Corona Effect : लॉकडाउन के कारण न्यायपालिका का कामकाज भी हुआ प्रभावित,लंबित मुकदमों की संख्या बढ़कर हुई 3.68 करोड़ 

कोरोना वायरस महामारी की वजह से देश में 21 दिन के संपूर्ण लॉकडाउन से न्यायपालिका का कामकाज भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। शीर्ष अदालत से लेकर निचली अदालतों तक सिर्फ अत्यावश्यक मामलों की सुनवाई होने से न्यायपालिका में लंबित मुकदमों का बोझ और ज्यादा हो जाने की आशंका है। इस समय उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या 3.62 करोड से बढक़र 3.68 करोड़ हो चुकी है।

Corona Effect : लॉकडाउन के कारण न्यायपालिका का कामकाज भी हुआ प्रभावित,लंबित मुकदमों की संख्या बढ़कर हुई 3.68 करोड़ 
Pic Supreme Court of India
Corona Effect : लॉकडाउन के कारण न्यायपालिका का कामकाज भी हुआ प्रभावित,लंबित मुकदमों की संख्या बढ़कर हुई 3.68 करोड़ 
Corona Effect : लॉकडाउन के कारण न्यायपालिका का कामकाज भी हुआ प्रभावित,लंबित मुकदमों की संख्या बढ़कर हुई 3.68 करोड़ 
Corona Effect : लॉकडाउन के कारण न्यायपालिका का कामकाज भी हुआ प्रभावित,लंबित मुकदमों की संख्या बढ़कर हुई 3.68 करोड़ 
Corona Effect : लॉकडाउन के कारण न्यायपालिका का कामकाज भी हुआ प्रभावित,लंबित मुकदमों की संख्या बढ़कर हुई 3.68 करोड़ 

देश में कोरोना वायरस का कहर जारी है। कोरोना संक्रमितों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। क्या आम,क्या खास सभी का जीना मुहाल हो गया है। लोग अपने-अपने घरों में दुबकने को मजबूर हैं। व्यापार, कारोबार, उद्योग, धंधा और शिक्षा जैसे तमाम क्षेत्र प्रभावित हुए हैं।

कोरोना वायरस महामारी की वजह से देश में 21 दिन के संपूर्ण लॉकडाउन से न्यायपालिका का कामकाज भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। शीर्ष अदालत से लेकर निचली अदालतों तक सिर्फ अत्यावश्यक मामलों की सुनवाई होने से न्यायपालिका में लंबित मुकदमों का बोझ और ज्यादा हो जाने की आशंका है। इस समय उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या 3.62 करोड से बढक़र 3.68 करोड़ हो चुकी है।

लॉकडाउन की अवधि में बहुत बड़ी संख्या में मुकदमों की सुनवाई टाली जा चुकी है और इस दौरान नये मुकदमे भी दायर हुए हैं। लॉकडाउन से पहले तक उच्चतम न्यायालय में 12 से 13 न्यायालय कक्षों में मुकदमों की सुनवाई होती थी और प्रत्येक पीठ के समक्ष बड़ी संख्या में मुकदमे सूचीबद्ध होते थे। लेकिन कोरोना वायरस संक्रमण के बाद से शीर्ष अदालत में सिर्फ ‘अत्यावश्यक महत्व के’ चुनिन्दा मुकदमों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई हो रही है।

सर्वोच्च अदालत में अनेक महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई प्रभावित हुई है। इन मामलों में सबरीमला मंदिर और मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, दाउदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के खतने, पारसी समुदाय से बाहर विवाह करने वाली स्त्री को किसी परिजन के अंतिम संस्कार से जुड़ी रस्म में शामिल होने से वंचित करने से संबंधित प्रकरण शामिल हैं।

इनके अलावा संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान खत्म करने, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं, शाहीनबाग में सार्वजनिक मार्ग अवरुद्ध करने का मामला और हिंसा के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले आरोपियों के नाम और चित्र चौराहों पर लगाने जैसे मामलों की सुनवाई भी अधर में लटक गई है।

स्थिति की गंभीरता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि उच्चतम न्यायालय की ई-समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय वाई चन्द्रचूड़ ने पिछले दिनों उच्च न्यायालयों की ई-समिति के न्यायाधीशों के साथ विकट स्थिति पर चर्चा की और उनकी समस्याओं पर विचार किया। ई-समिति ने उच्च न्यायालयों से कहा है कि अत्यावश्यक मामलों की तत्परता से सुनवाई सुनिश्चित की जाए,जिससे कि वादकारियों को अदालत नहीं आना पड़े।

लॉकडाउन की वजह से उच्च न्यायालयों में भी कामकाज प्रभावित हुआ है। इनमें नियमित मुकदमों की सुनवाई नहीं हो रही है। इस समय अदालतों का काम बहुत ही सीमित हो गया है। यही वजह है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद उच्च न्यायालयों में भी बड़ी संख्या में लंबित महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई में विलंब होने की संभावना बढ़ गई है।

इसके अलावा, लॉकडाउन से राष्ट्रीय हरित अधिकरण, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निबटान आयोग सहित लगभग सारे अधिकारणों का कामकाज भी प्रभावित हुआ है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद इन अधिकरणों के कामकाज को भी पटरी पर लाना बड़ी चुनौती होगी €क्योंकि इनमें लंबित मामलों का तेजी से निपटारा आसान काम नहीं होगा।

सर्वोच्च न्यायालय के कैलेण्डर के अनुसार 16 मई से सात जुलाई तक ग्रीष्मावकाश रहना है। इस दौरान अवकाशकालीन पीठ ही आवश्यक मुकदमों की सुनवाई करती हैं। संभव है कि 21 दिन के लॉकडाउन की वजह से अदालतों के कार्य दिवसों के नुकसान की भरपाई के लिए ग्रीष्मावकाश की अवधि कम की जाएगी। संभव है ग्रीष्मावकाश के दौरान उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च अदालत में मुकदमों की सुनवाई के लिए ज्यादा से ज्यादा पीठ गठित की जाए।

अगर बात देशभर की निचली अदालतों की करें, तो उनकी स्थिति भी ज्यादा अलग नहीं है। इन अदालतों के मामले में भी राज्य सरकार और उच्च न्यायालयों को ऐसा रास्ता खोजना होगा जिससे तेज गर्मी के दौरान न्याय का इंतजार कर रहे वादकारियों को अपने मुकदमों की सुनवाई के लिए ज्यादा परेशानी नहीं उठाने पड़े। अधीनस्थ अदालतों में मुकदमों के निस्तारण की प्रक्रिया तेज करने के लिए राज्य सरकारों और उच्च न्यायालयों को न्यायाधीशों के रिक्त पदों पर भर्तियों का काम तेज करना होगा।

लॉकडाउन की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुई न्यायपालिका के समक्ष अब मुकदमों की तेजी से सुनवाई करना और उनका निस्तारण बड़ी चुनौती है। इस स्थिति से उबरने में वैसे तो लंबा वक्त लग सकता है लेकिन उच्च न्यायालयों, अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों पर तेजी से नियुक्तियां करके और नए पदों का सृजन करके जनता को तेजी से न्याय उपलŽध कराने की संभावना पर विचार किया जा सकता है।