पाकिस्तान से बात शुरु करें
हमारे नीति-निर्माताओं को गंभीरतापूर्वक समझना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि अब भी हमें क्या वही पुराना राग अलापते रहना होगा ? आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते ? क्यों नहीं चल सकते ? गोली और बोली, बात और लात साथ-साथ क्यों नहीं चल सकते ? महाभारत युद्ध में ये चले थे या नहीं ?
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर को पत्र लिखे हैं। उन्होंने दोनों देशों के बीच बातचीत की पहल की है। दोनों ने कहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच जितनी भी समस्याएं हैं, उन्हें बातचीत से ही हल किया जा सकता है। इमरान ने नई सरकार को यह दूसरा पत्र लिखा है और बधाई देने के लिए उन्होंने मोदी को फोन भी किया था। पाकिस्तान के नेताओं की यह पहल दो घटनाओं के बीच हो रही है। एक तो अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसी द्वारा पाकिस्तान को भूरी सूची में उतार दिया गया है, आतंक के कारण और दूसरा भारत द्वारा दक्षेस (सार्क) की जगह अब ‘बिम्सटेक’ (पूर्वी पड़ौसियों) पर अपना ध्यान टिकाने के कारण। यह इसीलिए किया गया है कि पाकिस्तान पश्चिमी पड़ौसी है और ‘बिम्सटेक’ के बाहर है।
पाकिस्तानी विदेश नीति के लिए ये दोनों बड़ी चुनौतियां हैं। इसके अलावा इमरान को यह भी पता चल गया है कि चीन के साथ पाकिस्तान की ‘इस्पाती दोस्ती’ के बावजूद चीन भारत से अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है। पाकिस्तान के पुराने सरपरस्त अमेरिका का पाकिस्तान को कोई भरोसा नहीं रहा। इतना ही नहीं, कुछ महिनों में ही इमरान यह जान गए हैं कि जब तक पाकिस्तान का फौजी खर्च कम नहीं होगा, पाकिस्तान की अर्थ-व्यवस्था लंगड़ाती चली जाएगी। ऐसी स्थिति में इमरान जो पहल कर रहे हैं, उसे हमारे नीति-निर्माताओं को गंभीरतापूर्वक समझना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि अब भी हमें क्या वही पुराना राग अलापते रहना होगा ? आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते ? क्यों नहीं चल सकते ? गोली और बोली, बात और लात साथ-साथ क्यों नहीं चल सकते ? महाभारत युद्ध में ये चले थे या नहीं ?
हमारे नीति-निर्माता यह क्यों नहीं समझते कि पाकिस्तान के राजनीतिक नेता लाख चाहें तो भी आतंकवादियों को काबू नहीं कर सकते। क्या हम हमारे कश्मीरी आतंकवादियों को काबू कर पाते हैं ? यह सही समय है जबकि भारत को पाकिस्तान से बात शुरु करना चाहिए। यह वक्त भारत की बुलंदी का है। मोदी की सरकार प्रचंड बहुमत से दूसरी बार चुनी गई है। बालाकोट के सांकेतिक हमले ने भारत का पाया ऊंचा कर दिया है। इसके अलावा जयशंकर-जैसा मंजा हुआ और अनुभवी कूटनीतिज्ञ हमारा विदेश मंत्री है।
यह स्पष्ट है कि ‘बिम्सटेक’ दक्षेस (सार्क) की जगह नहीं ले सकता। मोदी ने मालदीव और श्रीलंका यात्रा से अपना दूसरा कार्यकाल शुरु किया, यह अच्छा है लेकिन ये देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान के स्थानापन्न नहीं बन सकते। ये दोनों देश मध्य एशिया और भारत के बीच स्वर्ण-सेतु हैं।
(लेखक के ये अपने विचार हैं)
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