असुर : जो लोहा खाते हैं और लोहे की तरह मजबूत हैं
नेतरहाट गैर-आदिवासी लोगों के लिए पर्यटन की जगह है। कॉरपोरेट कंपनियों के लिए बॉक्साइट माइनिंग की जगह है। सेना के लिए चांदमारी का क्षेत्र है। लेकिन असुरों के लिए यह उनका पुरखा निवास क्षेत्र है जहां वे सदियों से रहते आए हैं। ए.के. पंकज की रिपोर्ट -
नेतरहाट गैर-आदिवासी लोगों के लिए पर्यटन की जगह है। कॉरपोरेट कंपनियों के लिए बॉक्साइट माइनिंग की जगह है। सेना के लिए चांदमारी का क्षेत्र है। लेकिन असुरों के लिए यह उनका पुरखा निवास क्षेत्र है जहां वे सदियों से रहते आए हैं।
उनको मिटाने की कोशिश वैदिक जमाने से हो रही है पर मुट्ठी भर असुर सरेंडर करने और मरने से इनकार कर रहे हैं। टाटा ने उनके लोहा बनाने की तकनीक चुरा ली और उसे स्टील बनाकार बेचता है। बिड़ला उनकी जमीन से बॉक्साइट निकाल रहा है। परंतु जिंदा रहने के लिए वे आज भी अड़े हुए हैं।
उनकी इसी अदम्य जिजीविषा का परिणाम है ‘असुर आदिवासी विजडम अखड़ा’ केंद्र, जिसकी स्थापना 25 मई को नेतरहाट के जोभीपाट गांव में हुई है।
(ए.के. पंकज वरिष्ठ लेखक हैं)
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