दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में भी मनाई गई जननायक की जयंती, उनके कार्यों को किया याद,पदचिन्हों पर चलने का लिया गया संकल्प

राजधानी दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन कल्ब में भी एक कार्यक्रम का आयोजन कर जननायक कर्पूरी ठाकुर को याद किया गया। जयंती कार्यक्रम के दौरान कर्पूरी ठाकुर के चित्र पर माल्यार्पण कर उनके पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लिया गया। वक्ताओं ने बताया कि जननायक सरल और सरस हृदय के राजनेता थे। वह सदा गरीबों के अधिकार के लिए लड़ते रहे। उनका जीवन लोगों के लिए एक आदर्श है।

दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में भी मनाई गई जननायक की जयंती, उनके कार्यों को किया याद,पदचिन्हों पर चलने का लिया गया संकल्प
Pic Of Karpuri Thakur Fans With His Poster
दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में भी मनाई गई जननायक की जयंती, उनके कार्यों को किया याद,पदचिन्हों पर चलने का लिया गया संकल्प

देश के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, शिक्षक, सफल राजनीतिज्ञ, समाजवादी नेता और बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर जी की जयंती 24 जनवरी को धूमधाम से मनाई गई। हर धर्म, हर समाज और हर वर्ग लोगों ने उनकी जयंती पर कार्यक्रमों का आयोजन कर उन्हें याद किया। राजधानी दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन कल्ब में भी एक कार्यक्रम का आयोजन कर जननायक कर्पूरी ठाकुर को याद किया गया। कार्यक्रम के दौरान कर्पूरी ठाकुर के चित्र पर माल्यार्पण कर उनके पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लिया गया।

देश और समाज के उत्थान में जननायक के योगदान को याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि 1967 में जब पहली बार नौ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ तो महामाया प्रसाद के मंत्रिमंडल में वे शिक्षा मंत्री और उपमुख्यमंत्री बने। उन्होंने मैट्रिक में अंग्रेज़ी की अनिवार्यता समाप्त कर दी और यह बाधा दूर होते ही क़स्बाई-देहाती लड़के भी उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हुए, नहीं तो पहले वे मैट्रिक में ही अटक जाते थे।

वक्ताओं ने बताया कि 1970 में 163 दिनों के कार्यकाल वाली कर्पूरी ठाकुर की पहली सरकार ने कई ऐतिहासिक फ़ैसले लिए। आठवीं तक की शिक्षा मुफ़्त कर दी गई। उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्ज़ा दिया गया। सरकार ने पांच एकड़ तक की ज़मीन पर मालगुज़ारी खत्म कर दी।

कर्पूरी ठाकुर 1977 में जब दोबारा मुख्यमंत्री बने तो एससी-एसटी के अलावा ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला बिहार देश का पहला सूबा बना। 11 नवंबर 1978 को उन्होंने महिलाओं के लिए तीन (इसमें सभी जातियों की महिलाएं शामिल थीं), ग़रीब सवर्णों के लिए तीन और पिछडों के लिए 20 फीसदी यानी कुल 26 फीसदी आरक्षण की घोषणा की।

जननायक कर्पूरी ठाकुर सरल और सरस हृदय के राजनेता माने जाते थे। सामाजिक रूप से पिछड़ी किन्तु सेवा भाव के महान लक्ष्य को चरितार्थ करती नाई जाति में जन्म लेने वाले इस महानायक ने राजनीति को भी जनसेवा की भावना के साथ जिया। वह सदा गरीबों के अधिकार के लिए लड़ते रहे। उनका जीवन लोगों के लिए एक आदर्श है।

ज्ञात हो कि जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में हुआ था। इसे अब कर्पूरी ग्राम से जाना जाता है। उनके पिता गोकुल ठाकुर और माता राम दुलारी थी। इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे। भारत छोड़ो आंदोलन के समय कर्पूरी ठाकुर 26 महीने जेल में बिताए थे।