सुख,समृद्धि, अक्षय आनंद एवं अखण्ड सौभाग्यदायिनी है माँ महागौरी

माँ महागौरी का विधिवत पूजन करने से अविवाहितों का विवाह होने में आने वाली समस्त बाधाओं का नाश होता है, जो सुहागन महिला माँ महागौरी की भक्ति भाव से पूजन करती हैं, उनके सुहाग की रक्षा माँ स्वयं करती हैं। कुंवारी लड़की माँ महागौरी की पूजा करती हैं, तो उसे योग्य पति प्राप्त होता है। पुरूष जो माँ महागौरी की पूजा करते हैं, उनका जीवन सुखमय रहता है।

सुख,समृद्धि, अक्षय आनंद एवं अखण्ड सौभाग्यदायिनी है माँ महागौरी
Pic of Maa Mahagauri
सुख,समृद्धि, अक्षय आनंद एवं अखण्ड सौभाग्यदायिनी है माँ महागौरी
सुख,समृद्धि, अक्षय आनंद एवं अखण्ड सौभाग्यदायिनी है माँ महागौरी
सुख,समृद्धि, अक्षय आनंद एवं अखण्ड सौभाग्यदायिनी है माँ महागौरी
सुख,समृद्धि, अक्षय आनंद एवं अखण्ड सौभाग्यदायिनी है माँ महागौरी
सुख,समृद्धि, अक्षय आनंद एवं अखण्ड सौभाग्यदायिनी है माँ महागौरी
सुख,समृद्धि, अक्षय आनंद एवं अखण्ड सौभाग्यदायिनी है माँ महागौरी
सुख,समृद्धि, अक्षय आनंद एवं अखण्ड सौभाग्यदायिनी है माँ महागौरी
सुख,समृद्धि, अक्षय आनंद एवं अखण्ड सौभाग्यदायिनी है माँ महागौरी

माँ दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन माँ महागौरी की उपासना का विधान है। माँ महागौरी को भगवान शिव की अर्धागनी और भगवान गणेश की माता के रुप में जाना जाता है।

श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि:। 
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण भी श्वेत हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। "अष्टवर्षा भवेद् गौरी" अर्थात माँ महागौरी की आयु आठ साल की मानी गई है। माँ महागौरी का वाहन वृषभ है। इसीलिए इनको वृषारूढ़ा भी कहा गया है। कथा के अनुसार इन्होंने पार्वती रूप में भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। शिव जी की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करते हुए माँ गौरी का शरीर धूल मिट्टी से ढंककर मलिन यानि काला पड़ गया। माँ की तपस्या से प्रसन्न होकर जब शिव जी ने इनके शरीर को पवित्र गंगाजल से मलकर धोया, तब वह विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर हो गया, तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।

माँ महागौरी की महिमा

माँ महागौरी अमोघ फलदायिनी हैं। माँ महागौरी की उपासना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। माँ महागौरी की पूजा से भक्तों के पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। माँ महागौरी की उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। माँ महागौरी कुंवारी कन्याओं से शीघ्र प्रसन्न होकर, उन्हें मनचाहा जीवन साथी प्राप्त होने का वरदान देती हैं। माँ महागौरी का विधिवत पूजन करने से अविवाहितों का विवाह होने में आने वाली समस्त बाधाओं का नाश होता है, जो सुहागन महिला माँ महागौरी की भक्ति भाव से पूजन करती हैं, उनके सुहाग की रक्षा माँ स्वयं करती हैं। कुंवारी लड़की माँ महागौरी की पूजा करती हैं, तो उसे योग्य पति प्राप्त होता है। पुरूष जो माँ महागौरी की पूजा करते हैं, उनका जीवन सुखमय रहता है। देवी उनके पापों को जला देती हैं और शुद्ध अंत:करण देती हैं। माँ महागौरी जी ने खुद तप करके भगवान शिवजी जैसा वर प्राप्त किया था। ऐसे में वह अविवाहित लोगों की परेशानी को समझती और उनके प्रति दया दृष्टि रखती हैं। माँ महागौरी अपने भक्तों को अक्षय आनंद और तेज प्रदान करती हैं। माँ महागौरी की साधना से व्यक्ति को अकस्मात लाभ की प्राप्ति होती है। व्यक्ति दीर्धायु बनता है। रोग और शत्रु नाश होता है। शारीरिक और भौगोलिक सुखों में वृद्धि होती।

माँ महागौरी के शस्त्र

शक्ति की देवी दुर्गा के आठवें स्वरूप माँ महागौरी की चार भुजाएं हैं। शास्त्रों में माँ महागौरी को चतुर्भुजी कहकर संबोधित किया गया है। माँ महागौरी की दाईं भुजा अभय मुद्रा में हैं, जिससे माँ भक्तों को सर्व सुख प्रदान करती है। माँ महागौरी का अभय मुद्रा  सुरक्षा, शांति, परोपकार  और भय को दूर करने का प्रतिनिधित्व करता है। माँ महागौरी की नीचे वाली भुजा में त्रिशूल सुशोभित है। यह त्रिशूल तीन गुणों का प्रतीक है। संसार में तीन तरह की प्रवृत्तियां होती हैं- सत यानी सत्यगुण, रज यानी सांसारिक और तम मतलब तामसी प्रवृत्ति। त्रिशूल के तीन नुकीले सिरे इन तीनों प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन गुणों पर हमारा पूर्ण नियंत्रण हो। त्रिशूल का यही संदेश है। मां महागौरी की बाईं भुजा में डमरू है, जो सम्पूर्ण जगत का निर्वाहन करा रहा है। माँ महागौरी नीचे वाली भुजा से भक्तों की प्रार्थना सुनकर वरदान दे रही हैं। माँ महागौरी का यह वरद मुद्रा  सत्कार, मदद, दया और ईमानदारी का प्रतीक है।

माँ महागौरी की उपासना

नवरात्र की अष्टमी तिथि को सर्वप्रथम लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में माँ महागौरी की मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित करें। तदुपरांत चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उसपर महागौरी यंत्र रखें तथा यंत्र की स्थापना करें। उसके बाद हाथ में श्वेत पुष्प लेकर माँ इस मंत्र का जाप करते हुए ध्यान करें।

श्वेते वृषे समारू ढा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभम् दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

ध्यान के बाद माँ के श्री चरणों में पुष्प अर्पित करें तथा यंत्र सहित मां भगवती का पंचोपचार विधि से अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करें। और फिर दूध से बने नैवेद्य का भोग लगाएं। तत्पश्चात् ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। मंत्र की तथा साथ में ॐ महा गौरी देव्यै नम: मंत्र की इक्कीस माला जाप करें। मनोकामना पूर्ति के लिए माँ से प्रार्थना करें। अंत में माँ की आरती और कीर्तन करें। इस दिन भगवती को नारियल का भोग लगाना चाहिये। फिर नैवेद्य रूप वह नारियल ब्राह्मण को दे देना चाहिये। इसके फलस्वरूप उस पुरुष के पास किसी प्रकार के संताप नहीं आ सकते। पूजा के समापन से पहले इस मंत्र का जाप अवश्य करें।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

ऐसा करने से माँ महागौरी भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं। नवरात्र की अष्टमी को अन्नकूट पूजा यानी कन्या पूजन का भी विधान है। इस पूजन में नौ कन्याओं को भोजन कराया जाता है। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए। इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्नता से हमारे मनोरथ पूर्ण करती हैं।

माँ महागौरी की साधना

नवरात्र के आठवें दिन देवी दुर्गा के आठवें स्वरूप माँ महागौरी की उपासना का विशेष विधान है। इस दिन साधक विशेष तौर पर साधना में मूलाधर से लेकर सहस्रार चक्र तक विधि पूर्वक सफल हो गये होते हैं। उनकी कुंडलिनी जाग्रत हो चुकी होती हैं। मां महागौरी की साधना करने वाले साधक आज के दिन प्रात: स्नान आदि कर साफ एवं शुद्ध वस्त्र धारण करें। तदोपरांत माँ महागौरी की तस्वीर के आगे धूप-दीप जलाएं और इस मंत्र के साथ जाप करें।

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥

अष्टमी तिथि को माँ महागौरी के स्वरूप की उपासना का विशेश महत्व है। माँ महागौरी की उपासना और आराधना से मन पवित्र हो जाता है और भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

माँ महागौरी का धयान मंत्र

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥

माँ महागौरी का स्तोत्र पाठ

सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

माँ महागौरी का कवच

ओंकारः पातु शीर्षो मां, हीं बीजं मां, हृदयो।
क्लीं बीजं सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटं कर्णो हुं बीजं पातु महागौरी मां नेत्रं घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मा सर्ववदनो॥