SC-ST ACT : सुप्रीम कोर्ट का सवर्णों को बड़ा झटका,FIR दर्ज करने के पहले जांच जरूरी नहीं,2-1 के बहुमत से आया फैसला,अपने मूल रूप में लागू होगा कानून
देश की सर्वोच्च अदालत ने अनुसूचित जाति-जनजाति के उत्पीड़न से जुड़े कानून के प्रावधानों में पिछले साल सरकार की तरफ से किए गए संशोधनों को बरकरार रखा है। अदालत ने एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए अपने ही फैसले को पलट दिया है। जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस रवींद्र भट्ट की बेंच ने सोमवार को इस मामले में 2-1 से फैसला दिया। दो जज फैसले के पक्ष में थे और एक ने इससे अलग राय रखी।
देश की सर्वोच्च अदालत ने अनुसूचित जाति-जनजाति के उत्पीड़न से जुड़े कानून के प्रावधानों में पिछले साल सरकार की तरफ से किए गए संशोधनों को बरकरार रखा है। अदालत ने एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए अपने ही फैसले को पलट दिया है। जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस रवींद्र भट्ट की बेंच ने सोमवार को इस मामले में 2-1 से फैसला दिया। दो जज फैसले के पक्ष में थे और एक ने इससे अलग राय रखी।
अदालत के फैसले के बाद याचिकाकर्ता प्रिया शर्मा ने बताया कि मार्च 2018 में शीर्ष अदालत ने कहा था कि एफआईआर दर्ज करने से पहले अधिकारियों से मंजूरी लेनी होगी। अधिकारियों की मंजूरी के बाद ही एफआईआर दर्ज होगी। लेकिन,अब एफआईआर दर्ज करने के लिए इसकी जरूरत नहीं होगी। यानी एससी-एसटी एक्ट अपने मूल रूप में लागू रहेगा। हालांकि,अदालत को अगर लगता है कि आरोपी के खिलाफ सबूत नहीं हैं,तो वह अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है। एक अन्य वकील के मुताबिक अदालत ने कहा कि इस मामले में अग्रिम जमानत दी जाएगी। एफआईआर और गिरफ्तारी दोनों अलग-अलग प्रक्रिया हैं।
शीर्ष अदालत के जज जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने कहा कि एससी-एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करने के पहले जांच जरूरी नहीं है। साथ ही वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से मंजूरी लेने की जरूरत भी नहीं है। बेंच में शामिल जस्टिस रविंद्र भट ने अपने फैसले में कहा कि हर नागरिक को दूसरे नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। साथ ही उनके साथ भाईचारे को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर शुरुआती तौर पर एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला नहीं बनता, तो अदालत एफआईआर को रद्द कर सकती है। ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का खुला इस्तेमाल संसद की मंशा के खिलाफ होगा।
ज्ञातो हो कि 20 मार्च 2018 को शीर्ष अदालत के दो जजों की बेंच ने स्वत: संज्ञान लेकर एससी-एसटी एक्ट में बदलाव किए थे। तब अदालत ने माना था कि एससी-एसटी एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी की व्यवस्था के कारण कई बार बेकसूर लोगों को जेल जाना पड़ता है। लिहाजा, अदालत ने तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इस आदेश के मुताबिक, मामले में अंतरिम जमानत का प्रावधान किया गया था और गिरफ्तारी से पहले पुलिस को एक प्रारंभिक जांच करनी थी।
9 अगस्त 2018 को फैसले के खिलाफ प्रदर्शनों के बाद केंद्र सरकार एससी-एसटी एक्ट में बदलावों को दोबारा लागू करने के लिए संसद में संशोधित बिल लेकर आई। फिर शीर्ष अदालत में समीक्षा याचिका दायर कर फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की थी। 1 अक्टूबर 2019 को शीर्ष अदालत की 3 जजों की बेंच ने 2 जजों की बेंच के फैसले को रद्द कर दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एससी-एसटी वर्ग के लोगों को अभी भी देश में छुआछूत और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है। उनका अभी भी सामाजिक रूप से बहिष्कार किया जा रहा है। देश में समानता के लिए अभी भी उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ है।
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