केरल सरकार ने CAA के खिलाफ केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती,राज्य की विधानसभा से पहले ही कानून को रद्द करने  का पास हो चुका है प्रस्ताव 

केंद्र सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून को देशभर में लागू तो कर दिया है। लेकिन इस कानून का चौतरफा विरोध भी हो रहा है। संसद से सड़क और सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक सरकार को चुनौती मिल रही है। चुनौती देने वालों में केरल की पिनारयी विजयन की सरकार भी शामिल हो गई है। केरल सरकार सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। 

केरल सरकार ने CAA के खिलाफ केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती,राज्य की विधानसभा से पहले ही कानून को रद्द करने  का पास हो चुका है प्रस्ताव 
GFX of Kerla CM Pinarai Vijyan and Supreme Court of India
केरल सरकार ने CAA के खिलाफ केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती,राज्य की विधानसभा से पहले ही कानून को रद्द करने  का पास हो चुका है प्रस्ताव 

केंद्र सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून को देशभर में लागू तो कर दिया है। लेकिन इस कानून का चौतरफा विरोध भी हो रहा है। संसद से सड़क और सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक सरकार को चुनौती मिल रही है। चुनौती देने वालों में केरल की पिनारयी विजयन की सरकार भी शामिल हो गई है। केरल सरकार सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। 

केरल सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाला पहला राज्य बन गया है। केरल सरकार का तर्क है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन है। सीएए धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल सिद्धांत के खिलाफ है।

केरल ही ऐसा पहला राज्य था,जिसने इस कानून को रद्द करने के लिए 31 दिसंबर को विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया था। सत्तारूढ़ सीपीएम के नेतृत्व वाले गठबंधन एलडीएफ और कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन यूडीएफ ने विधानसभा में सीएए के विरोध में पेश प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि बीजेपी के एकमात्र सदस्य ने इसका विरोध किया था।

केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने पहले ही घोषणा की थी कि उनकी सरकार संशोधित नागरिकता कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपने राज्य में लागू नहीं करेंगे। विधानसभा में प्रस्ताव पेश करके इसे एक के मुकाबले 138 मतों से पास करवाकर उन्होंने केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ा दिया था।

ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने के लिए करीब 60 से अधिक याचिकाएं विचाराधीन हैं, जिनकी सुनवाई 22 जनवरी को होगी। राजनीतिक पार्टियों और शख्सियतों ने याचिकाएं दायर की हैं।

नागरिकात कानून के जरिए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाइयों के लिए बिना वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो गया है।