सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद पंडित शील भूषण शर्मा से जानिए चार दिवसीय महापर्व छठ महापर्व का महात्म्य

छठ महापर्व पर सूर्यदेव को अर्ध्य अर्पित करने का विधान है। क्योंकि भगवान भास्कर की भक्ति से मनुष्यों के संपूर्ण मनोरथ पूर्ण होते हैं। देवी अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य की उत्पति एवं भगवान विराट के नेत्रों से सूर्यदेव की अभिव्यक्ति हुई है। समस्त जगत के जीवनदाता, ज्योति एवं उष्णता के परमपूंज तथा समस्त ज्ञान के स्वरूप सर्वोपकारी देव श्री सूर्य नारायण की महिमा अपरंपार है।

सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद पंडित शील भूषण शर्मा से जानिए  चार दिवसीय महापर्व छठ महापर्व का महात्म्य
GFX of Pandit Sheel Bhushan Sharma On Chhath Mahaparv
सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद पंडित शील भूषण शर्मा से जानिए  चार दिवसीय महापर्व छठ महापर्व का महात्म्य
सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद पंडित शील भूषण शर्मा से जानिए  चार दिवसीय महापर्व छठ महापर्व का महात्म्य
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सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद पंडित शील भूषण शर्मा से जानिए  चार दिवसीय महापर्व छठ महापर्व का महात्म्य
सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद पंडित शील भूषण शर्मा से जानिए  चार दिवसीय महापर्व छठ महापर्व का महात्म्य

सूर्यषष्ठी यानी भगवान भुवन भास्क र की आराधना का महापर्व। शरद और शीत ऋतु की संधिवेला में प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करने की प्रेरणा देता लोक-महापर्व। एक ऐसा महायज्ञ, जिसमें न तो पुरोहित होते हैं, न मंत्रानुष्ठान और ना ही क्लिष्ट कर्मकाण्ड। एक ऐसा लोक-उत्सव, जिसमें अस्पृष्यता, ऊंच-नीच, दिखावा जैसे सामाजिक पापों के लिए कोई जगह नहीं बचती।

महापर्व में रहता है तो बस अहंकारशून्य पूर्ण समर्पण का भाव और संपूर्ण सृष्टि के प्रति कल्याणकारी भावोद्गार लिए लोकगीत की गूंज। ये लोकगीत ही इस अद्वितीय महापर्व के मंत्र हैं, गीत गाती नारियां पुरोहित, कच्चे बांस के सूप-दौरे यजन-पात्र और ताम्बे का लोटा स्रुवा। वैदिक देवता सूर्य की लोक आराधना का यह महापर्व संपूर्ण रूप से ‘मृत्योर्मां अमृतंगमय’ का प्रगटी करण है।

चाहे राजा हों या रंक, अस्पृष्य कहे जानेवाले डोमों के घर से बांस-दौरे, मिट्टी के दीपक, आस-पास उपजे कन्द-मूल में शक्करकन्द, सूथनी, ऋतुफल, नया बादाम, ईख, गेहूं के आटे और गूड़ से बने घी में तले अगरौटे, चावल के आटे-चीनी की कचवनिया का प्रसाद और कम से कम पांच घरों से पूजन के लिए भिक्षा मांगना.... अहंकारशमन के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है! और भगवान से याचना भी कैसी?

घोड़वा चढ़न के बेटा मांगिला, नेपुर शबद पतोहु, छठी मइया, दरसन देहूं ना आपsन।।

यानी बेटा सामर्थ्यशाली हो, समाज की रक्षा कर सके और नूपुर की तरह मीठे व्यवहार वाली पुतोहु।
लेकिन सबसे बड़ी बात, जिसका अन्यत्र कोई उदाहरण नहीं मिलता, एकमात्र इस महापर्व का गुणधर्म है।

रुनुकी-झुनुकी बेटी मांगिला, पढ़ल पंडितवा दामाद, छठी मइया......

और वह है भगवान से बेटी की याचना। बेटा ही नहीं, घर को प्राणवान बनाने के लिए रुनझुन करती बेटी की याचना की आतुर गूंज इस महानुष्ठान की मर्यादा को अभिव्यक्त करती है। साथ ही दामाद कैसा, जो पढ़ा-लिखा हो समझदार हो... धन की कामना ही नहीं।

घाट पर अर्घ्य को खड़े व्रती को अर्घ्य दिलाने के लिए बढ़े हाथ जिस किसी भी व्यक्ति के हैं, उनके सामाजिक स्तर का ध्यान तो होता ही नहीं। प्रसाद के लिए हाथ बढ़ाकर याचना करना महापुण्य समझा जाता है।

तो आइए जानते हैं, कैसे मनाते हैं छठ महापर्व?

चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से, जो इस वर्ष गुरूवार, 31 अक्टूबर से हो रही है। पहले दिन को नहाय-खाय कहते हैं। इस दिन परिजनों समेत स्नान कर 12 घण्टे के अंतराल पर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी आहार यानि अरवा चावल और घी और सैंधव नमक से बनी चने की दाल तथा लौकी की सब्जी प्रसाद के रूप में ग्रहण किये जाते हैं।

अगले दिन यानि पंचमी को, जो इस वर्ष शुक्रवार, 1 नवम्बर को है, ‘खरना’ होता है। दोपहर में घाट की पूजा, भगवान को अर्घ्य देकर पूजन की शुरुआत करते हैं। रात में गन्ने का रस और चावल का ‘जाउर’ या गुड़-दूध-चावल की खीर बनायी जाती है। हाथ पर थपकाकर बनी रोटी के साथ ‘जाउर’ पिछली रात्रि से 24 घण्टे के उपवास के बाद रात में व्रतधारी यह प्रसाद लेते हैं। एक बैठक में बिना बोले प्रसाद-ग्रहण की परम्परा है। और फिर शुरू होता है 36 घंटे का कर्मशील निर्जला महा उपवास।

सूर्यषष्ठी जो इस वर्ष शनिवार, 2 नवम्बर के दिन सुबह सूर्योदय से पहले तैयार होकर प्रसाद बनाने की तैयारी शुरू हो जाती है। चुल्हे के सामने बिना बोले अगरौटा-कचवनिया बनाना शुरू कर देते हैं व्रती। फिर सूप-दउरे में प्रसाद सजाए जाते हैं-- शक्करकन्द, सूथनी, ऋतुफल, पानीफल सिंघाड़ा, नया बादाम, भिगोया चना, जायफल, पान-सुपारी, महावर, ईख, गेहूं के आटे और गूड़ से बने घी में तले अगरौटे, चावल के आटे-चीनी की कचवनिया तथा ईख।

अपराह्न होते ही ‘कांचहिं बांस के बहंगिया….’ के गुंजार के बीच माथे पर दउरा रखे, नंगे पांव ‘सूरज बाबा’ को अर्घ्य अर्पित करने चल देते हैं परिजनों सहित व्रती। घाट पर उपलब्धतानुसार कमर भर जल में प्रार्थना करते, निहारते खड़े रहते हैं अस्ताचलगामी सूर्य को। फिर सूप में अर्घ्य सजाकर दो बार दूध और तीन बार जल से अर्घ्य दे परिक्रमा करते हैं। सम्भव हो तो रात्रिवास घाट पर ही करते हैं।

सप्तमी जो इस वर्ष रविवार, 3 नवम्बर की सुबह उषाकाल में ही जल में खड़े सूर्य की प्रतीक्षा प्रारम्भ हो जाती है। उगते सूर्य को तीन बार दूध और दो बार जल से अर्घ्य देकर अनुष्ठान पूर्ण किया जाता है। व्रत की पूर्णता पारण से होती है। घाट पर ही धूप-दीप-गन्ध से आदित्यनारायण की पूजा कर प्रसाद-शर्बत से पारण किया जाता है।

आइए, भगवान भुवन भास्कर की अभ्यर्थना को करबद्ध खड़े होकर आरोग्ययुक्त वैभवसम्पन्न सुदृढ़ समाज की याचना करें...