भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक फातिमा शेख की जयंती पर देश ने किया नमन,जानिए,कौन थी फातिमा शेख और उनका शिक्षा के क्षेत्र में क्या था योगदान? 

भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक फातिमा शेख की जयंती गुरुवार को मनायी गयी। उनकी जयंती पर लोगों ने उन्हें नमन किया और उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लिया। वास्तव में फातिमा शेख ने लड़कियों, खासकर दलित और मुस्लिम समुदाय की लड़कियों को शिक्षित करने में सन्‌ 1848 के दौर में अहम योगदान दिया था। फातिमा शेख ने दलित महिलाओं को शिक्षित करने का प्रयास करने वाली सावित्रीबाई फुले और महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ काम किया था। 

भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक फातिमा शेख की जयंती पर देश ने किया नमन,जानिए,कौन थी फातिमा शेख और उनका शिक्षा के क्षेत्र में क्या था योगदान? 
Pic of Fatima Shaikh with Jyotiba Fule and Savitribai Fule
भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक फातिमा शेख की जयंती पर देश ने किया नमन,जानिए,कौन थी फातिमा शेख और उनका शिक्षा के क्षेत्र में क्या था योगदान? 
भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक फातिमा शेख की जयंती पर देश ने किया नमन,जानिए,कौन थी फातिमा शेख और उनका शिक्षा के क्षेत्र में क्या था योगदान? 
भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक फातिमा शेख की जयंती पर देश ने किया नमन,जानिए,कौन थी फातिमा शेख और उनका शिक्षा के क्षेत्र में क्या था योगदान? 
भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक फातिमा शेख की जयंती पर देश ने किया नमन,जानिए,कौन थी फातिमा शेख और उनका शिक्षा के क्षेत्र में क्या था योगदान? 

भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक फातिमा शेख की जयंती गुरुवार को मनायी गयी। उनकी जयंती पर लोगों ने उन्हें नमन किया और उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लिया। वास्तव में फातिमा शेख ने लड़कियों, खासकर दलित और मुस्लिम समुदाय की लड़कियों को शिक्षित करने में सन्‌ 1848 के दौर में अहम योगदान दिया था। फातिमा शेख ने दलित महिलाओं को शिक्षित करने का प्रयास करने वाली सावित्रीबाई फुले और महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ काम किया था। 

सावित्री बाई फुले ने जिस वक्त दलितों के उत्थान के लिए लड़कियों को शिक्षित करने का काम शुरू किया,उन्हें घर से निकाल दिया गया। उस वक्त फुले दंपती को फातिमा शेख के बड़े भाई ने अपने घर में जगह दी थी। सावित्री फुले ने जब स्कूल खोला उस वक्त बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं मिल रहे थे, लेकिन फातिमा शेख ने उनकी मदद की और स्कूल में लड़कियों को पढ़ाया। उनके प्रयासों से ही जो मुस्लिम लड़कियां मदरसों में जाती थीं, वो स्कूल जाने लगीं। फातिमा शेख को दलित-मुस्लिम एकता के सूत्रधारों में से एक माना जाता है। 

दरअसल, जिस एक काम के लिए सावित्रीबाई की ख्याति सबसे ज्यादा है, वह काम 1848 में पुणे के भिडेवाड़ा में लड़कियों के लिए एक स्कूल का खोलना और फिर वहां पढ़ाना है। लेकिन पुणे का वो स्कूल सावित्रीबाई ने अकेले नहीं खोला था, न ही वो वहां की एकमात्र महिला शिक्षिका थीं। कोई और भी था, जो इस परियोजना में उनके साथ जुटा था। 

कोई और था,जिसने बालिका सावित्रीबाई के साथ शिक्षा ग्रहण की थी, उनके साथ पुणे के अध्यापक प्रशिक्षण विद्यालय में ट्रेनिंग ली थी। कोई और था,जिसने सावित्रीबाई और उनके पति को अपना घर रहने और स्कूल खोलने के लिए दिया था। कोई और था, जो इस स्कूल में सावित्रीबाई के साथ पढ़ाता था। जी हां, वह कोई और नहीं, वह फातिमा शेख थीं। फातिमा शेख सावित्रीबाई फुले की तरह ही देश के पहले महिला विदायालय की शिक्षक थीं। 

फातिमा शेख मुस्लिम मोहल्लो में भी जाती थीं और परिवारों को स्त्री शिक्षा के बारे में बताता थीं। उन्हें एक साथ हिंदुओं और मुसलमानों के विरोध का सामना करना पड़ा। फातिमा शेख वह भारतीय मुस्लिम शिक्षिका थी, जो सामाजिक सुधारकों, ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थीं। फातिमा शेख मियां उस्मान शेख की बहन थी,जिनके घर में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने निवास किया था।

जब फुले के पिता ने दलितों और महिलाओं के उत्थान के लिए किए जा रहे,उनके कामों की वजह से उनके परिवार को घर से निकाल दिया था। वह आधुनिक भारत में पहली मुस्लिम महिला शिक्षकों में से एक थीं और उसने फुले स्कूल में दलित बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया था।

ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले,फातिमा शेख के साथ, दलित समुदायों में शिक्षा फैलाने का आरोप लगाया। फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं और उत्पीड़ित जातियों के लोगों को शिक्षा देना शुरू किया। लिहाजा,स्थानीय लोगों ने उन्हें धमकी दी। उनके परिवारों को भी निशाना बनाया गया और उन्हें अपनी सभी गतिविधियों को रोकना या अपने घर छोड़ने का विकल्प दिया गया। उन्होंने स्पष्ट रूप से घर छोड़ने का विकल्प चुना।

ज्योतिबा फूले दंपत्ति को न तो उनकी जाति और ना ही उनके परिवार और सामुदाय के लोगों ने उनका साथ दिया। आस-पास के सभी लोगों ने उन्हें त्याग दिया। उसके बाद यह जोड़ी आश्रय की तलाश में मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति उस्मान शेख के घर आए,जो पुणे के गंज पेठ में रह रहे थे। उस्मान शेख ने ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी को न सिर्फ अपने घर में आश्रय दिया, बल्कि घर में ही एक स्कूल चलाने पर सहमति भी दी।

पूणे की ऊंची जाति से लगभग सभी लोग फातिमा और सावित्रीबाई फुले के खिलाफ थे और सामाजिक अपमान के कारण उन्हें रोकने की भी कोशिश थी। यह फातिमा शेख थी जिसने हर संभव तरीके से दृढ़ता से समर्थन किया और सावित्रीबाई को आगे बढ़ने में मदद की। फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ उसी स्कूल में पढ़ना शुरू किया।

सावित्रीबाई और फातिमा सागुनाबाई के साथ थे,जो बाद में शिक्षा आंदोलन में एक और नेता बन गए थे। फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख भी ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के आंदोलन से प्रेरित थे। उस अवधि के अभिलेखागारों के अनुसार,यह उस्मान शेख था,जिन्होंने अपनी बहन फातिमा को समाज में शिक्षा का प्रसार करने के लिए प्रोत्साहित किया। फातिमा और सावित्रीबाई ने जब ज्योतिबा द्वारा स्थापित स्कूलों में जाना शुरू कर दिया, तो पुणे से लोग परेशान करते और पत्थर फेकते थे।