आखिर चांद के दक्षिणी ध्रूव पर ही क्यों जा रहे हैं हम?

भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार सफलताएं अर्जित कर रहा है। भारत इस क्षेत्र में इतिहास रच रहा है। सोमवार को भी भारतीय वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया, जब मिशन चंद्रयान-2 का सफलता पूर्वक प्रक्षेपण हुआ है। जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल यानी जीएसएलवी मार्क 3 एम1 जैसे ही आकाश की ओर बढ़ा, भारत ने इतिहास रच दिया। 

आखिर चांद के दक्षिणी ध्रूव पर ही क्यों जा रहे हैं हम?
Pic of Chandrayan-2
आखिर चांद के दक्षिणी ध्रूव पर ही क्यों जा रहे हैं हम?
आखिर चांद के दक्षिणी ध्रूव पर ही क्यों जा रहे हैं हम?
आखिर चांद के दक्षिणी ध्रूव पर ही क्यों जा रहे हैं हम?

भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार सफलताएं अर्जित कर रहा है। भारत इस क्षेत्र में इतिहास रच रहा है। सोमवार को भी भारतीय वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया, जब मिशन चंद्रयान-2 का सफलता पूर्वक प्रक्षेपण हुआ है। जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल यानी जीएसएलवी मार्क 3 एम1 जैसे ही आकाश की ओर बढ़ा, भारत ने इतिहास रच दिया। 

दरअसल, इसरो 11 साल बाद दोबारा चांद पर भारत का झंडा फतेह करने के लिए मिशन पर है। सब कुछ ठीक रहा तो भारत दुनिया का ऐसा पहला देश बन जाएगा जो चांद की दक्षिणी सतह पर उतरेगा। चांद का यह वह अंधेरा हिस्सा है जहां उतरने का किसी देश ने साहस नहीं किया है। यह भारत का दूसरा चांद मिशन है। इससे पहले 2008 में चंद्रयान-1 को भेजा गया था। आपको बताते चलें कि ये प्रक्षेपण पहले 15 जुलाई को होनी थी, लेकिन आखिरी मौके पर कुछ तकनीकी खामी सामने आने के बाद प्रक्षेपण टाल दिया गया था।

भारत की महात्वाकांक्षी मिशन है चंद्रयान-2

जीएसएलवी भारत में अब तक बना सबसे शक्तिशाली रॉकेट है। इसीलिए इसे बाहुबली रॉकेट भी कहा जाता है। यह रॉकेट चंद्रयान-2 को चंद्रमा की कक्षा तक ले जाएगा। चंद्रयान-2 भारत की महात्वाकांक्षी मिशन है, जिससे भारत पहली बार दक्षिणी ध्रुव में अपनी मौजूदगी दर्ज करेगा। यहां अभी तक कोई भी राष्ट्र नहीं पहुंच सका है। इस मिशन के तहत हमारे वैज्ञानिक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से कई महत्वपूर्ण जानकारी इकट्ठा करेंगे जो मानव हित में होगा। इसके साथ ही इस खोज और शोध से पूरी दुनिया के मानव जाति को फायदा होगा। भारतीय मिशन के बाद चंद्रमा पर नए सिरे से खोज शुरु किया जाएगा। इस मिशन के सफल होते ही भविष्य के कई खोजों पर भी बदलाव किए जा सकेंगे जो अभी तक कम जानकारी के आधार पर जारी था।

चांद पर क्यों जा रहे हैं हम?

वास्तव में पृथ्वी के सबसे नजदीक चंद्रमा ही ऐसा उपग्रह है, जिसपर खोज करने की दुनिया में होड़ मची हुई है। चंद्रमा पर पहुंचते ही अंतरिक्ष में कई और खोजों का प्रयास किया जा सकता है। भारत का चंद्रयान मिशन-2 चांद पर खोज करने और नई नई टेक्नोलॉजी का प्रयोग करने के लिए एक परीक्षण केंद्र के रूप में होगा। चंद्रयान-2 के सफल होते ही भारत एक नए युग में प्रवेश कर जाएगा, हम दुनिया को बता सकेंगे कि हमारी पहुंच अंतरिक्ष में हर जगह हो रही है। इससे दुनिया में भारत की धाक बढ़ेगी। प्रौद्योगिकी को बढ़ावा मिलेगा, भावी वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं को प्रेरणा मिलेगी।

चंद्रयान-2 का क्या उद्देश्य है?

हमारे देश के वैज्ञानिक चांद पर पहुंचने का प्रयास इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि चंद्रमा ही हमें पृथ्वी के कई महत्वपूर्ण रहस्यों और सौर मंडल की जानकारियां दे सकता है। वैसे तो चंद्रमा पर कई देशों ने खोज किया लेकिन चांद के बारे में गहन खोज किसी ने भी नहीं किया है। भारत इस मिशन के जरिए चंद्रमा पर व्यापक शोध करेगा। भारतीय वैज्ञानिक चंद्रमा की उत्पत्ति का व्यापक स्तर पर अध्ययन करेंगे। ज्ञात हो कि चंद्रयान-1 के तहत भारतीय वैज्ञानिकों ने पानी के होने का सबूत इकट्ठा किया था। इस मिशन के बाद उस पर और भी कई खोज हो सकते हैं।

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों जा रहे हैं?

चंद्रायन-2 मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव विशेष रूप से दिलचस्प है। क्योंकि इसकी सतह का ज्यादातर हिस्सा उत्तरी ध्रुव की तुलना से अधिक छाया में दिखाई देता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जितना हिस्सा छाया में रहता है इस पर पानी होने की संभावनाएं हैं। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कुछ जीवाश्म होने का रिकॉर्ड मौजूद है, जिसके तहत पानी की आशंका है। चंद्रयान-2 प्रज्ञान रोवर और विक्रम लैंडर का प्रयोग करेगा, जो दो क्रेटर्स (गड्ढों) सिमपेलियस एन और मंजिनस सी के बीच करीब 70 डिग्री साउथ एक्सिस पर सफलतापूर्वक लैंडिंग करने का प्रयास करेगा।

ISRO प्रमुख ने क्या कहा?

श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-2 की सफल लॉन्चिंग के बाद इसरो चीफ के. सिवन ने कहा कि यह चंद्रमा की ओर भारत की ऐतिहासिक यात्रा की शुरुआत है। पिछली बार चंद्रयान-2 में आई तकनीकी खामियों के बाद पूरी इसरो की टीम सक्रिय हुई और बहुत जल्द ही तकनीकी खामी का पता लगा लिया गया और उसे दुरुस्त किया गया। इसरो चेयरमैन के. सिवन ने उन सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी है, जिनकी कड़ी मेहनत और लगन के बाद भारत यह सफलता अर्जित करने जा रहा है।