निर्भया मामला : सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की दोषी अक्षय ठाकुर की अंतिम पुर्विचार याचिका,बरकार रखी फांसी की सजा
सर्वोच्च अदालत ने बहुचर्चित निर्भया मामले में दोषी अक्षय ठाकुर को कोई राहत देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने अक्षय की पुर्विचार याचिका को खारिज कर दिया और उसकी फांसी की सजा को बरकरार रखा है।
सर्वोच्च अदालत ने बहुचर्चित निर्भया मामले में दोषी अक्षय ठाकुर को कोई राहत देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने अक्षय की पुर्विचार याचिका को खारिज कर दिया और उसकी फांसी की सजा को बरकरार रखा है। मामले की सुनवाई जस्टिस भानुमति, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने की और फिर यह फैसला सुनाया।
निर्भया मामले में दलील रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, कुछ अपराध ऐसे होते हैं, जिनमें ‘‘मानवता रोती' है और यह मामला उन्हीं में से एक है। उन्होंने कहा कि दोषी किसी भी तरह की उदारता का हकदार नहीं है और भगवान भी ऐसे ‘दरिंदे' को बना शर्मसार होगा। जो होना तय है उससे बचने के लिए निर्भया मामले के दोषी कई प्रयास कर रहे हैं और कानून को जल्द अपना काम करना चाहिए।
इससे पहले अक्षय के वकील एपी सिंह ने केस की जांच और पीड़ित के बयानों पर सवाल उठाए। करीब 30 मिनट की दलीलों में एसपी सिंह ने कहा कि पीड़ित ने आखिरी बयान में अक्षय या किसी दोषी का नाम नहीं लिया। पीड़ित की मौत ड्रग ओवरडोज से हुई थी। मीडिया और राजनीतिक दबाव में अक्षय को सजा सुनाई गई। वह निर्दोष और गरीब है। भारत अहिंसा का देश है और फांसी मानवाधिकार का उल्लंघन है।
वकील एपी सिंह ने तिहाड़ के पूर्व विधि अधिकारी सुनील गुप्ता की किताब का हवाला भी दिया। उन्होंने कहा कि इस किताब में राम सिंह की आत्महत्या पर सवाल उठाए गए हैं। सिंह ने रेयान इंटरनेशनल केस में स्कूल छात्र की हत्या का उदाहरण दिया। उन्होंने दलील दी कि इस मामले मैं बेकसूर को फंसा दिया था। अगर सीबीआई की तफ्तीश नहीं होती तो सच सामने नहीं आता। इसलिए हमने इस केस मे भी सीबीआई जैसी एंजेसी जैसे जांच की मांग की थी।
दोषी अक्षय के वकील एपी सिंह ने दलील दी कि राम सिंह के बिसरा रिपोर्ट में अल्कोहल मिला था। जेल में राम सिंह को शराब कैसे मिली? पुलिस ने इस तथ्य की जांच क्यों नहीं की...राम सिंह की संदिग्ध मौत की जांच होनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि कलयुग में लोग केवल 60 साल तक जीते है, जबकि दूसरे युग मे और ज़्यादा जीते थे। दिल्ली में वायु प्रदूषण और पानी की गुणवक्ता बेहद खराब है, ऐसे में फांसी की सजा क्यों? मौत की सजा एकमात्र समाधान नहीं है। सुधार के लिए मौका दिया जाना है। यह सजा का उद्देश्य है।
एपी सिंह ने कहा कि सरकार भी मानती है कि दिल्ली की हवा बेहद खराब है डॉक्टर बाहर जाने की सलाह देते हैं। अक्षय को फांसी नहीं दी जाए। उन्होंने नैतिक और कानूनी दो दलीलें दीं। नैतिक दलील देते हुए अक्षय के वकील ने कहा कि मानवाधिकार का कहना है कि आप अपराधी को मार सकते हैं, अपराध को नहीं।
भारत ने जीवन को पवित्र माना जाता है। यह हिंसा का कार्य है। गरीब ही केवल मौत की सजा के शिकार होते हैं जबकि अमीर फांसी पर नहीं चढ़ते। बचाव पक्ष के वकील की दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि आप ठोस और कानूनी तथ्य रखें और यह बताएं कि हमारे फैसले में क्या कमी थी और क्यों पुनर्विचार करना चाहिए?
आपको बताते चलें कि अक्षय ठाकुर की पुनर्विचार याचिका को लेकर मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। अक्षय की पुनर्विचार याचिका आने के बाद मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि मामले की सुनवाई दूसरी उचित पीठ करेगी। उन्होंने कहा कि उनके एक रिश्तेदार मामले में पीड़ित की मां की ओर से पहले पेश हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में बेहतर होगा कि अन्य पीठ पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करे।
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