कैसे अबतक के सभी चंद्रयान से बेहतर है हमारा ‘चंद्रयान-2’?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो का रॉकेट जीएसएलवी मार्क 3 ने चंद्रयान-2 को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया। अब चंद्रयान-2 पृथ्वी की अलग-अलग कक्षा में एक महीने से ज्यादा समय तक चक्कर लगाएगा। इसकी चंद्रमा की सतह पर छह सितंबर को उतरने की योजना है। अभी तक किसी भी देश ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रूव पर कोई भी यान नही भेजा है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो का रॉकेट जीएसएलवी मार्क 3 ने चंद्रयान-2 को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया। अब चंद्रयान-2 पृथ्वी की अलग-अलग कक्षा में एक महीने से ज्यादा समय तक चक्कर लगाएगा। इसकी चंद्रमा की सतह पर छह सितंबर को उतरने की योजना है। इस मिशन के मुख्य उद्देश्यों में चंद्रमा पर पानी की मात्रा का अनुमान लगाना, उसके जमीन, उसमें मौजूद खनिजों एवं रसायनों तथा उनके वितरण का अध्ययन करना और चंद्रमा के बाहरी वातावरण की ताप-भौतिकी गुणों का विश्लेषण करना है। वास्तव में अभी तक किसी भी देश ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रूव पर कोई भी यान नही भेजा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी बधाई
चंद्रयान 2 की सफल प्रक्षेपण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि यह मिशन खास है क्योंकि चंद्रयान-2 चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से पर उतरेगा। चंद्रमा का यह हिस्सा अभी परीक्षणों से अछूता है। उन्होंने कहा कि इस मिशन से चंद्रमा के बारे में और जानकारी मिलेग। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस मिशन की सफलता ने भारतीय वैज्ञानिकों की कुशलता एवं 130 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं को दर्शाया है। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी वैज्ञानिकों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि 'टीम ISRO ने चंद्रमा के लिए इस महत्वाकांक्षी और स्वदेशी मिशन के शुभारंभ के साथ भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक नया अध्याय लिखा। राष्ट्र को अपने वैज्ञानिकों और टीम इसरो पर बहुत गर्व है।' पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर कहा कि इसरो के वैज्ञानिकों का हार्दिक अभिनन्दन। चंद्रयान-2 का सफल प्रक्षेपण करके भारत अंतरिक्ष की महाशक्ति बन गया है। इस मिशन की सफलता के लिए मेरी शुभकामनाएं।
चंद्रायन-2 की क्या है विशेषताएं?
चंद्रयान-2 मिशन अपने साथ भारत के 13 पेलोड और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का भी एक उपकरण लेकर जाएगा। 13 भारतीय पेलोड में से ओर्बिटर पर आठ, लैंडर पर तीन और रोवर पर दो पेलोड और नासा का एक पैसिव एक्सपेरीमेंट (उपरकण) होगा। इस मिशन का कुल वजन 3.8 टन होगा। यान में तीन मॉड्यूल होंगे, जिसमें ऑर्बिटर, लैंडर जिसका नाम विक्रम है और रोवर जिसका नाम प्रज्ञान दिया गया है। चंद्रयान 2 को चांद तक पहुंचने में 48 दिन लगेंगे।
ऑर्बिटर क्या काम करेगा?
ऑर्बिटर चांद की सतह से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर चक्कर लगाएगा। साथ ही रोवर से मिला डेटा ऑर्बिटर लेकर मिशन सेंटर को भेजेगा। ऑर्बिटर में कुल आठ पेलोड लगे होंगे।
ये हैं ऑर्बिटर के पेलोड
टैरेन मैपिंग कैमरा- 2, जो कि सतह मैप लेगा। चंद्रयान-2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (CLASS), चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच और मैपिंग के लिए लगा है। सोलार एक्सरे मॉनिटर (XSM), चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच और मैपिंग के लिए है। ऑर्बिटर हाई रिजॉल्यूशन कैमरा (OHRC), सतह की मैपिंग के लिए है। इमेजिंग इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर (IIRS)- मिनेरोलॉजी मैपिंग यानी सतह पर मौजूद मिनरल्स की मैपिंग के लिए है।डुअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार (DFSAR),चांद की सतह के कुछ मीटर अंदर जिससे पानी का पता लगाया जा सके, इसके लिए है। चन्द्र एटमॉस्फियरिक कंपोजिशन एक्सप्लोरर 2 (CHACE-2), चांद के सतह के ऊपर मौजूद पानी के मोलेक्यूल का पता लगाने के लिए है, जबकि डुअल फ्रीक्वेंसी रेडियो साइंस (DFRS), चांद के वातावरण को पढ़ने के लिए है।
लैंडर क्या और कैसे काम करेगा?
लैंडर की चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी। लैंडर का नाम विक्रम है। इस लैंडर विक्रम के पेलोड में रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बॉन्ड हाइपर सेंसिटिव आयनॉस्फेयर एंड एटमॉस्फियर (RAMBHA) लांगमुईर प्रोब (LP), चन्द्र सर्फेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट (Cha STE), सइंस्ट्रूमेंट फॉर लुनार सीस्मिक एक्टिविटी (ILSA), तीनों पेलोड लैंडिंग प्रॉपर्टीज शामिल हैं।
रोवर क्या और कैासे काम करेंगा?
रोवर लैंडर के अंदर ही मैकेनिकल तरीके से इंटरफेस किया गया है। यानी लैंडर के अंदर इन्हाउस रहेगा और चांद की सतह पर लैंडर के सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर प्रज्ञान अलग होगा और 14 से 15 दिन तक चांद की सतह पर चहलकदमी करेगा और चांद की सतह पर मौजूद सैंपल्स यानी मिट्टी और चट्टानों के नमूनों को एकत्रित कर उनका रसायन विश्लेषण करेगा और डेटा को ऊपर ऑर्बिटर के पास भेज देगा। जहां से ऑर्बिटर डेटा को इसरो मिशन सेंटर भेजेगा। रोवर के एक व्हील पर जहां अहोक चक्र, तो दूसरे व्हील पर इसरो का लो होगा, वहीं भारत का तिरंगा भी रोवर पर होगा। इससे पहले चंद्रयान 1 के वक़्त भी भारत का तिरंगा चांद पर भेजा गया था।
रोवर प्रज्ञान पेलोड क्यों?
लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोमीटर (LIBS), अल्फा पार्टिकल एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS), ये दोनों पेलोड लैंडिंग साईट के आस पास के क्षेत्र को मैपिंग करने के लिए हैं। इसके अलावा नासा का एक पैसिव एक्सपेरिमेंट भी इस पेलोड का हिस्सा होगा। जिसे मिलाकर कुल 14 पेलोड हो जाते हैं। लेजर रेट्रो रिफ्लेक्टर अरेय (LRA) जो कि पृथ्वी और चांद के बीच गतिविज्ञान और चांद की सतह के भीतर मौजूद रहस्यों को जानने के लिए भेजा जाएगा।
क्या हो सकती हैं मिशन की चुनौतियां?
चांद की सतह का सटीक आंकलन करना, गहन अंतरिक्ष में संचार, चांद की कक्षा में प्रवेश, चांद सतह का असमान गुरुत्वाकर्षण बल, सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती होगी, चांद की सतह की धूल, सतह का तापमान रोवर की राह में रोड़ा बन सकता है। इसरो के मुताबिक इस अभियान में जीएसएलवी मार्क 3 एम1 प्रक्षेपण यान का इस्तेमाल किया गया है। इसरो ने कहा कि रोवर चंद्रमा की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग करेगा। लैंडर और ऑर्बिटर पर भी वैज्ञानिक प्रयोग के लिए उपकरण लगाये गये है। साथ ही भारत चंद्रमा पर उस जगह पर उतरने जा रहा है जहां कोई नहीं पहुंचा है। अर्थात चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर। इस क्षेत्र को अब तक खंगाला नहीं गया है। इस मिशन से कई रहस्य के खुलने की उम्मीद है।
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