राजनीति में अपराधीकरण : सुप्रीम कोर्ट का सियासी दलों को सख्त निर्देश,चुनाव आयोग,वेबसाइट और सोशल मीडिया पर दें उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों की जानकारी, क्यों दे रहे हैं टिकट यह भी बताएं
देश की शीर्ष अदालत ने चुनाव सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। देश की राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सभी राजनीतिक दलों को सख्त निर्देश जारी किया है। अदालत ने कहा है कि राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों का रिकॉर्ड अपने वेबसाइट डालें, साथ ही यह भी बताएं कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को वो टिकट क्यों दे रहे हैं।
देश की शीर्ष अदालत ने चुनाव सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। देश की राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सभी राजनीतिक दलों को सख्त निर्देश जारी किया है। अदालत ने कहा है कि राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों का रिकॉर्ड अपने वेबसाइट डालें, साथ ही यह भी बताएं कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को वो टिकट क्यों दे रहे हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि कहा कि देश में पिछले 4 चुनाव में दागी उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी है। लिहाजा, सभी राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों के चयन की वजह बताएं। प्रत्याशियों के खिलाफ दायर मामलों की जानकारी चुनाव आयोग को दी जाए। आदेश का पालन न होने पर आयोग अपने अधिकार के मुताबिक राजनीतिक दलों पर कार्रवाई करे। साथ ही पार्टियां आपराधिक आंकड़ों की जानकारी अखबारों में प्रकाशित कराएं और फेसबुक व ट्विटर पर साझा करें।
राजनीति में अपराधीकरण रोकने के लिए बीजेपी नेता और वकील अश्वनी उपाध्याय ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा था कि एडीआर की ओर से प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार भारत में राजनीति के अपराधीकरण में बढ़ोतरी हुई है और 24 फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।
2009 के लोकसभा चुनाव में 7,810 प्रत्याशियों का विश्लेषण करने पर पता चला कि इनमें से 1158 या 15 फीसदी ने आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी। इन प्रत्याशियों में से 610 या 8 फीसदी के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले दर्ज थे। 2014 में 8163 प्रत्याशियों में से 1398 ने आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी और इसमें से 889 के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले लंबित थे।
दरअसल, शीर्ष अदालत के न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति रवींद्र भट की पीठ ने आयोग से कहा था, 'राजनीति में अपराध के वर्चस्व को खत्म करने के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया जाए।' न्यायालय ने इस पर जवाब के लिए आयोग को एक सप्ताह का समय भी दिया था। न्यायालय ने कहा कि देश में राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए कुछ तो करना ही होगा।
चुनाव आयोग ने न्यायालय के वर्ष 2018 में दिए गए उस फैसले की याद दिलाई जिसके तहत उम्मीदवारों से उनके आपराधिक रिकार्ड को इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में घोषित करने को कहा गया था। आयोग ने कहा कि राजनीति का अपराधीकरण रोकने में उम्मीदवारों द्वारा घोषित आपराधिक रिकॉर्ड से कोई मदद नहीं मिली है।
साल 2018 के सितंबर माह में 5 जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह गंभीर अपराध में शामिल लोगों के चुनाव लड़ने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर रोक लगाने के लिए तत्काल कानून बनाए। आयोग ने सुझाव दिया कि उम्मीदवारों से आपराधिक रिकॉर्ड मीडिया में घोषित करने के बजाए ऐसे उम्मीदवारों को टिकट से वंचित कर दिया जाना चाहिए जिनका पिछला रिकॉर्ड आपराधिक रहा हो।
ज्ञात हो कि 542 सांसदों में से 233 यानी 43 फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। हलफनामों के हिसाब से 159 यानि 29 प्रतिशत सांसदों के खिलाफ हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर मामले लंबित है। बीजेपी के 303 में से 301 सांसदों के हलफनामे के विश्लेषण में पाया गया कि साध्वी प्रज्ञा सिंह सहित 116 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं।
204 लंबित मामलों वाले केरल से नवनिर्वाचित कांग्रेसी सांसद डीन कुरियाकोस सूची में प्रथम हैं। कांग्रेस के 52 में से 29 सांसद आपराधिक मामलों में घिरे हैं। सत्तारूढ़ राजद के घटक दल एलजेपी के सभी छह निर्वाचित सदस्यों, बीएसपी के आधे यानी 10 में से 5,जेडीयू के 16 में से 13,तृणमूल कांग्रेस के 22 में से 9 और एमसीपी के 3 में से 2 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। इस मामले में बीजू जनता दल के 12 निर्वाचित सांसदों में सिर्फ 1 सदस्य ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले की हलफनामे में घोषणा की है।
आपराधिक मामलों में फंसे सर्वाधिक सांसद केरल और बिहार से चुन कर आए हैं। केरल से निर्वाचित 90 फीसदी, बिहार से 82 फीसदी, पश्चिम बंगाल से 55 फीसदी, उत्तर प्रदेश से 56 फीसदी और महाराष्ट्र से 58 फसदी सांसदों पर केस लंबित। वहीं सबसे कम 9 प्रतिशत सांसद छत्तीसगढ़ के और 15 फीसदी गुजरात के हैं। 2014 के चुनाव में निर्वाचित ऐसे सांसदों की संख्या 185 यानी 34 प्रतिशत थी, 112 सांसदों पर गंभीर मामले चल रहे थे
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