हिंदी मत लादिए लेकिन....
त्रिभाषा-सूत्र के विवाद पर तीन-तीन मंत्रियों को सफाई देनी पड़ी है। उन्होंने कहा है कि यह तो शिक्षा समिति की रपट भर है। यह सरकार की नीति नहीं है। अभी इस पर सांगोपांग विचार होगा, तब यह लागू होगी। क्यों कहना पड़ा, उन्हें ऐसा ? इसलिए कि मोदी सरकार पर यदि हिंदी थोपने का ठप्पा जड़ दिया गया तो वह दक्षिण के चारों राज्यों में चारों खाने चित हो जाएगी और बंगाल में भी उसे नाकों चने चबाने पड़ेंगे।
त्रिभाषा-सूत्र के विवाद पर तीन-तीन मंत्रियों को सफाई देनी पड़ी है। उन्होंने कहा है कि यह तो शिक्षा समिति की रपट भर है। यह सरकार की नीति नहीं है। अभी इस पर सांगोपांग विचार होगा, तब यह लागू होगी। क्यों कहना पड़ा, उन्हें ऐसा ? इसलिए कि मोदी सरकार पर यदि हिंदी थोपने का ठप्पा जड़ दिया गया तो वह दक्षिण के चारों राज्यों में चारों खाने चित हो जाएगी और बंगाल में भी उसे नाकों चने चबाने पड़ेंगे। पहले जनसंघ और फिर भाजपा पर हिंदी थोपने का आरोप तो लगता ही रहा है। इसी से तंग आकर डाॅ. लोहिया ने तमिलों से कहा था कि ‘हिंदी जाए भाड़ में।’ आप पहले अंग्रेजी हटाइए। जब अंग्रेजी हटेगी तो उसकी जगह नौकरशाहों, नेताओं, सेठों, विद्वानों और संपूर्ण भद्रलोक की भाषा कौन बनेगी ? हिंदी !
अब से लगभग 30 साल पहले जब उप्र के मुख्यमंत्री मुलायमसिंह और मैं मद्रास में मुख्यमंत्री करुणानिधि से मिलने गए तो उनका पहला सवाल यही था कि क्या आप हम पर हिंदी थोपने यहां आए हैं ? हमने कहा, हम आप पर तमिल थोपने आए है। आप अपना सारा काम तमिल में कीजिए। ऐसा होगा तो हम तमिल सीखने को मजबूर होंगे और आप हिंदी सीखने को। हिंदी और सारी भारतीय भाषाओं के बीच बस एक ही दीवार है, अंग्रेजी की ! गुलामी की यह दीवार गिरी कि सारी भाषाओं में सीधा संवाद कायम हो जाएगा। शिक्षा की नई भाषा नीति में अंग्रेजी की इस दीवार पर जबर्दस्त हमले किए गए हैं। उसके लिए मैं बधाई देता हूं।
किसी सरकारी रपट में यह पहली बार कहा गया है कि अंग्रेजी की अनिवार्यता ने भारत को कितनी आर्थिक और बौद्धिक हानि पहुंचाई है। अंग्रेजी थोपने के विरुद्ध जो तर्क पिछले 60 साल में लोहिया, विनोबा और मैंने दिए हैं, पहली बार उन्हें किसी सरकारी रपट में मैं देख रहा हूं। यह रपट एक तमिलभाषी वैज्ञानिक श्री कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में तैयार हुई है और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री जयशंकर ने भी तमिलनाडु के नेताओं को आश्वस्त किया है। ये दोनों भी तमिल है और दोनों ज.ने.वि. के पढ़े हुए हैं। इसके बावजूद यह मामला तूल पकड़ेगा।
इसका हल सिर्फ एक ही है कि जो हिंदी न पढ़ना चाहे, उस पर हिंदी लादी न जाए। वह हिंदी न पढ़े लेकिन अंग्रेजी को सभी जगह से हटा दें याने शासन से, प्रशासन से, शिक्षा से, न्याय से, नौकरियों से ! तब अंग्रेजी को अपनी कीमत खुद मालूम पड़ जाएगी और अंग्रेजीप्रेमी फिर क्या करेंगे ? आपके कहे बिना ही सब लोग अपने आप हिंदी पढ़ेंगे। किस सरकार में इतना दम है कि वह यह नीति लागू करे।
(लेखक के ये अपने विचार हैं)
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