जानिए, कैसे अरुण जेटली ने हर जगह मनवाया अपनी काबिलियत का लोहा?
भारतीय राजनीति में अरुण जेटली ऐसे नेता थे, जिन्होंने अपने राजनीतिक करियर में कभी कोई लोकसभा चुनाव नहीं जीता, बावजूद उन्हें राजनीति का पुरोधा माना जाता है। मुश्किल वक्त में भी ये हमेशा पार्टी के खेवनहार रहे। मुश्किल संसद के अंदर हो या कोर्ट में अरुण जेटली ने हर जगह अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली अब हम सबके बीच नहीं रहे। लंबे समय से टीशू कैंसर से जूझ रहे अरुण जेटली का निधन हो गया। अरुण जेटली नौ अगस्त से दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती थे।
भारतीय राजनीति में अरुण जेटली ऐसे नेता थे, जिन्होंने अपने राजनीतिक करियर में कभी कोई लोकसभा चुनाव नहीं जीता, बावजूद उन्हें राजनीति का पुरोधा माना जाता है। मुश्किल वक्त में भी ये हमेशा पार्टी के खेवनहार रहे। मुश्किल संसद के अंदर हो या कोर्ट में अरुण जेटली ने हर जगह अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया।
अगर अरुण जेटली के सफरनामें पर लजर डालें तो इनका जन्म 28 दिसंबर 1952 को दिल्ली में हुआ था। बीजेपी के वरिष्ठ नेता होने के साथ-साथ जेटली सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील अधिवक्ता भी थे। उन्होंने अपने राजनीति अनुभव से जहां बड़े-बड़े मामलों में जहां पार्टी और सरकार को राह दिखाई, तो वहीं कानूनी पेचीदगियों से भी पार्टी और सरकार को बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भी काफी करीबी थे अरुण जेलटी। उससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी के भी पसंदीदा राजनेताओं में अरुण जेटली शामिल रहे। 1975 में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आंदोलन में भी जेटली ने सक्रिय रूप से भाग लिया। उस समय वह युवा मोर्चा के संयोजक थे। उन्हें पहले अंबाला जेल में और फिर तिहाड़ जेल में रखा गया था।
अरुण जेटली का निजी जीवन
अरुण जेटली का जन्म महाराज कृष्ण जेटली और रतन प्रभा जेटली के घर में हुआ था। उनके पिता भी पेशे से वकील थे। अरुण जेटली की शुरूआती पढ़ाई-लिखाई दिल्ली के सेंट जेवियर्स स्कूल से हुई, फिर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बीकॉम किया। 1977 में दिल्ली विश्वविद्यालय से ही उन्होंने वकालत की डिग्री हासिल की। अरुण जेटली बचपन से ही काफी मेधावी रहे, उन्हें अकादमिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। स्कूली पाठ्यक्रम के अलावा वह अतिरिक्त गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। इसके लिए भी उन्हें कई पुरस्कार दिए गए थे।
दिल्ली विश्वविद्यालय से शुरु हुआ राजनीतिक जीवन
अरुण जेटली के राजनीतिक जीवन की शुरूआत भी दिल्ली विश्वविद्यालय से ही हो गई थी। 1974 में उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संगठन अध्यक्ष के रूप में चुना गया। 24 मई 1982 को अरुण जेटली का विवाह संगीता जेटली से हुआ। उनका एक बेटा रोहन और एक बेटी सोनाली है।
1975 में सक्रिय राजनीति में पदार्पण
अरुण जेटली ने करीब 1975 में सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया। भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उनको 1991 में बतौर सदस्य जगह मिली। मुद्दों और राजनीति की बेहतर समझने रखने वाले अरुण जेटली को 1999 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया गया।
1999 में बने मंत्री
1999 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए की सरकार सत्ता में आई और वाजपेयी सरकार में अरुण जेटली को सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के साथ ही विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई।
केंद्र में कई मंत्रालयों को संभाला
23 जुलाई 2000 को जब केंद्रीय कानून, न्याय और कंपनी मामलों के कैबिनेट मंत्री राम जेठमलानी ने इस्तीफा दे दिया तब उनके मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी अरुण जेटली को ही सौंप दिया गया था। महज चार माह में उन्हें वाजपेयी सरकार की कैबिनेट में शामिल कर कानून, न्याय और कंपनी मामलों के साथ-साथ जहाजरानी मंत्रालय की भी जिम्मेदारी सौंप दी गई। वाजपेयी सरकार में लगातार उनका प्रोफाइल बढ़ता और बदला रहा। उन्होंने हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। 2004 के चुनाव में वाजपेयी सरकार सत्ता से बाहर हुई, तो जेटली पार्टी महासचिव बनकर संगठन की सेवा करने लगे। साथ ही उन्होंने अपना कानूनी करियर भी शुरू कर दिया था।
मोदी लहर में भी हारे जेटली
सरकार में हमेशा मजबूत स्थिति में रहे अरुण जेटली ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में केवल एक बार 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा। मोदी लहर में जहां छोटे-मोटे प्रत्याशी भी कई लाख मतों से जीते, वहीं अरुण जेटली को अमृतसर लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी अमरिंदर सिंह के हाथों एक लाख से ज्यादा मतों से हार का सामना करना पड़ा था। बावजूद राजनीति में उनका कद और बढ़ा।
हार के बावजूद मोदी ने बनाया मंत्री
2014 के चुनावों में बीजेपी ने बंपर जीत के साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाई, तो एक लाख से ज्यादा मतों से हारने वाले जेटली को 26 मई 2014 को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। साथ ही उन्हें कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय और रक्षामंत्री का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया था। ये राजनीति और बीजेपी में जेटली की अहमियत साबित करता है। मार्च 2018 में वह उत्तर प्रदेश से राज्यसभा पहुंचे थे। इसके पहले उन्हें गुजरात से राज्यसभा सांसद बनाया गया था।
नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी निभाई अहम भूमिका
बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अरुण जेटली को 3 जून 2009 को राज्यसभा में विपक्ष का नेता बनाया। राज्यसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर उन्होंने महिला आरक्षण बिल पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जन लोकपाल बिल की मांग कर रहे समाज सेवी अन्ना हजारे का भी उन्होंने समर्थन किया था। 2014 तक उन्होंने अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन किया। उसी दौरान बीजेपी ने पार्टी में वन मैन- वन पोस्ट का सिद्धांत लागू किया और इसी सिद्धांत पर काम करते हुए अरुण जेटली ने पार्टी महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया। अरुण जेटली पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य भी रहे हैं।
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