भारत-पाक : आगे की सोचिए
लंदन में पाकिस्तानी चैनलों को देखने पर लगा कि मानो भारत सरकार ने महाराष्ट्र और हरयाणा के चुनाव जीतने के लिए दो दिन पहले यह नौटंकी रचाई है। यह आरोप भारत के कुछ कांग्रेसी नेताओं ने भी लगाया है। लेकिन लगता है कि इस बार कांग्रेस काफी चतुराई से काम ले रही है। उसने कश्मीर के सवाल पर बहुत बुरा गच्चा खाया है। कांग्रेस के कश्मीरी नेता गुलाम नबी आजाद के संसद में हुए भाषण ने पूरी कांग्रेस की बधिया बिठा दी थी।
हीथरो हवाई अड्डा-लंदन : लंदन के टीवी चैनलों और अखबारों से पता चला कि भारत और पाकिस्तान की सेनाओं में फिर एक मुठभेड़ हो गई है। हमारे भारतीय चैनल दावा कर रहे हैं कि यह भारत का जवाबी हमला है। उनका कहना है कि पाकिस्तान के कई आतंकवादी भारत में घुसने की कोशिश कर रहे थे और उनकी फौज ने हमारे फौजी ठिकानों पर हमला भी बोल दिया। भारतीय फौज ने उसे ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कहा है। उसका दावा है कि इस ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ में कुछ पाकिस्तानी जवान और कई आतंकवादी मारे गए हैं,जबकि पाकिस्तानी फौज का कहना है कि भारत सरकार के ये दावे झूठे हैं।
लंदन में पाकिस्तानी चैनलों को देखने पर लगा कि मानो भारत सरकार ने महाराष्ट्र और हरयाणा के चुनाव जीतने के लिए दो दिन पहले यह नौटंकी रचाई है। यह आरोप भारत के कुछ कांग्रेसी नेताओं ने भी लगाया है। लेकिन लगता है कि इस बार कांग्रेस काफी चतुराई से काम ले रही है। उसने कश्मीर के सवाल पर बहुत बुरा गच्चा खाया है। कांग्रेस के कश्मीरी नेता गुलाम नबी आजाद के संसद में हुए भाषण ने पूरी कांग्रेस की बधिया बिठा दी थी।
राहुल गांधी ने भी गुलाम नबी की तरह कश्मीर के पूर्ण विलय का विरोध किया और कांग्रेस की इज्जत को पैंदे में बिठा लिया। इस बार कांग्रेस प्रवक्ता ने सीमा पर बहादुरी दिखाने के लिए फौज की तारीफ की। उसको बधाई दी। कांग्रेस समझ गई कि यदि उसने इस बार भी उल्टे-सीधे बयान दे दिए, तो महाराष्ट्र और हरयाणा में उसका सूंपड़ा साफ हो जाएगा। लेकिन यहां ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि अब भारत और पाकिस्तान के बीच चलनेवाली इस तरह की छोटी-मोटी मुठभेड़ें कहीं बड़े युद्ध की शक्ल तो नहीं ले लेंगी?
कश्मीर के सवाल पर भारत का पलड़ा काफी भारी हो गया है। उसकी तरफ से किसी युद्ध या हमले की कोई गुंजाइश नहीं है। हां, पाकिस्तान जरुर दुखी है। वह खिसियाया और गुस्साया हुआ है। इमरान खान अपनी इज्जत के खातिर कोई खतरनाक कदम भी उठा सकते हैं। लेकिन मैं समझता हूं कि अब सही वक्त है, जबकि दोनों देशों की सरकारों को आपस में बातचीत का सिलसिला शुरु करना चाहिए। कश्मीर के साथ-साथ अन्य मुद्दे हल करने की तरफ हमारे दोनों देश बढ़ें तो पूरे दक्षिण एशिया का रुपांतर शीघ्र ही हो सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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