लालू से भूरा बाल क्यों घृणा करता है !

आज जो लोग सत्ता पर पर चोट करने की बात करते है दरअसल वह सरकार बदलने की बात करते है। सरकार बदलने से सत्ता पर चोट नहीं होता है। सत्ता पर चोट करने का मतलब है ब्राह्मणवादी एवं सवर्णवादी प्रभुत्व पर चोट करना जिसपर लालू यादव ने चोट किया था। आइये जानते हैं आखिर क्यों लालू से भूरा बाल घृणा करता है!

लालू से भूरा बाल क्यों घृणा करता है !
Lalu addressing to people

आज जो लोग सत्ता पर चोट करने की बात करते है दरअसल वह सत्ता पर चोट नहीं बल्कि सरकार बदलने की बात करते है। कुछ उदाहरणों से समझने का प्रयास करते है। स्वतंत्रता के बाद से ही छपरा (सारण) लोकसभा क्षेत्र पर राजपूत समुदाय के लोगों का क़ब्ज़ा था। जब लालू यादव ने 1977 में चुनाव क्षेत्र के रूप में छपरा को चुना तब लालू यादव को पागल समझा जाता था। लेकिन लालू यादव ने चुनाव में चैलेंज पेश किया और सफ़ल रहे। मोतिहारी लोकसभा क्षेत्र पर आज़ादी के बाद से ही अगड़ी जाति के लोगों का क़ब्ज़ा था। जब पहली बार लालू यादव ने रामा देवी को उम्मीदवार बनाया तब लोग चौंक गये थे। हालांकि बृजबिहारी प्रसाद बाहुबली विधायक जरूर थे लेकिन किसी को भी इस बात का यक़ीन नहीं था कि कलवार जाति की एक महिला सीट निकाल पायेगी। लेकिन लेकिन लालू यादव ने रिस्क लिया और रामा देवी जीतकर संसद भवन पहुँची। शिवहर लोकसभा क्षेत्र चित्तौड़गढ़ के नाम से जाना जाता था।

आज़ादी के बाद से ही राजपूत समुदाय का क़ब्ज़ा था। जब लालू यादव ने 1999 में अनवारुल हक़ को उम्मीदवार बनाया तब क्षेत्र में किसी को भी इस बात का यक़ीन नहीं था कि वह क्षत्रिय सम्राट आनन्द मोहन को चुनाव में पराजित कर पायेंगे। मग़र अनवारुल हक़ पहली बार चित्तौड़गढ़ को ध्वस्त करने में सफल रहे। अब राजपूत समुदाय का पकड़ कमज़ोर हुआ है। भूमिहार समुदाय का मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र पर क़ब्ज़ा था। जब 1996 में लालू यादव एक मल्लाह जाति के जयनारायण निषाद को उम्मीदवार बनाया तब पार्टी के लोग भी पक्ष में नहीं थे। मग़र निषाद चुनाव जीतने में सफल रहे थे और अब मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र मल्लाह जाति के लिए सुरक्षित माना जाता है। उस समय का बलिया और आज का बेगूसराय भूमिहार लोगों का सबसे मज़बूत गढ़ है। बलिया पर भूमिहार कम्युनिस्टों का क़ब्ज़ा था। जब लालू यादव ने 1998 में राजवंशी महतों को उम्मीदवार बनाया तब अख़बार की सुर्ख़ियां भी इस फ़ैसला पर  व्यंग्य कसा जाता था। लेकिन राजवंशी महतों चुनाव जीतकर संसद पहुँचे। यदि बेगूसराय लेनिनवाद रहा है तो जहानाबाद भी क्यूबा ही है। इस सीट से कभी भूमिहार नेताओं के अलावा कभी दूसरा कोई नहीं जीता। लेकिन जब लालू यादव ने 1998 में सुरेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया तब लोग मज़ाक उड़ाते थे। लेकिन सुरेंद्र यादव जी चुनाव जीतकर संसद पहुँचे। बांका क्षेत्र पर राजपूत नेताओं का क़ब्ज़ा था।

जब लालू यादव ने 1996 में गिरधारी यादव को उम्मीदवार बनाया तब पार्टी में ही मतभेद खड़ा हो गया। लेकिन गिरधारी यादव चुनाव जीतकर इतिहास बना दिया। भले जीतने के बाद इनमें से कई लोग भाजपा के साथ चले गये हो मग़र लालू यादव ने सत्ता पर चोट किया। आज जो लोग सत्ता पर पर चोट करने की बात करते है दरअसल वह सरकार बदलने की बात करते है। सरकार बदलने से सत्ता पर चोट नहीं होता है। सत्ता पर चोट करने का मतलब है ब्राह्मणवादी एवं सवर्णवादी प्रभुत्व पर चोट करना जिसपर लालू यादव ने चोट किया था।


(ये लेखक के अपने विचार हैं)