17 साल बाद पूरा हो सकेगा हाईस्पीड ट्रेन में सफर करने का सपना,बजट की कमी बन रहा है रोड़ा,रेलवे के दस्तावेजों से हुआ खुलासा

दस्तावेजों के मुताबिक 298 बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को पूरा करने के लिए पांच लाख 22 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है,लेकिन रेलवे को उपरोक्त मद में प्रति वर्ष 30 हजार करोड़ रुपये मिलते हैं। लिहाजा, धन की कमी के कारण सभी परियोजनाओं के पूरा होने में 17 साल का समय लगेगा।

17 साल बाद पूरा हो सकेगा हाईस्पीड ट्रेन में सफर करने का सपना,बजट की कमी बन रहा है रोड़ा,रेलवे के दस्तावेजों से हुआ खुलासा
GFX of High Speed Indian Railways Train In India
17 साल बाद पूरा हो सकेगा हाईस्पीड ट्रेन में सफर करने का सपना,बजट की कमी बन रहा है रोड़ा,रेलवे के दस्तावेजों से हुआ खुलासा
17 साल बाद पूरा हो सकेगा हाईस्पीड ट्रेन में सफर करने का सपना,बजट की कमी बन रहा है रोड़ा,रेलवे के दस्तावेजों से हुआ खुलासा
17 साल बाद पूरा हो सकेगा हाईस्पीड ट्रेन में सफर करने का सपना,बजट की कमी बन रहा है रोड़ा,रेलवे के दस्तावेजों से हुआ खुलासा

देश की लाइफलाइन भारतीय रेल, सुगम और सुरक्षित यात्रा की पहली पसंद भारतीय रेल, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि देश के सभी रेल मार्गों पर रफ्तार बढ़ाने के मास्टर प्लान को पूरा होने में अभी कम से कम सत्रह वर्षों का वक्त लगेगा। इसका खुलासा रेलवे के खुद के अपने दस्तावेज में किए हैं।

दरअसल, रेलवे बोर्ड 2024 तक देश के प्रमुख रेलमार्गों पर सरकारी प्रीमियम ट्रेन और निजी ट्रेन की रफ्तार बढ़ाकर 160 किलोमीटर प्रतिघंटा करना चाहता है। इसके लिए हाई स्पीड कॉरिडोर का मास्टर प्लान भी तैयार कर लिया गया है, लेकिन बजट का संकट ट्रेन की रफ्तार बढ़ाने में सबसे बड़ी बाधा बन गया है।

रेलवे बोर्ड के मास्टर प्लान में स्वर्णिम चतुर्भुज दिल्ली-कोलकाता, कोलकाता-चेन्नई, चेन्नई-मुंबई, मुंबई-दिल्ली सहित मुंबई-कोलकाता और दिल्ली-चेन्नई के रेलमार्गों को हाई स्पीड कॉरिडोर बनाने का खाका तैयार किया है। बताया जा रहा है कि दिल्ली-कोलकाता और दिल्ली-मुंबई को हाईस्पीड बनाने का काम दिसंबर 2019 में शुरू करने की योजना है, लेकिन शेष कॉरिडोर को हाईस्पीड बनाने के लिए रेलवे के पास पर्याप्त बजट नहीं है।

देश के प्रमुख रेलमार्गों के सेक्शनों पर रेल लाइनों के दोहरीकरण, तिहारीकरण, चौथी लाइन, नई रेल लाइन, आमान परिवर्तन का काम भी चल रहा है, जिससे कि रेलमार्गों पर कंजेशन की समस्या से निपटा जा सके। रेलवे दस्तावेजों के अनुसार,  बुनियादी ढांचे के लिए हर साल लगभग 30 हजार करोड़ रुपये बजट मिलता है। जबकि ऐसी बुनियादी ढांचे संबंधी परियोजनाओं की संख्या 498 है।

दस्तावेजों के मुताबिक 298 बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को पूरा करने के लिए पांच लाख 22 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है,लेकिन रेलवे को उपरोक्त मद में प्रति वर्ष 30 हजार करोड़ रुपये मिलते हैं। लिहाजा, धन की कमी के कारण सभी परियोजनाओं के पूरा होने में 17 साल का समय लगेगा। इससे रेलवे की प्रीमियम ट्रेन राजधानी एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस, वंदे भारत एक्सप्रेस (ट्रेन-18) सहित प्रस्तावित 150 निजी ट्रेन को 160 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार पर चलाने की योजना पर पानी फिर जाएगा।

रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष विनोद कुमार यादव ने बताया कि सीमित संसधान और बजट की कमी को देखते हुए नई रेल लाइन, रेल लाइन का दोहरीकरण, तिहरीकरण, आमान परिवर्तन आदि परियोजनाओं को सुपर क्रिटिकल और क्रिटिकल दो श्रेणियों में विभाजित किया है।

सुपर क्रिटिकल में 58 परियोजनाएं और क्रिटिकल में 68 परियोजनाओं को शामिल किया गया है। इसमें दोहरीकरण, तीसरी लाइन परियोजनाओं को दिसंबर 2021 में पूरा करने का लक्ष्य है,जबकि क्रिटिकल में एक अमान परिवर्तन,  67 दोहरीकण-तिहारीकरण, चौथी लाइन आदि को मार्च 2024 में पूरा किया जाएगा। इससे रेलमार्गों की क्षमता बढ़ने से  ट्रेन की रफ्तार बढ़ेगी।