राजीव गांधी और वह रात

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

राजीव गांधी और वह रात

 

राजीव गांधी को गए, आज तीस साल हो रहे हैं। 21 मई 1991 की वह रात मुझे आज भी ज्यों की त्यों याद है। उन दिनों मैं पीटीआई (भाषा) का संपादक था। अपने दफ्तर से मैं रात को घर पहुँचा और सोने के लिए बिस्तर पर लेटा ही था कि श्रीपेरेम्बदूर से हमारे संवाददाता का फोन लगभग सवा दस बजे आया कि राजीव गांधी की यहाँ हत्या हो गई है। मैंने उससे कहा कि आप होश में तो हैं ? आप क्या बोल रहे हैं ? उन्होंने अपनी बात फिर दोहराई और कहा कि मैं यही खड़ा हूँ। राजीवजी का सिर फट गया है। खून में लथपथ हैं। अब कुछ बचा नहीं है। यह सुनते ही मैंने अपने दफ्तर फोन किया और जो कपड़े पहने थे, उनके साथ ही मैं संसद मार्ग पर स्थित अपने दफ्तर के लिए निकल पड़ा। मेरे बेटे सुपर्ण ने 100 की स्पीड पर कार भगाई और कुछ ही मिनिट में प्रेस एनक्लेव से दफ्तर पहुँच गया। वहाँ मुश्किल से मैं पाँच-सात मिनिट रुका और 10, जनपथ पहुँच गया। राजीव गांधी प्रधानमंत्री पद छोड़ने के बाद वहीं रहते थे। 10, जनपथ पर एकदम अंधेरा था। मेरा बेटा कार को अंदर तक ले गया। मैंने घंटी बजाई। प्रियंका बाहर निकली। उसने मुझे उस समय वहाँ देखकर आश्चर्य व्यक्त किया। ज्यों ही मैं अपना नाम बताने लगा, सोनियाजी अंदर से बाहर आ गईं। मुझे देखते ही वे पूछने लगीं कि आप इस वक्त यहाँ कैसे ? मैंने उन्हें सिर्फ इतना ही बताया कि श्रीपेरम्बदूर में राजीव जी के साथ कुछ दुर्घटना हो गई है। आपको कुछ पता चला क्या ? मैं अपने दफ्तर से मालूम करके आपको सारी बात बताता हूँ। हम बात कर ही रहे थे कि इतने में चैन्नई से चिदंबरम का फोन आया और उन्होंने सोनियाजी को सारी बात बता दी। इस बीच शायद टीवी चैनलों ने भी खबर जारी कर दी थी। देखते-ही देखते 10 जनपथ पर नेताओं की भीड़ जमा हो गई। थोड़ी ही देर में राष्ट्रपति वेंकटरमन भी आ गए। सुरक्षाकर्मियों ने मेरे बेटे से अपनी कार बाहर ले जाने के लिए कहा। वेंकटरमनजी की कार ज्यों ही अंदर घुसी, कई कार्यकर्ताओं ने उसका शीशा तोड़ दिया। श्री सीताराम केसरी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी की तरफ से अखबारों को श्रद्धांजलि भेजी जाए। श्री रमेश भंडारी ने लंबा ड्राफ्ट तैयार किया। केसरीजी ने उसे रद्द कर दिया। उन्होंने मुझे कहा कि आप ही एक संक्षिप्त भावपूर्ण श्रद्धांजलि तैयार करके पीटीआई से जारी करवा दीजिए। उधर सोनियाजी ने तमिलनाडु पहुंचने की तैयारी की और सुबह तक नेता लोग 10, जनपथ पर आते रहे। मैंने वहीं से अपने मित्र नरसिंहरावजी को फोन किया। राव साहब उस रात मेरे साले रमेशजी और रागिनीजी के घर नागपुर में भोजन कर रहे थे। वे हतप्रभ रह गए। दूसरे दिन सुबह वे दिल्ली पहुँचे। हम दोनों दोपहर को डेढ़-दो घंटे साथ रहे। उसी दिन सुबह प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी, चौधरी देवीलालजी और मैं राष्ट्रपति भवन परिसर में चौधरी साहब के घर पर विचार-विमर्श करते रहे। चंद्रशेखरजी कार्यवाहक प्रधानमंत्री थे। उन दिनों चुनाव चल रहे थे। चुनाव के दौरान ही श्रीलंका के तमिल उग्रवादियों ने श्रीपेरम्बदूर में राजीवजी की हत्या कर दी थी।