंख्यकों पर थोड़ी कम उग्र दिखाई देंगे। इसका असर बिहार चुनाव में एनडीए गठबंधन के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। बीजेपी की इस रणनीति से नीतीश कुमार के सहारे एनडीए को अल्पसंख्यकों का वोट हासिल हो सकता है। बिहार में मुस्लिमों का वोट 17 प्रतिशत के आस-पास है।

बीजेपी के लिए बिहार में परिस्थितियां भी कुछ अलग हैं। दिल्ली में बीजेपी की हार का सबसे बड़ा कारण पार्टी के पास किसी चेहरे का ना होना भी है। बिहार में बीजेपी पहले ही कह चुकी है कि वह नीतीश कुमार के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी। लिहाजा, बिहार में एनडीए गठबंधन के पास न केवल नीतीश कुमार जैसे बड़े कद वाले नेता का चेहरा है,बल्कि लालू यादव की अनुपस्थिति में महागठबंधन लड़खड़ा सकता है। उसके पास फिलहाल कोई बड़ा चेहरा नहीं है। लालू यादव के परिवार में भी एक टकराव की स्थिति देखी जा रही है।

हालांकि, बिहार में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी सियासी दिक्कत यह है कि आम आदमी पार्टी की इस जीत से विपक्ष को एक बार फिर से संजीवनी मिल चुकी है। जिस तरह अरविंद केजरीवाल की दिल्ली में जीत से कांग्रेस उत्साहित है,उससे यही अनुमान लगता है कि पार्टी आगे चलकर आम आदमी पार्टी के साथ किसी गठबंधन की फिराक में है,जो अन्य राज्यों में अपना कमाल दिखा सकता है। जिस तरीके से 2015 में महागठबंधन की शुरुआत बिहार में ही हुई थी उसी तरीके से एक बार फिर से इसे अस्तित्व में लाने के लिए एक नई शुरुआत देखी जा सकती है।

बिहार चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस एक साथ एक मंच पर दिखाई दे सकते हैं। इस कयास को बल इसलिए भी मिल रहा है क्योंकि केजरीवाल की जीत के बाद दिल्ली के आम आदमी पार्टी संयोजक गोपाल राय ने साफ कहा है कि इसका देशव्यापी असर पड़ेगा।

अब बात प्रशांत किशोर कर लेते हैं। क्योंकि बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर भी अहम भूमिका निभाने वाले हैं। प्रशांत दिल्ली चुनाव के बाद बिहार में एनडीए की मुश्किलें बढ़ा सकता है। जिस तरीके से प्रशांत किशोर को दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाते देखा गया, उसी तरीके से वह बिहार में भी विपक्ष के लिए रणनीति तैयार करते देखे जा सकते हैं।

बिहार प्रशांत किशोर के लिए नया नहीं है। प्रशांत पहले जेडीयू और आरजेडी वाले गठबंधन के लिए भी रणनीति बना चुके हैं और उसका फायदा देखने को भी मिला है। प्रशांत किशोर जेडीयू और बीजेपी में रह चुके हैं और दोनों की कमजोरी भी जानते हैं। उन्हें सीएए का विरोध करने के कारण जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। ऐसे में वह विपक्ष को मजबूत करने के लिए नया दांव पेंच चल सकते हैं।