अयोध्या जमीन विवाद मामले में सुप्रीम सुनवाई पूरी, न्यायालय ने फैसला रखा सुरक्षित, 23 दिन के अंदर आ सकता है फैसला
सर्वोच्च न्यायालय में अयोध्या के ऐतिहासिक जमीन विवाद मामले में सुनवाई पूरी हो गई है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। न्यायालय का फैसला अगले 23 दिन में आ सकता है। मुख्य न्यायाधीश अगले महीने 18 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं, ऐसे में उससे पहले इस ऐतिहासिक मामले में फैसला आ सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय में अयोध्या के ऐतिहासिक जमीन विवाद मामले में सुनवाई पूरी हो गई है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। न्यायालय का फैसला अगले 23 दिन में आ सकता है। मुख्य न्यायाधीश अगले महीने 18 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं, ऐसे में उससे पहले इस ऐतिहासिक मामले में फैसला आ सकता है।
मुख्य न्यायाधीश ने बुधवार को स्पष्ट कर दिया कि शाम 5 बजे तक सुनवाई पूरी होगी। लेकिन 1 घंटे पहले ही 4 बजे सुनवाई पूरी हो गई। अयोध्या मामले में नियमित सुनवाई तय होने के बाद 40 दिनों तक हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें रखीं। सुनवाई के आखिरी दिन मुस्लिम पक्ष के वकील ने हिंदू पक्ष की तरफ से जमा किए एक नक्शे को फाड़ दिया। इसके बाद दोनों पक्षों के वकीलों में तीखी नोंकझोंक भी हुई,जिससे नाराज मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'हम सुनवाई को इस तरह से जारी नहीं रख सकते। लोग खड़े हो रहे हैं और बिना बारी के बोल रहे हैं। हम भी अभी खड़े हो सकते हैं और मामले की कार्यवाही को खत्म कर सकते हैं।'
सर्वोच्च न्यायालय में अखिल भारतीय हिंदू महासभा की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने एक किताब और कुछ दस्तावेज के साथ विवादित भगवान राम के जन्म स्थान की पहचान करते हुए एक नक्शा जमा किया। मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने दस्तावेज के रेकॉर्ड में नहीं होने की बात कहते हुए आपत्ति जताई। अदालत में दस्तावेज को फाड़ने की 5 जजों की बेंच से अनुमति मांगते हुए धवन ने कहा, 'क्या, मुझे इस दस्तावेज को फाड़ने की अनुमति है, यह सुप्रीम कोर्ट कोई मजाक नहीं और इसके बाद उन्होंने दस्तावेज के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।'
धवन ने सिंह द्वारा मामले से जुड़ी एक किताब जमा करने के प्रयास पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने इसे प्रस्तुत करने पर तेज आवाज में आपत्ति जताई और इसका विरोध किया। अदालत ने धवन की आपत्तियों को दर्ज किया। सिंह ने जोर दिया कि सीता रसोई और सीता कूप के नक्शे से जगह की पहचान होती है, जो कि भगवान राम की जन्मभूमि है। मुख्य न्यायाधीश ने पाया कि यह सुनवाई के अनुकूल वातावरण नहीं है, खास तौर से मुस्लिम पक्ष का व्यवहार। अदालत के भीतर मामलों की स्थिति पर अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'जहां तक हम समझते हैं, बहस खत्म हो गई है।'
वास्तव में हिंदू महासभा के वकील विकास सिंह ने रिटायर्ड आईपीएस अफसर कुणाल किशोर की किताब अयोध्या रीविजिटेड को कोर्ट के सामने रखा। इसी किताब में वह नक्शा था जिसे धवन ने फाड़ा। नक्शा फाड़े जाने पर किताब के लेखक कुणाल किशोर का बयान भी आ गया है। उन्होंने कहा कि धवन इंटेलेक्चुअल हैं। वह जानते हैं कि अगर नक्शा कोर्ट के सामने पेश होता तो उनका केस न के बराबर रह जाता। अगर धवन को दिक्कत थी तो उन्हें दिए गए वक्त में उसपर बात करनी चाहिए थी।
आपको बताते चलें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर की गईं थीं। शीर्ष अदालत ने मई 2011 में हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के साथ विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। अब इन 14 अपीलों पर सुनवाई पूरी हो गई है और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
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